स्कूलों में एस्बेस्टस शीट का उपयोग तत्काल बंद करने से NGT का इन्कार, केंद्र और CPCB को NTR तैयार करने का आदेश
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) ने स्कूलों में एस्बेस्टस शीट के उपयोग पर तत्काल रोक लगाने से इनकार कर दिया है, लेकिन केंद्र और CPCB को राष्ट्रीय कार्य योजना (NTR) तैयार करने का आदेश दिया है। NGT ने कहा कि पूर्ण प्रतिबंध के लिए और वैज्ञानिक डेटा की आवश्यकता है। केंद्र और CPCB को चार महीने में योजना तैयार करने का निर्देश दिया गया है, जिसमें जागरूकता बढ़ाना और सुरक्षित निपटान के दिशानिर्देश शामिल हैं। याचिकाकर्ता ने बच्चों के स्वास्थ्य पर खतरे का हवाला देते हुए प्रतिबंध की मांग की थी।

एस्बेस्टस सीमेंट शीट। (पीटीआई)
विनीत त्रिपाठी, जागरण नई दिल्ली। देशभर के स्कूलों में एस्बेस्टस सीमेंट की शीटों का उपयोग करने पर रोक लगाने से नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने इन्कार कर दिया है। एनजीटी ने रिकॉर्ड पर लिया कि उसके आदेश के बावजूद स्कूलों के भवनों में एस्बेस्टस सीमेंट की शीट के उपयोग से स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रतिकूल प्रभाव के संदर्भ में कोई विशिष्ट अध्ययन नहीं किया गया।
हालांकि, पर्यावरण एवं वन मंत्रालय ने हलफनामा दाखिल कर कहा है कि भवन में एस्बेस्टस स्वत: ही फाइबर नहीं छोड़ता है, लेकिन यह स्वीकार किया कि एस्बेस्टस फाइबर अपक्षय के कारण हवा, पानी और मिट्टी में प्रवेश कर सकते हैं।
एनजीटी ने कहा कि ऐसे में किसी भी सकारात्मक विशिष्ट वैज्ञानिक साक्ष्य/सामग्री के अभाव में पूरे भारत के स्कूलों में एस्बेस्टस सीमेंट की शीट के उपयोग को तत्काल बंद करने का निर्देश देना उचित नहीं होगा।
एनजीटी ने दिया सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का हवाला
एनजीटी ने कल्याणेश्वरी बनाम भारत सरकार के मामले में सुप्रीम कोर्ट के 2011 के निर्णय का हवाला दिया, जिसमें शीर्ष अदालत ने एस्बेस्टस के उपयोग पर प्रतिबंध लगाने से जुड़ी याचिका खारिज कर दी थी। उक्त तथ्यों को देखते हुए एनजीटी न्यायिक सदस्य न्यायमूर्ति अरुण कुमार त्यागी व पर्यावरण सदस्य डॉ. अफरोज अहमद की पीठ ने केंद्र सरकार व केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) को इस संबंध में मौजूद वैज्ञानिक साक्ष्यों की छह महीने में समीक्षा करने व एक्शन टेकन रिपोर्ट (एटीआर) तैयार करने का आदेश दिया।
एनजीटी ने केंद्र सरकार व सीपीसीबी को निर्देश दिया कि एटीआर में लिए गए नीतिगत निर्णय पर एक दिशानिर्देश व मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) दिल्ली सहित सभी केंद्र शासित व राज्यों के मुख्य सचिव को भेजी जाए। एनजीटी के उक्त आदेश से 1981 में स्थापित फाइबर सीमेंट उत्पाद निर्माता संघ (एफसीपीएमए) को बड़ी राहत मिली है।
गौरतलब है कि देश के राजस्व में एफसीपीएमए का 10 हजार करोड़ रुपये का योगदान है। यह देश में तीन लाख से अधिक लोगों को आजीविका देता है।
ये अहम निर्देश दिए
- एस्बेस्टस के संपर्क में आने की संभावना वाले क्षेत्रों में धूमपान, खाना-पीना प्रतिबंधित होना चाहिए।
- एस्बेस्टस युक्त धूल और मलबे की सूखी सफाई, फावड़ा चलाने या अन्य सूखी सफाई से बचना चाहिए।
- एस्बेस्टस युक्त छत और बाउंड्री शीट्स लगाने, रखरखाव के लिए पर्यावरणीय और स्वास्थ्य संबंधी जोखिमों को कम करने के लिए सुरक्षा प्रोटोकाल का कड़ाई से पालन किया जाए।
- वर्तमान में लैंडफिलि साइट सबसे आम निपटान विधि है, लेकिन यह महत्वपूर्ण है कि ये विशेष रूप से एस्बेस्टस अपशिष्ट के लिए डिजाइन हों, ताकि अन्य अपशिष्ट के साथ संपर्क में आने से रोका जा सके।
यह है मामला
एस्बेस्टस शीट के इस्तेमाल पर रोक लगाने की मांग को लेकर याचिका दायर कर अमर कालोनी निवासी डॉ. राजा सिंह ने कहा कि कई बार ग्रामीण इलाकों में स्कूल की इमारतों में एस्बेस्टस शीट का इस्तेमाल किया जाता है।
समय के साथ, एस्बेस्टस शीट भुरभुरी हो जाती हैं और इनसे एस्बेस्टस फाइबर निकलते हैं, जो स्कूल की अंदरूनी हवा में फैल सकते हैं। यह सांस के जरिये बच्चों के फेफड़ों में जा सकते हैं। इससे सबसे बड़ी समस्या फेफड़ों की बीमारी की होती है, जो जानलेवा भी हो सकती है।

कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।