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    हर बात पर राजनीति, लेकिन इस मसले पर राजनीति नहीं, लोकनीति होनी चाहिए..

    By Kamal VermaEdited By:
    Updated: Mon, 16 Nov 2020 04:42 PM (IST)

    यदि राजनीति करने वाले नेता ही ये कहने लगें कि इस पर राजनीति नहीं होनी चाहिए तो फिर क्‍या किया जाए। आखिर मुद्दों पर राजनीति न हो तो फिर क्‍या हो। हम सभी के लिए ये सोचना बेहद जरूरी है।

    हर मुद्दे पर नहीं होनी चाहिए राजनीति, जरा किजिए विचार

    अजय शुक्ला। कम से कम इस मामले में आप राजनीति न कीजिए। अब क्या इस मामले में भी राजनीति होगी? देखिए, इस मामले में तो राजनीति नहीं ही होनी चाहिए..। थोड़ा दिमाग पर जोर डालिए, ऐसे ही अनेक और जुमले-उक्तियां आपको स्वत: याद आ जाएंगे। संदर्भ के सिवा कुछ याद दिलाने की जरूरत नहीं।

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    एक मशहूर (ख्यातिलब्ध और व्यस्त) शख्सियत को यह कहते सुना था- एवरी एक्ट ऑफ लाइफ इज ए पॉलिटिक्स, इवेन इन फैमिली लाइफ (जीवन की प्रत्येक क्रिया राजनीति है, यहां तक कि पारिवारिक जीवन में भी)। शख्सियत का नाम बताने की जरूरत इसलिए नहीं, क्योंकि यह बहुत से लोगों का विचार और विश्वास है।सुनता आया हूं, लेकिन मैं आज तक न तो सहमत हो पाया और न ही समझ पाया। यदि राजनीति की बात करें (प्रचलित अर्थो में) तो क्यों राजनीति नहीं होनी चाहिए। यदि राजनीतिक लोग ही कहें कि राजनीति नहीं होनी चाहिए तो कुछ स्वाभाविक प्रश्न उठ खड़े होते हैं। सहमति है कि इस मुद्दे पर राजनीति नहीं होनी चाहिए। पर, जरा जनाब! यह भी बता दें कि निगोड़ी राजनीति होनी किस मुद्दे पर चाहिए।

    अब दूसरा सवाल। यदि एवरी एक्ट (इवेन इन फैमिली लाइफ) राजनीति है, तो पारिवारिक संस्कार क्या घास चरने के लिए छोड़ दिए गए हैं। परिवार नीति, समाज नीति, एक व्यक्ति की दूसरे व्यक्ति से व्यवहार नीति, क्या ये सब अप्रासंगिक हैं? या ये सब राजनीति के ही पर्यायवाची हैं। मामला बहुत उलझाऊ है। शायद परिभाषाओं का अकाल है। या परिभाषा रचने-गढ़ने की सुरुचि का अभाव है।

    थोड़ी देर के लिए हम आपको दूसरे किनारे पर ले चलते हैं। ये किनारे शब्द रचे और गढ़े जाते हैं। बाद में यह डिक्शनरियों का हिस्सा बनते हैं। अच्छा, आपसे एक सवाल पूछते हैं। बताओ! प्यार और प्रेम में क्या अंतर है। आप थोड़ी देर के लिए सोचेंगे। फिर मन ही मन कहेंगे यह मूर्खतापूर्ण प्रश्न है। फिर संयत होकर कहेंगे, कोई फर्क नहीं, ये तो एक दूसरे के पर्यायवाची हैं। वस्तुत: आप कहीं गलत नहीं। बिल्कुल सही सोच रहे। लेकिन अब यही प्रश्न आपके सामने दूसरे रूप में है। आप अपनी बेटी या बहन से कह सकते हैं, पत्नी से तो कह ही सकते हैं कि मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूं। लेकिन वही भाव रखते हुए क्या आप अपने कलीग (महिला या पुरुष) से कह सकते हैं कि मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूं। आप कह सकते हैं, पर खतरा है। अर्थ का अनर्थ होने का खतरा। इसके परिणाम कुछ भी हो सकते हैं। निहितार्थ कुछ भी निकाले जा सकते हैं।

    तात्पर्य यह है कि शब्द अपना संसार खुद रच लेते हैं। व्यक्ति की तरह शब्द का भी चरित्र होता है। उसकी मर्यादा होती है। उसकी ध्वनि होती है, उसका स्वरूप होता है। तदनुसार ही उस शब्द के मायने निकलते हैं। जिस तरह व्यक्ति पर उसके परिवेश का प्रभाव होता है, उसी प्रकार शब्दों पर भी परिवेश का प्रभाव पड़ने लगता है। परिवेश जिस प्रकार व्यक्ति का चरित्र या चरित्र के प्रति धारणा बदल देता है, उसी प्रकार परिवेश शब्दों का चरित्र अथवा धारणा बदल देता है।

    अब मूल प्रश्न पर लौटते हैं। राजनीति। यह शब्द न जाने कब गढ़ा गया था। यदि पुरातन पाश्चात्य विद्वानों की बात करें तो यह प्लेटो और अरस्तु के समय गढ़ा गया होगा। यदि भारतीय संदर्भ में कहें तो यह और पहले गढ़ा जा चुका था। राज्य की पैदाइश के साथ ही यह शब्द गढ़ा जा चुका था। यदि राज्य के दैवीय उत्पत्ति के सिद्धांत का स्मरण करें (जो राजा को ईश्वर के प्रतिनिधि का दर्जा देता है) तो इस शब्द की प्राचीनता का छोर तलाशना मुश्किल हो जाएगा। जब अराजकता के विरोध में राज्य गढ़ने और उस पर राज करने के संदर्भ में इस शब्द का प्रादुर्भाव हुआ, तब यह शब्द सटीक रहा होगा। किंतु लोकतंत्र में भी क्या राजनीति शब्द का प्रयोग उचित है। जो शब्द बहुत से लोगों पर कुछ लोगों के राज करने के लिए बनी नीतियों के लिए प्रयुक्त होता रहा हो, क्या वह सवरेत्तम मान्य लोकतंत्र में भी प्रासंगिक है या हो सकता है। विश्व में जहां जहां लोकतंत्र है, वहां क्या राजनीति के स्थान पर लोकनीति को व्यवहार में प्रतिष्ठा नहीं मिलनी चाहिए।

    विचार करें तो संभवत: बार-बार दोहराये जाने वाले इन शब्द-युग्मों या उक्तियों की निर्थकता का उत्तर भी मिल जाएगा कि फलां मुद्दे पर राजनीति नहीं होनी चाहिए। यह भी पता चल जाएगा कि यहां राजनीति नहीं, लोकनीति पर चर्चा की जरूरत है। इसे व्यवहार में लाएं तो तथाकथित राजनीति भी लोकनीति के रास्ते देश और समाज के तमाम प्रश्नों के अलहदा जवाब खोजकर उत्तम निष्कर्षो तक पहुंच सकती है। तब यह कहकर टोकने की जरूरत नहीं पड़ेगी कि इस मसले पर राजनीति नहीं होनी चाहिए।

     

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