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चीन और दक्षिण कोरिया के धागों से नहीं, अब महिलाएं करेंगी पूर्ण स्वदेशी बुनाई

जटिल प्रक्रिया के चलते अब तक बुनकर ताना के लिए चीन व दक्षिण कोरिया पर निर्भर थे। चीन से तल्की और कोरोना काल में धागों का आयात बंद हो गया। इसी दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आत्मनिर्भर भारत अभियान का सकारात्मक प्रभाव दिखा।

By Arun Kumar SinghEdited By: Published: Wed, 18 Nov 2020 07:13 PM (IST)Updated: Wed, 18 Nov 2020 07:13 PM (IST)
चीन और दक्षिण कोरिया के धागों से नहीं, अब महिलाएं करेंगी पूर्ण स्वदेशी बुनाई
केंद्रीय रेशम बोर्ड अनुसंधान एवं प्रशिक्षण केंद्र बेंगलु की मशीन।

 सुरेश देवांगन, कोरबा। हाथकरघे पर कोसा कपड़े की बुनाई के लिए अब छत्तीसगढ़ के बुनकर चीन और दक्षिण कोरिया के बजाय स्वदेशी ताना (लंबवत या वर्टीकल धागा) का उपयोग करेंगे। केंद्रीय रेशम बोर्ड अनुसंधान एवं प्रशिक्षण केंद्र बेंगलु में इसके लिए मशीन तैयार किया है। कोरबा भेजी गई इन मशीनों से महिला समूहों को ताना बनाने का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। कोरबा जिले में 12,000 हेक्टेयर वन क्षेत्र में प्रति वर्ष दो करोड़ 50 लाख (लच्छी) नग कोसा का उत्पादन होता है। कपड़े की बुनाई के लिए लंबवत (वर्टीकल) धागा (ताना) काफी मजबूत और चौड़ा (हारिजांटल) धागा (बाना) सामान्य होता है। जटिल प्रक्रिया के चलते अब तक बुनकर ताना के लिए चीन व दक्षिण कोरिया पर निर्भर थे। चीन से तल्की और कोरोना काल में धागों का आयात बंद हो गया। इसी दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आत्मनिर्भर भारत अभियान का सकारात्मक प्रभाव दिखा। 

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आधुनिक वेट रीलिंग मशीन से हो रहा तैयार

जिला रेशम एवं तसर केंद्र के सहायक उप संचालक बीपी विश्वास ने बताया कि केंद्रीय रेशम बोर्ड अनुसंधान बेंगलु के सहयोग से प्रदेश की पहली वेट रीलिंग यूनिट की स्थापना कोसाबाड़ी में की गई है। यहां 20 रीलिंग, 12 बुनियादी और 10 स्पिनिंग मशीन लगाई गई है। इस पर 12 समूह की 40 महिलाएं प्रशिक्षण ले रही हैं। वे सभी एक माह के अंदर ताना बनाने में दक्ष हो जाएंगी। सब्सिडी दर पर महिला समूहों को रेशम बोर्ड मशीनें उपलब्ध कराएगा। इससे होने वाली कमाई से आसान किस्तों में मशीन की कीमत चुकाने की सुविधा दी जाएगी।

हर साल 8000 किलोग्राम की खपत

जिले के छुरी और उमरेली में 400 बुनकर हैं। इसके पास प्रति वर्ष 8000 किलोग्राम ताना की खपत है। वेट री¨लग इकाई कोसाबाड़ी में हर साल 3000 किलोग्राम रेशम के धागे का उत्पादन होगा। धीरे-धीरे इसकी क्षमता बढ़ाई जाएगी।

प्रति किलो 1500 रुपये की बचत

पहले 7000 रुपये प्रति किलो में बुनकर विदेशी ताना खरीदते थे। वहीं एक किलो स्वदेशी ताना के निर्माण में 5500 रुपये की लागत आएगी। इस तरह प्रति किलो 1500 रुपये की बचत होगी। ज्यादातर बुनकर परिवार की महिलाएं ही इसका प्रशिक्षण ले रही हैं ताकि घर पर ही इसे तैयार कर अतिरिक्त लाभ कमा सकें। यहां तैयार होने वाले कोसे की साड़ी व कुर्ते की विदेश में भी मांग है।


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