ताइहोकू में नहीं हुआ कोई विमान हादसा, रेंकोजी में नेताजी की 'अस्थि' के क्या हैं सबूत? बोस के परिवार ने उठाए सवाल
नेताजी सुभाष चंद्र बोस की कथित ताइहोकू विमान दुर्घटना को लेकर उनके परिवार ने सवाल उठाए हैं। परिवार का कहना है कि नेताजी की मौत उस दुर्घटना में नहीं हुई थी और तथाकथित अस्थियों को देश में लाने की योजना एक साजिश है। परिवार के सदस्यों ने यह भी दावा किया कि ताइहोकू में कोई विमान दुर्घटना नहीं हुई थी।

राज्य ब्यूरो, जागरण, कोलकाता। नेताजी सुभाष चंद्र बोस ताइहोकू विमान दुर्घटना में नहीं मरे, दुर्घटना हुई ही नहीं, सिर्फ खबर फैलाई गई। उस फर्जी दुर्घटना में मारे गए नेताजी की तथाकथित 'अस्थि' कैसे सामने आई? यह प्रश्न नेताजी परिवार ने उठाया है।
नेताजी के मझले भाई शरत चंद्र बोस के बड़े बेटे अशोकनाथ बोस की दो बेटियां जयंती रक्षित, तपती घोष और एक बेटा आर्य बोस सामने आए। अशोकनाथ बोस वही हैं जिन्होंने नेताजी के महानिष्क्रमण के समय सबसे करीबी साथियों में से एक थे।
नेताजी के परिवार का क्या कहा?
नेताजी के परिवार का कहना है कि कुछ लोगों का दावा है कि हमारे परिवार के कुछ सदस्य वर्तमान केंद्र सरकार के साथ मिलकर रेंकोजी मंदिर से नेताजी की तथाकथित अस्थियों को देश में लाने की योजना बना रहे हैं। इसी की वजह से हम लोगों को मीडिया के सामने आना पड़ा है।
परिवार के इन सदस्यों ने गुरुवार को कहा किया कि अगर नेताजी की मौत ताइहोकू विमान दुर्घटना में होने के दावे पर तत्कालीन कांग्रेस सरकार की मुहर उनके लापता होने के रहस्य को छिपाने की पहली साजिश थी, तो इस बार 'नकली' अस्थियों को लाने की पहल उस चरण की दूसरी साजिश है। इसे लेकर अपने ही परिवार के कुछ सदस्यों की ओर उंगली उठाते हुए शरत चंद्र बोस के ये तीनों पौत्र-पौत्रियों ने दावा किया कि नेताजी की मौत ताइहोकू विमान दुर्घटना में नहीं हुई थी।
ताइहोकू में कोई विमान दुर्घटना नहीं हुई
इसका एकमात्र और सबसे बड़ा सबूत ताइवान की रिपोर्ट है, जिसने 1956 में कहा गया था कि 18 अगस्त 1945 को ताइहोकू में कोई विमान दुर्घटना नहीं हुई थी। उस समय भारत सरकार ने नेताजी की मौत के गवाह के तौर पर जिन लोगों के नाम बताए थे, वे नेताजी की मौत या यहां तक कि विमान दुर्घटना का भी कोई सबूत नहीं दे सके।
नेताजी के परिवार के सहयोग से दो शोधकर्ताओं सौम्यव्रत दासगुप्ता और सैकत नियोगी ने ताइवान रिपोर्ट को सबके सामने जारी किया है। इन दोनों ने मिलकर ताइवान रिपोर्ट को सबके सामने लाया है। इनके साथ प्रख्यात लेखक बिप्लब राय भी थे।
शरत बोस के तीनों पौत्र-पौत्रियों ने जो जानकारी दी है, उसका अधिकांश हिस्सा बचपन में सुनी पारिवारिक चर्चाओं, कुछ निजी पुस्तकों और लेखों, नेताजी के कुछ पत्रों और उनके कुछ साथियों के दावों पर आधारित है, जिन्होंने बार-बार इस बात के प्रमाण दिए हैं कि मित्र राष्ट्रों की जीत के बाद नेताजी बर्मा से कभी वियतनाम, कभी चीन और बाद में रूस चले गए। विभिन्न अध्ययनों में इसकी बार-बार पुष्टि हुई है। लेकिन केवल कांग्रेस सरकार ने इसे स्वीकार नहीं किया।
पौत्री ने कहा, मैंने 1949 में पढ़ा था 'नेताजी इन रेड चाइना'
88 वर्षीय जयंती रक्षित ने एक और जानकारी दी कि मेरे दादा शरत चंद्र बोस नेशन अखबार निकालते थे। उस समय मैं 10-11 साल की थी। एक दिन मैं घर में अखबार लेकर जा रही थी। मैंने देखा कि अखबार में लिखा था, 'नेताजी इन रेड चाइना'। यह 1949 की बात है। बाद में मुझे पता चला कि वे रूस भी गए थे। उस स्रोत से स्टालिन के बारे में घर में खूब चर्चा होती थी।
उनके शब्दों में मथुरालिंगम थेवर नामक एक राजनेता की कहानी सामने आई। यह 1955-56 की बात है। जयंती रक्षित ने बताया कि नेताजी के इस थेवर से संपर्क होने की बात जानने के बाद तत्कालीन सरकार ने अचानक शाहनवाज कमेटी की घोषणा कर दी। इस संदर्भ में आर्य बोस यानी शरत बोस के पोते कहते हैं कि इस थेवर के सिलसिले में उस समय प्रख्यात न्यायमूर्ति डा राधाबिनोद पाल ने भी नागरिक आयोग के गठन के लिए जोर देना शुरू कर दिया था।
इसलिए तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने अतिरिक्त उत्साह के साथ शाहनवाज समिति का गठन किया और यह साबित करने में जुट गई कि नेताजी की मौत ताइहोकू विमान दुर्घटना में हुई थी। अगर हम सारी जानकारी का विश्लेषण करें तो हम निश्चित रूप से कह सकते हैं कि नेताजी के लापता होने का रहस्य और भी जटिल हो गया है। क्योंकि लेखक बिप्लब राय का दावा है कि 1967 में नेताजी ने इलाज के चंदननगर में साधु के वेश में कम से कम 15 दिन बिताए थे

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