'काफी हद तक पुराने आपराधिक कानूनों की नकल हैं नए विधेयक...', विपक्ष ने कहा- गैर-हिंदी भाषी लोगों का अपमान
New criminal law लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन ने अपने असहमति पत्र में कहा कि विधेयक काफी हद तक समान हैं। केवल इन्हें पुनर्व्यवस्थित किया गया ...और पढ़ें

पीटीआई, नई दिल्ली। तीन आपराधिक विधेयकों पर असहमति जताने वाले संसदीय समिति के विपक्षी सांसदों ने कहा है कि वे काफी हद तक मौजूदा कानूनों की नकल हैं। विधेयकों के हिंदी नामों का विरोध करते हुए उन्होंने कहा कि यह कदम आपत्तिजनक, असंवैधानिक और गैर-हिंदी भाषी लोगों का अपमान है। उनमें से कुछ ने रिपोर्ट को अंतिम रूप देने से पहले परामर्श नहीं किए जाने की भी शिकायत की।
गृह मामलों पर संसदीय स्थायी समिति ने इस महीने की शुरुआत में भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम विधेयकों पर अपनी रिपोर्ट को मंजूरी प्रदान कर दी थी और उसे राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ को सौंप दिया था। समिति के सदस्य अधीर रंजन चौधरी, रवनीत सिंह , पी. चिदंबरम, डेरेक ओ ब्रायन, काकोली घोष दस्तीदार, दयानिधि मारन, दिग्विजय सिंह और एनआर एलांगो ने विधेयकों के विभिन्न प्रविधानों का विरोध करते हुए अलग-अलग असहमति पत्र दाखिल किए थे। उक्त तीनों विधेयक इंडियन पेनेल कोड (आइपीसी), कोड आफ क्रिमिनल प्रोसीजर (सीआरपीसी) और एविडेंस एक्ट का स्थान लेंगे।
आपराधिक कानून का लगभग 93 प्रतिशत हिस्सा अपरिवर्तित
लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन ने अपने असहमति पत्र में कहा कि विधेयक काफी हद तक समान हैं। केवल इन्हें पुनर्व्यवस्थित किया गया है। कांग्रेस के दिग्विजय सिंह ने कहा कि समिति के समक्ष प्रतिष्ठित वकीलों और न्यायाधीशों को बुलाने की आवश्यकता थी, लेकिन ऐसा लगता है कि अध्यक्ष रिपोर्ट सौंपने में बहुत जल्दबाजी कर रहे थे।
तृणमूल कांग्रेस के ओ ब्रायन ने कहा कि मौजूदा आपराधिक कानून का लगभग 93 प्रतिशत हिस्सा अपरिवर्तित है, 22 अध्यायों में से 18 को कापी-पेस्ट किया गया है। इसका अर्थ है कि इन परिवर्तनों को शामिल करने के लिए पहले से मौजूद कानून को आसानी से संशोधित किया जा सकता था। उन्होंने रिपोर्ट का मसौदा तैयार करने की पद्धति में व्यापक कमियों का भी आरोप लगाया।
अनुच्छेद-348 के तहत सभी कानून अंग्रेजी भाषा में होंगे
पूर्व केंद्रीय गृह मंत्री पी. चिदंबरम ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद-348 के तहत सभी कानून अंग्रेजी भाषा में होंगे जो सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्टों की भी भाषा है। उन्होंने कहा कि विधेयकों की भाषा चाहे जो भी हो, विधेयकों का नाम केवल हिंदी रखना बेहद आपत्तिजनक, असंवैधानिक, गैर-हिंदी भाषी लोगों का अपमान है और संघवाद का विरोध है।''
उन्होंने दावा किया कि सैकड़ों-हजारों जजों, वकीलों, पुलिस अधिकारियों और यहां तक कि आम जनता को बिना किसी फायदे के भारी परेशानी एवं असुविधा का सामना करना पड़ेगा। उन्हें कानूनों को फिर से सीखना होगा जिनके नए प्रविधानों का बड़े पैमाने पर उपयोग होने में कई वर्ष लगेंगे। द्रमुक के मारन ने कहा कि विधेयक संघ और राज्य के बीच संघीय संबंधों व ढांचे को और बदल देंगे। उन्होंने कहा कि कुछ शब्दों को छोड़कर इन विधेयकों का मुख्य भाग अंग्रेजी में है, लेकिन विधेयकों का शीर्षक हिंदी में है जो अनुच्छेद-348 का उल्लंघन है।

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