80 की उम्र में इंटरनेशनल हो गईं उमरिया की जोधइया बाई, जानें क्यों दुनिया ने माना लोहा
नाम- जोधइया बाई बैगा उम्र- 80 साल शैक्षणिक योग्यता-शून्य कला ऐसी की मध्य प्रदेश के उमरिया जिले के छोटा से गांव लोढ़ा से इटली के मिलान तक का सफर किया। पढ़ें दिलचस्प कहानी...
संजय कुमार शर्मा, उमरिया। नाम- जोधइया बाई बैगा, उम्र- 80 साल। शैक्षणिक योग्यता-शून्य। निवास- मध्य प्रदेश के आदिवासी बहुल उमरिया जिले का एक छोटा सा गांव लोढ़ा, लेकिन उड़ान आसमान से भी ऊंची। बस इतना सा बायोडाटा है उस साधारण सी दिखने वाली आदिवासी महिला जोधइया बाई का, जो अब इंटरनेशनल शख्सियत बन गई हैं। उनके उकेरे चित्रों की प्रदर्शनी इटली के मिलान शहर में लगी हुई है, जो 11 अक्टूबर तक चलेगी।
भोपाल से इटली के मिलान तक का सफर
80 की उम्र में जब उम्मीदें टूट जाती हैं तब जोधइया बाई की उड़ान अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शुरू हुई है। इटली के मिलान शहर में लगी उनके चित्रों की प्रदर्शनी की सबसे खास बात यह है कि इसके लिए जोधइया बाई ने अपनी तरफ से कोई कोशिश नहीं की, बल्कि उनकी कलाकृतियां ही ऐसी थीं, जिनसे प्रभावित होकर लोगों ने उन्हें वहां तक पहुंचा दिया। स्थानीय कला प्रेमी आशीष स्वामी की नजर इन चित्रों पर पड़ी, जिन्होंने भोपाल के बोन ट्राइवल आर्ट में ट्राइबल आर्ट की जानकार पद्मजा श्रीवास्तव को इसकी जानकारी दी। सभी इनसे इतने प्रभावित हुए कि इन चित्रों को अंतरराष्ट्रीय मंच पर पहुंचाने का मन बनाया। इटली की गैलेरिया फ्रांसिस्को जनूसो संस्था से संपर्क किया गया। वे भी जोधइया बाई के चित्रों से प्रभावित हुए और उन्हें इटली में प्रदर्शित करने की स्वीकृति दे दी। इस तरह जोधइया बाई की कला देश की सरहद को लांघकर इटली पहुंच गई।
इंवीटेशन कार्ड पर भी जोधइया का चित्र
मिलान की आर्ट गैलरी में लगी जोधइया बाई के चित्रों की प्रदर्शनी के शुभारंभ के लिए खास डिजाइन किए गए कार्ड बांटे गए हैं। इस कार्ड पर भगवान शंकर का जो चित्र छापा गया है, वह भी जोधइया बाई का बनाया हुआ है। कार्ड पर छपे इस चित्र के नीचे जोधइया बाई के साइन (चिह्न्) भी हैं।दुख ही जीवन की कथा रही : जोधइया बाई के जीवन की कथा भी निराला जी की सरोज स्मृति जैसी है।
दुख ही जीवन की कथा रही
क्या कहूं जो नहीं कही के भावों के साथ वह एक दिशा में देखती रह जाती हैं, जब उनसे उनके बारे में पूछा जाता है। आंखें छलकती नहीं हैं, लेकिन हर समय समुद्र की तरह लबालब रहती हैं। जोधइया बाई ने नईदुनिया को बताया कि सिर्फ 30 की उम्र में पति का साथ छूट गया और बच्चों को पालने के लिए मजदूरी ही एक रास्ता बचा। पति की मौत के बाद उन्होंने माटी-गारे का काम किया। जंगल में हिंसक जानवरों के बीच चारा काटा। लोगों के खेतों में मजदूरी की। उन्होंने कभी स्कूल का मुंह भी नहीं देखा था इसलिए इस तरह की मजदूरी ही अपना और बच्चों के पेट पालने का साधन रही।
संस्कृति ने दी उड़ान
जोधइया बाई ने बताया कि आदिवासी संस्कृति के बीच अपने कठिन समय को गुजारते हुए उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि उनकी अपनी संस्कृति एक दिन उन्हें पहचान दिलाएगी। 35 साल बीते तब उन्हें वो रास्ता मिला, जिसने उसे आदिवासी कला की मंजिल तक पहुंचाया। आज जोधइया 80 पार की हैं और बीते 15 सालों में उसने आदिवासी कला के क्षेत्र में जो इतिहास रचा है उस तक पहुंचना सबके बस की बात नहीं है।
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