अब नहीं सताएगा सिलीगुड़ी कारिडोर टूटने का डर, म्यांमार और बांग्लादेश के तीन बंदरगाहों का भारत करेगा इस्तेमाल
भारत को जहां पूर्वोत्तर राज्यों के लिए एक नया मार्ग मिल जाएगा वहीं बांग्लादेश को उम्मीद है कि उसके कपड़े चमड़ा उद्योग और मशीनरी उद्योग को भारत का बड़ा ...और पढ़ें

नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। चीन के साथ युद्ध की स्थिति में सिलीगुड़ी कारिडोर यानी चिकेन नेक टूटने से पूर्वोत्तर राज्यों का शेष भारत से संपर्क खत्म होने के भय पर भारत सरकार ने तकरीबन फतह पा ली है। वजह यह है कि पिछले एक हफ्ते के भीतर पहले बांग्लादेश सरकार ने भारत को अपने चटगांव और मोंगला पोर्ट से सामान ढुलाई की इजाजत दी तो नौ मई को कोलकाता के श्यामा प्रसाद मुखर्जी पोर्ट से निकलने वाला कार्गो शिपमेंट पहली बार म्यांमार के सित्तवे पोर्ट पर पहुंचेगा।
अहम हैं तीनों परियोजनाएं
भारत दो दशकों से इस कोशिश में था कि इन तीनों बंदरगाहों का इस्तेमाल पूर्वोत्तर राज्यों के साथ संपर्क स्थापित करने के लिए किया जाए। रणनीतिक विशेषज्ञ इसे भारत सरकार की एक अहम रणनीतिक कामयाबी के तौर पर देख रहे हैं। तीनों परियोजनाओं को म्यांमार व बांग्लादेश के साथ द्विपक्षीय रिश्तों को तय करने में भी अहम मान रहे हैं।
पहले ही हो चुकी है पीएम मोदी और पीएम हसीना की इस विषय पर चर्चा
बांग्लादेश की शेख हसीना सरकार ने पिछले हफ्ते भारत को चटगांव और मोंगला पोर्ट का कार्गो शिपमेंट के स्थाई इस्तेमाल की इजाजत दे दी। इस बारे में दोनों देशों के बीच पहला समझौता 2010 में हुआ था। इसके बारे में पिछले पांच वर्षों के दौरान पीएम नरेन्द्र मोदी और पीएम शेख हसीना के बीच हुई तीन मुलाकातों में विस्तार से चर्चा हुई है। ये दोनों बंदरगाह पड़ोसी देश के दो सबसे बड़े पोर्ट हैं। भारत की योजना सिर्फ चटगांव पोर्ट को आठ मार्गों से असम, मेघालय और त्रिपुरा को जोड़ने की है। दोनों देश इसे अपने फायदे के तौर पर देख रहे हैं।
इससे पूर्वोत्तर राज्यों को मिलेगा नया रास्ता
भारत को जहां पूर्वोत्तर राज्यों के लिए एक नया मार्ग मिल जाएगा, वहीं बांग्लादेश को उम्मीद है कि उसके कपड़े, चमड़ा उद्योग और मशीनरी उद्योग को भारत का बड़ा बाजार मिलेगा। भारत इन मार्गों के निर्माण में सहयोग के लिए जापान से भी चर्चा कर रहा है। हाल ही में जब जापान के पीएम फुमियो किशिदा नई दिल्ली आए थे, तब इस बारे में बात हुई थी। भारत, जापान और बांग्लादेश के बीच कनेक्टिविटी परियोजनाओं के विकास को लेकर त्रिपक्षीय समझौते की संभावना पर भी चर्चा हो रही है।
पूर्वोत्तर राज्यों को आवश्यक सामग्री भेजने के लिए मिल जाएगा एक और विकल्प
म्यांमार में सत्ता परिवर्तन के बाद सित्तवे पोर्ट को लेकर जो अनिश्चितता के बादल छाए थे वह अब समाप्त हो चुके हैं। माना जा रहा था कि चीन के प्रभाव वाली म्यांमार की सैन्य सरकार इस बंदरगाह को लेकर उदासीन हो जाएगी, लेकिन भारत ने सैन्य सरकार से नाता नहीं तोड़ा। अब यह बंदरगाह परिचालन के लिए तैयार है। इससे पूर्वोत्तर राज्यों को आवश्यक सामग्री भेजने के लिए एक और विकल्प मिल जाएगा। अभी तक सिर्फ सिलीगुड़ी कारिडोर ही एकमात्र विकल्प था। अब उक्त तीनों बंदरगाहों के संचालन की अनुमति मिलने के बाद भारत की वैकल्पिक व्यवस्था ज्यादा मजबूत दिखने लगी है।
भारत के लिए क्यों खास है चिकेन नेक
सिलीगुड़ी गलियारा यानी 'चिकेन नेक' बंगाल में स्थित है। इसकी लंबाई 60 किमी है और यह 20 किमी चौड़ा है। यह कारिडोर पूवोत्तर के राज्यों को भारत के बाकी हिस्सों से जोड़ता है। यह गलियारा न केवल एक जरूरी व्यापार मार्ग है, बल्कि दक्षिण-पूर्व एशिया के लिए भी महत्वपूर्ण प्रवेश द्वार है। चीन की नजर हमेशा से इस पर रहती है। इसकी निगरानी करने के लिए ही उसने 2017 में डोकलाम संकट पैदा किया था। डोकलाम के आसपास वह लगातार अपनी मोर्चेबंदी मजबूत कर रहा है।

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