अब लदने चाहिए अंग्रेजों के जमाने के कानूनों के दिन, नए दंड विधान की संहिता लागू करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में PIL
देश में अंग्रेजों के जमाने वाले कानूनों की जगह नए कानून लागू करने की जरूरत महसूस होने लगी है। सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दाखिल हुई है जिसमें 161 साल पुरानी आइपीसी को खत्म कर समग्र कड़े दंड विधान वाली नई आइपीसी लागू करने की मांग की गई है।

नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। देश में अंग्रेजों के जमाने वाले कानूनों की जगह नए कानून लागू करने की जरूरत महसूस होने लगी है। सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दाखिल हुई है जिसमें 161 साल पुरानी आइपीसी (भारतीय दंड संहिता) को खत्म कर समग्र कड़े दंड विधान वाली नई आइपीसी लागू करने की मांग की गई है। इस याचिका में भ्रष्टाचार और आपराधिक कानूनों का अध्ययन कर समय की जरूरत के मुताबिक समग्रता के साथ कड़े कानूनी प्रविधान करने की मांग की गई है। पूरे देश में समान अपराध के लिए समान दंड की व्यवस्था होनी चाहिए। याचिका में कहा गया कि आइपीसी में माब लिंचिंग (भीड़ द्वारा पीट-पीट कर मार देना), आनर किलिंग, वाइट कालर क्राइम, आर्थिक और वित्तीय अपराधों को उचित महत्व नहीं मिला है। ये ज्यादातर अपराध आज के दौर के हैं। आइपीसी में इसके लिए पर्याप्त प्रविधान नहीं हैं।
अनुभवी लोगों की मदद लेने का सुझाव
सुप्रीम कोर्ट में यह जनहित याचिका भाजपा नेता और वकील अश्वनी कुमार उपाध्याय ने दाखिल की है जिसमें मांग की गई है कि केंद्र सरकार को निर्देश दिया जाए कि वह एक न्यायिक आयोग या विशेषज्ञ समिति गठित करे, जिसमें सेवानिवृत्त जज, आइएएस, आइपीएस, सालिसिटर जनरल या एडीशनल सालिसिटर जनरल, एडवोकेट जनरल या एडीशनल एडवोकेट जनरल, सामाजिक कार्यकर्ता और पत्रकार शामिल हों और ये भ्रष्टाचार और अपराध के बारे में सभी घरेलू आंतरिक कानूनों का अध्ययन करके समग्र, सख्त कानून वाली आइपीसी का ड्राफ्ट तैयार करें, जो कि एक देश-एक दंड विधान की अवधारणा पर आधारित हो। इससे कानून के समक्ष बराबरी और कानून में समान संरक्षण का अधिकार सुनिश्चित हो सकेगा।
केंद्र सरकार को न्यायिक आयोग या विशेषज्ञ समिति गठित करने का निर्देश दिए जाने की मांग
वैकल्पिक मांग में कहा गया है कि या तो कोर्ट विधि आयोग को निर्देश दे कि वह घरेलू आपराधिक कानूनों का अध्ययन कर कड़े दंड विधान की संहिता (आइपीसी) का ड्राफ्ट छह महीने में तैयार करे। यह भी मांग की गई कि केंद्र सरकार को निर्देश दिया जाए कि वह एक देश एक दंड विधान की तर्ज पर कड़े कानून की समग्र भारतीय दंड संहिता लागू करने की संभावनाएं देखे।
अंग्रेज शासकों ने अपनी सुविधा के लिए बनाए थे कानून
याचिका में कहा गया है कि अंग्रेजों ने 1860 में आइपीसी (इंडियन पीनल कोड) अपनी जरूरतें पूरी करने के लिए बनाई थी न कि भारतीयों को न्याय दिलाने के लिए। ये अंग्रेजों के भारत पर शासन करने और मालिक-नौकर की अवधारणा पर आधारित है। 161 साल पुरानी आइपीसी में सामाजिक आर्थिक बदलाव और तकनीकी उन्नति को देखते हुए बहुत से प्रविधान अप्रचलित हो गए हैं। 1860 में आइपीसी और 1861 में पुलिस एक्ट बनाने के पीछे अंग्रेजों का मुख्य उद्देश्य 1857 जैसी क्रांति को दुबारा होने से रोकना था।
मुद्दे की बात -
कहा 161 साल पुरानी आइपीसी में सामाजिक आर्थिक बदलाव और तकनीकी उन्नति को देखते हुए बहुत से प्रविधान अप्रचलित हो गए हैं
- विच हंटिंग, आनर किलिंग , गुंडा एक्ट, माब लिंचिंग आइपीसी में नहीं हैं, जबकि ये पूरे देश में होते हैं।
- कुछ राज्यों ने इनके खिलाफ कानून बनाया लेकिन एक ही अपराध के लिए अलग राज्यों में अलग सजा है। ये कानून के समक्ष बराबरी के अधिकार का उल्लंघन है।

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