'ATS का यातना देकर साक्ष्य जुटाना चिंता का विषय', एनआईए कोर्ट ने मालेगांव मामले पर की अहम टिप्पणी
गुरुवार को सुनाए गए मालेगांव विस्फोटकांड के फैसले में विशेष एनआईए कोर्ट के जज ए.के.लाहोटी इस मामले की पहली जांच एजेंसी आतंकवाद निरोधक दस्ते (एटीएस) द्वारा साक्ष्य जुटाने के लिए गवाहों को यातना दिए जाने पर चिंता जताई है। सामने आई फैसले की पूर्ण प्रति में जज ए.के.लाहोटी लिखते हैं कि इस बात की ओर इंगित करना जरूरी है कि इस मामले में दो प्रमुख जांच एजेंसियां शामिल रही हैं।

ओमप्रकाश तिवारी, मुंबई। गुरुवार को सुनाए गए मालेगांव विस्फोटकांड के फैसले में विशेष एनआईए कोर्ट के जज ए.के.लाहोटी इस मामले की पहली जांच एजेंसी आतंकवाद निरोधक दस्ते (एटीएस) द्वारा साक्ष्य जुटाने के लिए गवाहों को यातना दिए जाने पर चिंता जताई है।
दोनों एजेंसियों ने स्वतंत्र जांच की
शुक्रवार को सामने आई फैसले की पूर्ण प्रति में जज ए.के.लाहोटी लिखते हैं कि इस बात की ओर इंगित करना जरूरी है कि इस मामले में दो प्रमुख जांच एजेंसियां शामिल रही हैं। ये एजेंसियां थीं एटीएस एवं एनआईए।
दोनों एजेंसियों ने स्वतंत्र जांच की, और स्वतंत्र आरोपपत्र दाखिल किए। लेकिन दुर्व्यवहार, यातना और गैरकानून हिरासत में रखने के जैसे आरोप एटीएस के अधिकारियों पर लगे हैं, वैसे एनआईए के अधिकारियों पर नहीं लगे। इसलिए एटीएस अधिकारियों द्वारा गवाहों के साथ बरता गया व्यवहार उनके द्वारा जुटाए गए साक्ष्यों की विश्वसनीयता संदिग्ध बनाने के लिए पर्याप्त है।
मैंने सभी साक्ष्य देखे हैं- जज लाहोटी
जज लाहोटी आगे लिखते हैं कि मैंने सभी साक्ष्य देखे हैं। सभी मामलों का अध्ययन किया है। लेकिन यह भी कहना आवश्यक है कि सिर्फ संदर्भ दर्ज करना या प्रस्तुत करना पर्याप्त नहीं होता। जब तक कि अभियोजन पक्ष का मामला तथ्यों से मेल न खाता हो। इसलिए सम्मान के साथ कहना चाहता हूँ कि संदर्भ सूची में दिए गए विवरण वास्तविक तथ्यों से भिन्न हैं।
आगे कहा कि ऐसी परिस्थितियों में अभियोजन पक्ष द्वारा प्रस्तुत की गई न्यायिक मिसालें उनके किसी काम नहीं आतीं। बता दें कि जज लाहोटी ने मालेगांव विस्फोट मामले में सात आरोपियों को बरी करते हुए ये कड़ी टिप्पणियां की हैं।
अदालत ने महत्त्वपूर्ण गवाहों की गवाही न होने पर भी नाराजगी जाहिर की है। उन्होंने कहा है कि आरोपितों के अधिवक्ताओं एवं आरोपित क्रमांक पांच (स्वयं प्रस्तुत) ने कहा है कि अभियोजन पक्ष ने कई महत्त्वपूर्ण गवाहों को अदालत में पेश ही नहीं किया। यदि अभियोजन पक्ष यह स्पष्ट करने में असफल रहता है कि महत्त्वपूर्ण गवाहों को क्यों नहीं पेश किया गया, तो जज को प्रतिकूल अनुमान लगाना पड़ता है।
कुछ गवाहों को जानबूझकर पेश नहीं किया गया
अदालत कहती है कि हत्या और अन्य गंभीर अपराधों के मामलों में यह मुख्य रूप से अभियोजक का दायित्व होता है ऐसे गवाहों को पेश करना, जो पूरे मामले की सच्चाई सामने ला सके, और जो न्यायालय को सही निर्णय पर पहुंचने में सहायता करे।
यदि सुनवाई के दौरान यह तथ्य सामने आता है कि कुछ गवाहों को जानबूझकर पेश नहीं किया गया, या उन्हें छोड़ दिया गया, तो न्यायालय अभियोजन के विरुद्ध प्रतिकूल अनुमान लगा सकता है।
विश्वसनीय और कानूनी रूप से स्वीकार्य साक्ष्य हैं
इसलिए मैं समस्त साक्ष्यों का समग्र मूल्यांकन करने के पश्चात इस निष्कर्ष पर पहुंचा हूँ कि अभियोजन पक्ष यह प्रमाणित करने में असफल रहा है कि उसके पास विधिक, विश्वसनीय और कानूनी रूप से स्वीकार्य साक्ष्य हैं।
आरोपितों के दोष तो सभी संदेहों से परे
इस प्रकार की विसंगतियां अभियोजन के मामले को कमजोर करती हैं, और ये आरोपितों के दोष तो सभी संदेहों से परे साबित करने में असमर्थ रहती हैं।
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