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उधम सिंह ने जनरल डायर को मारकर लिया था जालियांवाला बाग नरसंहार का बदला

जालियांवाला बाग हत्याकांड के आरोपी जनरल ओ डायर की लंदन जाकर हत्या करने वाले सरदार उद्यम सिंह का आज शहीदी दिवस है।

By Vinay TiwariEdited By: Published: Tue, 30 Jul 2019 04:59 PM (IST)Updated: Wed, 31 Jul 2019 10:04 AM (IST)
उधम सिंह ने जनरल डायर को मारकर लिया था जालियांवाला बाग नरसंहार का बदला
उधम सिंह ने जनरल डायर को मारकर लिया था जालियांवाला बाग नरसंहार का बदला

नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। सरदार उधम सिंह (26 दिसम्बर 1899 - 31 जुलाई 1940) भारत के स्वतन्त्रता संग्राम के महान सेनानी एवं क्रान्तिकारी थे। आज उनका शहीदी दिवस है। उन्होंने जलियांवाला बाग कांड के जघन्‍य नरसंहार को अंजाम देने वाले और पंजाब के तत्‍कालीन गर्वनर जनरल माइकल ओ डायर को लंदन में जाकर गोली मारी थी। कई इतिहासकारों का मानना है कि यह हत्याकांड ब्रिटिश अधिकारियों का एक सुनियोजित षड्यंत्र था, जो पंजाब पर नियंत्रण बनाए रखने और पंजाबियों को डराने के उद्देश्य से किया गया था। इतना ही नहीं जब इस नरसंहार के बाद पूरे देश में विरोध हुआ और भारतीय नेताओं ने इसकी निंदा की तब भी ब्रिटिश हुकूमत जनरल डायर के समर्थन से पीछे नहीं हटा।

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पंजाब के संगरूर में हुआ था जन्म 
सरदार उधम सिंह का जन्म 26 दिसम्बर 1899 को पंजाब के संगरूर जिले के सुनाम गांव में काम्बोज परिवार में हुआ था। सन 1901 में उनकी माता और 1907 में उनके पिता का निधन हो गया। इस घटना के चलते उन्हें अपने बड़े भाई के साथ अमृतसर के एक अनाथालय में शरण लेनी पड़ी। उनका बचपन का नाम शेर सिंह और उनके भाई का नाम मुक्ता सिंह था जिन्हें अनाथालय में क्रमश: उधम सिंह और साधु सिंह के रुप में नया नाम दिया गया।

उधम सिंह देश में सर्व धर्म समभाव के प्रतीक थे और इसीलिए उन्होंने अपना नाम बदलकर राम मोहम्मद सिंह आजाद रख लिया था, उनका ये नाम भारत के तीन प्रमुख धर्मों का प्रतीक था। जब वो अनाथालय में रह रहे थे उसी दौरान साल 1917 में उनके बड़े भाई का देहांत हो गया, उसके बाद उनके परिवार का कोई नहीं रह गया, वो पूरी तरह से अकेले हो गए। इसके दो साल बाद 1919 में उन्होंने अनाथालय छोड़ दिया और क्रांतिकारियों के साथ मिलकर आजादी की लड़ाई में शमिल हो गए। 

माइकल डॉयर की गोली मारकर हत्या
उधम सिंह 13 अप्रैल 1919 को पंंजाब में घटित हुए जालियांवाला बाग नरसंहार के प्रत्यक्षदर्शी थे। कई वजहों से जलियांवाला बाग में मारे गए लोगों की सही संख्या कभी भी सामने नहीं आई। इस घटना से उधमसिंह तिलमिला गए और उन्होंने जलियांवाला बाग की मिट्टी हाथ में लेकर सबक सिखाने की प्रतिज्ञा ली थी कि डायर को उसके किए अपराधों की सजा दिलाकर रहेंगे। अपने मिशन को अंजाम देने के लिए उधम सिंह ने विभिन्न नामों से अफ्रीका, नैरोबी, ब्राजील और अमेरिका की यात्रा की। सन् 1934 में उधम सिंह लंदन पहुंचे और वहां एल्डर स्ट्रीट कमर्शियल रोड पर रहने लगे। वहां उन्होंने यात्रा के उद्देश्य से एक कार खरीदी और साथ में अपना मिशन पूरा करने के लिए छह गोलियों वाली एक रिवाल्वर भी खरीद ली। उसके बाद वो वहां पर माइकल ओ डायर को सबक सिखाने के लिए सही समय का इंतजार करने लगे। उनको ये मौका 1940 में मिला।

21 साल बाद लिया था जालियांवाला कांड का बदला
जलियांवाला बाग हत्याकांड के 21 साल बाद 13 मार्च 1940 को रॉयल सेंट्रल एशियन सोसायटी की लंदन के काक्सटन हाल में बैठक थी, इस बैठक में माइकल ओ डायर को भी वक्ता के रुप में बुलाया गया था। उधम सिंह भी उस दिन बैठक स्थल पर पहुंच गए। उन्होंने स्टाइल से अपनी रिवॉल्वर एक मोटी किताब में छिपा ली थी।किताब को रिवाल्वर में छिपाने के लिए उन्होंने किताब के पृष्ठों को रिवॉल्वर के आकार में उस तरह से काट लिया था, जिससे उसे आसानी से छिपाया जा सके। बैठक के बाद दीवार के पीछे से उन्होंने माइकल ओ डायर पर गोली चलाई, जिनमें से दो गोलियां माइकल ओ डायर को लगीं जिससे उनकी तत्काल मौत हो गई। गोली मारने के बाद उन्होंने वहां से भागने की कोशिश भी नहीं की बल्कि अपनी गिरफ्तारी दे दी। गिरफ्तारी के बाद उन पर मुकदमा चला। मुकदमे के बाद 4 जून 1940 को उधम सिंह को हत्या का दोषी ठहराया गया और 31 जुलाई 1940 को उन्हें पेंटनविले जेल में फांसी दे दी गई। 

उधम सिंह खुद का नाम मोहम्मद सिंह आजाद लिखते थे
विदेशों में वे फ्रैंक ब्राजील और बावा सिंह के नाम से रहते रहे, अपनी निजी डायरी में वे अपना नाम सिर्फ मोहम्मद सिंह आजाद (एमएस आजाद) ही लिखते थे। अपने हस्तलिखित पत्रों में उन्होंने एमएस आजाद के नाम के हस्ताक्षर किए थे। 13 मार्च 1940 को माइकल ओ डायर को मारने के बाद वहां की दो जेलों में बंद रहे ऊधम सिंह ने दर्जनों पत्र लिखे। सभी पर उन्होंने अपना नाम एमएस आजाद ही लिखा। रेलवे में तैनात अधिकारी राकेश कुमार की प्रकाशित पुस्तक महान गदरी इंकलाबी शहीद ऊधम सिंह में भी इसका जिक्र है। ब्रिटिश अधिकारियों को चकमा देने और भारतीयों के मन में धर्मनिरपेक्षता की आवाज बुलंद करने के लिए उन्होंने खुद को मोहम्मद सिंह आजाद के नाम से स्थापित किया था।

एक नज्म से गहरा लगाव
                           सेवा देश दी जिंदड़ीए बड़ी ओखी, गल्लां करनियां ढेर सुखालियां ने,
                           जिन्हां देश सेवा विच्च पैर धरया, ओहना लख मुसीबतां झलियां ने।
आजादी के संग्राम के तीन महानायकों को पंजाबी की इस नज्म ने एकसूत्र में बांधे रखा था। शहीद करतार सिंह सराभा, शहीद भगत सिंह और शहीद ऊधम सिंह इस नज्म को अक्सर गुनगुनाते थे। भले ही तीनों शहीदों को एक साथ देश सेवा करने का अवसर नहीं मिला हो, लेकिन तीनों परवाने, एक-दूसरे की विचारधारा और जज्बात के खूब कायल थे।

पंजाबी की यह नज्म इस बात का भी प्रमाण है कि देश पर मर मिटने वाले शहीदों में लिखने की अदभुत कला थी। आजादी के परवानों की शायरी और कई नज्में वर्तमान दौर में नौजवानों के लिए प्रेरणास्रोत है। शहीद ऊधम सिंह उक्त नज्म को इस कदर अपने दिल में बसाए हुए थे कि लंदन में माइकल ओ डायर को मारने के बाद अदालत में कई बार अपने साथ लेकर गए पन्नों पर इस नज्म को भी लिखकर ले गए थे। इतना ही नहीं ओ डॉयर को मारने के बाद ब्रिटिश पुलिस ने जब लंदन स्थित उनके घर की तलाशी ली गई तो वहां से मिली लाल रंग की निजी डायरी में भी ऊधम सिंह ने इस नज्म को पंजाबी में लिखा हुआ था।

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