सौर ऊर्जा संयंत्रों के प्रदर्शन मूल्यांकन की कोई पुख्ता व्यवस्था नहीं, संसदीय समिति ने जताई चिंता
संसदीय समिति ने सौर ऊर्जा संयंत्रों के प्रदर्शन मूल्यांकन के लिए किसी पुख्ता व्यवस्था के अभाव पर चिंता व्यक्त की है। समिति ने इस मुद्दे पर सरकार से जव ...और पढ़ें

सौर ऊर्जा। जागरण
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। भारत सौर ऊर्जा क्षमता स्थापित करने में दुनिया में दूसरे स्थान पर आ गया है लेकिन ताज्जुब की बात यह है कि यहां सौर विद्युत संयंत्रों के प्रदर्शन का आकलन करने की कोई विश्वसनीय और मानकीकृत व्यवस्था मौजूद नहीं है। इस बात की तरफ नवीन एवं नवीककरणीय ऊर्जा मंत्रालय (एमएनआरई) पर संसदीय स्थायी समिति ने अपनी ताजा रिपोर्ट में इशारा किया है और इस पर गंभीर प्रतिक्रिया भी जताई है।
समिति ने बेहद कड़ा रुख अपनाते हुए इसे देश की ऊर्जा क्षेत्र में एक गंभीर खामी के तौर पर चिन्हित किया है। साथ ही मंत्रालय और राष्ट्रीय सौर ऊर्जा संस्थान (एनआइएसई) से तत्काल सौर संयंत्र रेटिंग फ्रेमवर्क को अंतिम रूप देने को कहा है। रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्तमान में सौर संयंत्रों की गुणवत्ता और प्रदर्शन का मूल्यांकन केवल बिजली उत्पादन, परियोजना की देरी और आर्थिक पहलुओं के आधार पर विभिन्न सॉफ्टवेयर से किया जाता है लेकिन यह तरीका अपर्याप्त और असमान है।
समिति को मंत्रालय ने बताया कि एनआइएसई फोटोवोल्टेइक संयंत्रों के लिए रेटिंग दिशानिर्देश तैयार करने का काम अंतिम रूप में है, लेकिन प्लांट रेटिंग पैरामीटर और उनके प्रभाव की पहचान का शोध अभी प्रारंभिक चरण में है। वैसे एनआइएसई दो नए टूल विकसित कर रहा है - रिस्क प्रायोरिटी नंबर (आरपीएन) जिससे संयंत्र के फेल होने की संभावना और उसकी पहचान की संभावना को अंकीय स्केल पर मापा जा सकेगा। दूसरा, कॉस्ट प्रायोरिटी नंबर (सीपीएन)।
उल्लेखनीय बात यह है कि नवीकरणीय ऊर्जा पर काम करने वाले सभी प्रमुख देश यह तैयारी कर चुके हैं। समिति का कहना है कि विश्व के कई शोध संस्थान इस दिशा में काफी आगे बढ़ चुके हैं, जबकि भारत में यह कार्य अभी प्रारंभिक दौर में है। वैसे यह काम चुनौतीपूर्ण है फिर भी नीति-निर्माताओं, डेवलपर्स और निवेशकों के लिए विश्वसनीय मूल्यांकन तंत्र का होना अत्यावश्यक है। इसके अभाव में सौर क्षमता, भूमि और अन्य संसाधनों का अधिकतम उपयोग नहीं हो सकता।
देश में सौर क्षमता से अधिकतम कितनी बिजली बनाई जा सकती है, इसका भी सटीक आकलन करने को कहा है ताकि भविष्य के लिए ज्यादा ठोस नीतियां बनाई जा सके। इस बारे में 2014 में सरकार का आकलन ता कि अधिकतम 7.50 लाख मेगावाट बिजली सौर ऊर्जा से बनाई जा सकेगी। लेकिन इसका फिर से निर्धारण किया जा रहा है। जिसमें उच्च-रिजॉल्यूशन वाले भू-स्थानिक डेटा, भूमि उपयोग, ढलान, बुनियादी ढांचे की निकटता और सौर विकिरण जैसे व्यापक पैरामीटर को आधार बनाया जा रहा है।
समिति ने कहा कि मॉड्यूल दक्षता में सुधार, तकनीकी बदलाव और जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को देखते हुए समय-समय पर क्षमता का पुनर्मूल्यांकन जरूरी है। समिति की ये सिफारिशें इसलिए महत्वपूर्ण हैं क्योंकि भारत ने 2030 तक पांच लाख मेगावाट नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता का लक्ष्य रखा है, जिसमें सौर ऊर्जा का सबसे बड़ा हिस्सा (3.2 लाख मेगावाट) है।
एमएनआरई के मुताबिक 30 नवंबर, 2025 तक देश में सौर ऊर्जा की स्थापित क्षमता 1.32 लाख मेगावाट है। यानी अगले पांच वर्षों में 1.70 लाख मेगावाट अतिरिक्त क्षमता स्थापित करनी है।

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