महिला श्रमिकों से पीरियड का सुबूत मांगने से जुड़ी याचिका पर केंद्र को नोटिस, सुप्रीम कोर्ट इस मामले पर सख्त
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को केंद्र सरकार और अन्य से जवाब मांगा, जिसमें आरोप लगाया गया है कि रोहतक (हरियाणा) के महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय में महिला सफाई कर्मचारियों को अपने निजी अंगों की तस्वीरें दिखाकर यह साबित करने के लिए कहा गया कि वे पीरियड से गुजर रही हैं। जस्टिस बीवी नागरत्ना और आरमहादेवन की पीठ ने मामले में केंद्र सरकार और अन्य को नोटिस जारी किया है।

महिला श्रमिकों से पीरियड का सुबूत मांगने से जुड़ी याचिका पर केंद्र को नोटिस (फोटो- एक्स)
पीटीआई, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को केंद्र सरकार और अन्य से जवाब मांगा, जिसमें आरोप लगाया गया है कि रोहतक (हरियाणा) के महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय में महिला सफाई कर्मचारियों को अपने निजी अंगों की तस्वीरें दिखाकर यह साबित करने के लिए कहा गया कि वे पीरियड से गुजर रही हैं। जस्टिस बीवी नागरत्ना और आर महादेवन की पीठ ने मामले में केंद्र सरकार और अन्य को नोटिस जारी किया है।
जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि यह लोगों की मानसिकता को दर्शाता है
जस्टिस नागरत्ना न कहा कि यह लोगों की मानसिकता को दर्शाता है। कर्नाटक में महिलाओं को मासिक धर्म के दौरान छुट्टी दी जाती है। इस खबर को पढ़ने के बाद मैंने सोचा कि क्या वे छुट्टी देने के लिए सुबूत मांगेंगे? यदि महिलाओं की अनुपस्थिति के कारण कोई भारी काम नहीं किया जा सका, तो किसी और को तैनात किया जा सकता था। हमें उम्मीद है इस याचिका से कुछ अच्छा होगा।
31 क्टूबर को यौन उत्पीड़न का मामला दर्ज किया गया
पुलिस ने बताया कि महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय से जुड़े तीन लोगों पर 31 अक्टूबर को यौन उत्पीड़न का मामला दर्ज किया गया था। ऐसा आरोप है कि उन्होंने महिला सफाई कर्मचारियों से उनके निजी अंगों की तस्वीरें दिखाकर यह साबित करने के लिए कहा था कि उन्हें मासिक धर्म हो रहा है।
15 दिसंबर की तारीख तय की गई है
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष और वरिष्ठ अधिवक्ता विकास सिंह ने कहा कि यह एक गंभीर आपराधिक मामला है और इस पर ध्यान देने की जरूरत है। याचिका पर अगली सुनवाई के लिए 15 दिसंबर की तारीख तय की गई है।
याचिका में कथित घटना की विस्तृत जांच करने के लिए केंद्र और हरियाणा को निर्देश देने का अनुरोध किया गया है। बार एसोसिएशन ने यह सुनिश्चित करने के लिए दिशा-निर्देश भी मांगा है कि मासिक धर्म के दौरान महिलाओं और लड़कियों के स्वास्थ्य, सम्मान, शारीरिक स्वायत्तता और निजता के अधिकार का उल्लंघन न हो।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद फिर अपील, आयकर विभाग को फटकार
सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले में फैसला आने के बाद दोबारा अपील दायर करने पर आयकर विभाग को फटकार लगाई है। कोर्ट ने कहा कि ऐसी तुच्छ हरकतोंकी वजह से ही अदालतों में लंबित मामलों की संख्या बढ़ रही है।
न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना और आर महादेवन ने कहा कि ऐसे मामलों की वजह से मुकदमों की संख्या बढ़ती है और न्यायिक समय की बर्बादी होती है। हम ये नहीं समझ पा रहे कि विभाग इस मामले में लगातार विशेष अनुमति याचिकाएं क्यों दायर कर रहा है, जबकि कोर्ट पूर्व में फैसला दे चुका है।
पीठ ने कहा कि जब एक बार सुप्रीम कोर्ट की एक पीठ विशेष अनुमति याचिका को खारिज कर चुकी है तो विभाग को दोबारा ये याचिकाएं दायर ही नहीं करनी चाहिए थीं। पीठ ने कहा कि आयकर विभाग के पास मुकदमेबाजी नीति होनी चाहिए। इससे पहले भी सुप्रीम कोर्ट आयकर विभाग को अपने ही सर्कुलर का पालन न करने पर फटकार लगा चुका है।
चेक बाउंस केस वहीं दर्ज होगा, जहां शिकायतकर्ता की होम ब्रांच: सुप्रीम कोर्ट
चेक बाउंस के मामले में अहम फैसला देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि ऐसे मामले केवल उस कोर्ट में दायर किए जा सकते हैं, जिसके अधिकार क्षेत्र में शिकायतकर्ता (प्राप्तकर्ता) की होम ब्रांच स्थित है।
चेक बाउंस के मामले में अक्सर न्यायिक क्षेत्र से जुड़ा सवाल खड़ा होता है कि नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट, 1881 की धारा 138 के तहत चेक डिसआनर मामले की शिकायत किस अदालत में दायर की जाए। अधिनियम की धारा 138 बैंक खाते में धनराशि की कमी की वजह से बाउंस हुए चेक से जुड़ी है।
न्यामूर्ति जेपी पार्डीवाला और आर महादेवन की पीठ ने चेक बाउंस मामले में दायर कुछ स्थानांतरण याचिकाओं पर विचार करते हुए कानूनी उलझन का समाधान किया।
पीठ ने कहा कि किसी खाते के माध्यम से वसूली के लिए दिए गए चेक यानी खाताधारक चेक के संबंध में धारा 138 के तहत दायर शिकायत पर सुनवाई का अधिकार उस कोर्ट के पास है, जिसके न्यायिक क्षेत्र में बैंक की वह शाखा आएगी, जिसमें प्राप्तकर्ता ने अपना खाता रखा है, यानी प्राप्तकर्ता की होम ब्रांच।
मामले को लेकर याचिकाकर्ताओं ने वकील कौस्तुभ शुक्ला के जरिये सुप्रीम कोर्ट में केस दायर किया था। अपने फैसले में पीठ ने नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट (अमेंडमेंट) एक्ट, 2015 का भी उल्लेख किया। कोर्ट ने गौर किया कि 2015 में संशोधन से पहले ये मामला क्षेत्रीय अधिकार से संबंधित मुद्दा काफी जटिल था।
बिहार पुल विवाद पर सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के आदेश को पलटा
सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में पटना हाई कोर्ट का वह आदेश रद कर दिया है, जिसने बिहार की एक बड़ी निर्माण परियोजना से जुड़ी मध्यस्थता प्रक्रिया को रोक दिया था। कोर्ट ने साफ कहा कि न्यायिक आदेशों की निश्चितता और मध्यस्थता प्रक्रिया की विश्वसनीयता के साथ छेड़छाड़ बर्दाश्त नहीं की जा सकती। अदालत सोन नदी पर पुल बनने के मामले में सुनवाई कर रही थी।
सुप्रीम कोर्ट ने हिंदुस्तान कंस्ट्रक्शन कंपनी लिमिटेड और बिहार राज्य पुल निर्माण निगम लिमिटेड के बीच चल रही मध्यस्थता में हाई कोर्ट के हस्तक्षेप को गलत ठहराया।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाई कोर्ट स्वयं 2021 में मध्यस्थ नियुक्त कर चुका था और दोनों पक्ष तीन साल तक 70 से अधिक सुनवाई में शामिल रहे थे।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाई कोर्ट बाद में अपने ही आदेश को निरस्त नहीं कर सकता, खासकर तब जब उसने दो बार मध्यस्थ का कार्यकाल भी बढ़ाया हो।

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