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    बड़े अजीब हैं छत्तीसगढ़ के गांव के नाम और इनसे जुड़ी ये कहानियां, आप भी देखें

    By Sachin BajpaiEdited By:
    Updated: Tue, 01 Jan 2019 11:27 PM (IST)

    गांव के प्रेरक रत्नाकर प्रधान बताते हैं कि गांव का नाम देश की आजादी के पूर्व से प्रचलित है।

    बड़े अजीब हैं छत्तीसगढ़ के गांव के नाम और इनसे जुड़ी ये कहानियां, आप भी देखें

    महासमुंद, जेएनएन। जुलाई 1998 में अविभाजित मध्यप्रदेश के 61वें जिले के तौर पर महासमुंद अस्तित्व में आया। अब यह पृथक छत्तीसगढ़ राज्य का जिला है। जिले में महासमुंद, बागबाहरा, बसना, पिथौरा और सरायपाली कुल पांच तहसील हैं। 34 राजस्व निरीक्षक सर्किल है। 35 विरान गांव हैं। 1102 आबाद गांव हैं। इन गांवों में से कई गांव खास हैंं। वजह इन गांवों का नाम है।

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    जिले में पंचायतों के आश्रित सहित ऐसे कई विरान गांव हैं जिनके नाम को जानकर लोग सहसा रुक जाते हैं और दोबारा इसके नामकरण का कारण पूछते हैं, ऐसे नाम की वजह भी पूछ लेते हैं। इन्हीं में से एक गांव है पिथौरा ब्लॉक के ग्राम पंचायत मोहगांव के आश्रित गांव आरबी चिपमेन। जी हां, आरबी चिपमेन गांव का नाम सुनकर हर किसी को यह लगता है कि यह कैसा गांव है। गांव के प्रेरक रत्नाकर प्रधान बताते हैं कि गांव का नाम देश की आजादी के पूर्व से प्रचलित है।

    गांव की आबादी छह सौ है। गांव का नाम सुनकर लोग इसे क्रिश्चन गांव होना सोचते हैं, जबकि एकमात्र क्रिश्चन परिवार गांव में है। गांव में सभी समाज के लोग रहते हैं। ग्रामीण चंद्रशेखर साहू का कहना है कि आजादी के पूर्व जमींदारों से अंग्रेजों की नहीं बनी तो जमींदार की जमीन का दो हिस्सा हुआ। एक का नाम पतेरापाली और दूसरे का नाम अंग्रेजी शासक रूबि बिलियम चिपमेन के नाम पर हो गया। तब से गांव को इस नाम से जाना जाता है।

    चंद्रशेखर ने बताया कि गांव का नाम सुनकर बाहर का हर व्यक्ति रूकता है। दोबारा पूछता है और नाम की वजह भी पूछता है। चंद्रशेखर ने कहा कि देश में अपने अद्वितीय नाम की वजह से ही आरबी चिपमेन गांव और यहां के लोग अन्य लोगों के स्मृति में हमेशा बने रहते हैं। इसलिए गांव के लोग यह नाम बदलना नहीं चाहते।

    पिथौरा ब्लॉक के आरंगी पंचायत का आश्रित गांव है नरसैरयापल्लम। गांव का नाम सुनकर लोगों को दक्षिण भारत के किसी गांव का आभास होता है। यहां 500 की आबादी है। 90 फीसद आदिवासी हैं। गांव के सरपंच श्यामलाल बहावल के पुन बंशी बताते हैं कि 1930 के पहले गांव का नाम तरसै्रयापल्लम था। तब इस गांव में लोग नहीं रहते, सुविधाएं नहीं थी। जिस वजह से पूर्व के लोगों ने ऐसा नाम रखा। 1930 में तत्कालीन तहसीलदार ने गांव में आबादी देखकर नरसै्रयापल्ल्म कर दिया। बंशी कहते हैं कि पूर्व में नाम बदलने का विचार लोगों के मन में आया, लेकिन क्षेत्र में इस तरह का अकेला नाम होने की वजह से नहीं बदला गया।

    बसना ब्लॉक के रंगमटिया पंचायत का आश्रित व विरान गांव है लोटाखालिया। रंगमटिया निवासी सुंदर सिंह बरिहा बताते हैं कि गांव विरान है इसीलिए इसका नाम लोटाखालिया है। पूर्व से यह विरान गांव इसी नाम से प्रचलन में है।

    बसना ब्लॉक के ग्राम पंचायत बिजराभांठा का आश्रित गांव है मिलाराबाद। गांव का नाम सुनकर किसी मुस्लिम शासक के जरिए बसाया गांव लगता है, लेकिन ऐसा नहीं है। सरपंच संतलाल नायक का कहना है कि सरकारी रिकार्ड में मिलाराबाद गांव है, इसका नाम इसलिए ऐसा हुआ क्योंकि दो गांवों में झगड़ा हुआ, दोनों अलग हुए। कुछ समय बाद दोनों गांव मिल गए। तब इसका नाम मिलाराबाद हुआ।

    ऐसे और भी हैं कई गांव
    जिले में सांई सरायपाली पंचायत में लावा महुआ, झांपी महुआ, बड़ेटमरी पंचायत में सरीफाबाद, बसना ब्लॉक में हेडसपाली, सरायपाली ब्लॉक में डुडुमचुंवा, प्रेतनडीह, बागविल विरान गांव, पंचायत घाटकछार में माकरमुता आदि गांव हैं, जिनका नाम सुनकर लोग दूसरी बार नाम पूछते हैं।