नेपाल में सियासी उथल-पुथल, भारत के रणनीतिक हितों को स्थाई तौर पर क्षति पहुंचा चुके हैं ओली
नेपाल के प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली ने जन विद्रोह के कारण इस्तीफा दे दिया है जिससे भारतीय विदेश मंत्रालय के अधिकारी आश्चर्यचकित हैं। ओली अगले हफ्ते दिल्ली आने वाले थे जहाँ द्विपक्षीय संबंधों पर अहम घोषणाएँ होने वाली थीं जो अब ठंडे बस्ते में हैं। भारत नेपाल में हस्तक्षेप नहीं करेगा और स्थिति पर नजर रखेगा।

जयप्रकाश रंजन, नई दिल्ली। जन विद्रोह की आंधी में नेपाल के प्रधानमंत्री के पी शर्मा ओली इस्तीफा दे चुके हैं। इस घटनाक्रम को लेकर भारतीय विदेश मंत्रालय के दक्षिण एशिया विभाग के अधिकारी आश्चर्यचकित तो हैं लेकिन बहुत ज्यादा मायूस नहीं है।
आश्चर्य इस बात का है कि ओली अगले हफ्ते (16-17 सितंबर) को नई दिल्ली आने वाले थे और तैयारी इस बात की थी कि दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों के बीच होने वाली बैठक के बाद द्विपक्षीय संबंधों को लेकर कुछ अहम घोषणाएं की जाए। अब इन घोषणाओं को फिर से ठंडे बस्ते में डालना होगा क्योंकि जब नेपाल में नई सरकार बनेगी उसके बाद इन पर आगे कदम बढ़ाया जाएगा।
भारत नहीं करेगा कोई हस्तक्षेप
भारतीय कूटनीतिक खेमे में मायूस इसलिए नहीं है कि ओली जब भी नेपाल के सत्ता पर आसीन हुए हैं उन्होंने कुछ ऐसे कदम उठाए जो भारत के रणनीतिक हितों को नुकसान पहुंचाते रहे हैं। बहरहाल, भारतीय विदेश मंत्रालय के अधिकारियों का कहना है कि भारत नेपाल को लेकर भी अपने उस कूटनीतिक नीति का पालन करेगा जिसके तहत किसी भी देश के आंतरिक हालात में कोई हस्तक्षेप नहीं किया जाता।
भारत स्थिति पर नजर रखे हुए है और मान रहा कि अभी वहां हालात काफी गंभीर है। नेपाल के आगे का राजनीतिक नेतृत्व की स्थिति अस्पष्ट है। आंदोलन खत्म होने के साथ जल्द सामान्य स्थिति कि उम्मीद कर रहा भारत आगे का कदम नेपाल की जनता के हितों और दीर्घकालिक द्विपक्षीय संबंधों के आधार पर ही उठाएगा।
ओली का चीन प्रेम
विगत एक दशक में ओली तीन बार नेपाल के पीएम बने और हर बार उनकी सरकार के साथ द्विपक्षीय संबंधों को आगे बढ़ाने में भारत सरकार को काफी मशक्कत करनी पड़ी है। ओली का चीन प्रेम कोई नया नहीं है। राजनीतिक जीवन के शुरुआत से ही वह भारत विरोधी भावनाओं को भड़काने वाला और चीन को भारत के खिलाफ खड़ा करने वाले खेमे के समर्थक रहे हैं।
अपने पहले कार्यकाल (2015-16) में ओली ने सत्ता संभालने के कुछ ही हफ्ते बाद पहली बीजिंग यात्रा की और चीन-नेपाल के बीच ट्रांजिट समझौते पर हस्ताक्षर किये। यह समझौता 1950 के भारत-नेपाल शांति और मैत्री संधि के तहत भारत पर नेपाल की निर्भरता को कम करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था।
नेपाल सरकार ने क्या किया था?
पहली बार नेपाल में चीन के व्यापक प्रवेश का रास्ता खुला और भारत की पारंपरिक भूमिका को कमजोर करने वाला कदम था। बतौर पीएम ओली का दूसरा कार्यकाल (15 फरवरी 2018 से 13 मई 2021 तक) भी कुछ ऐसी ही रहा।
अप्रैल-मई, 2020 में जब भारत पूर्वी लद्दाख में चीनी सैनिकों के घुसपैठ का सामना कर रहा था तब ओली ने लिपुलेख, कालापानी और लिंपियाधुरा क्षेत्रों को नेपाल का हिस्सा दर्शाने वाले नये मानचित्र को संसद से मंजूरी दिलाई।
भारत व नेपाल की पूर्व की सरकारों ने आपसी सहमति से जिस मुद्दे को सुलझाने की सहमति जताई थी वह नेपाल में एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा बन गया। भारत ने इसे 'एकतरफा कदम' बताते हुए खारिज कर दिया था। हालांकि तकरीबन एक वर्ष बाद ही उन्हें राजनीतिक अस्थिरता की वजह से इस्तीफा देना पड़ा था लेकिन उन्होंने जिस तरह से इस मामले को राजनीतिक रंग दिया जो दोनों देशों के रिश्तों को आगे भी प्रभावित करता रहेगा।
नेपाल को क्या मिली सुविधा
इसके बाद ओली 15 जुलाई 2024 को तीसरी बार प्रधानमंत्री बने। इस बार उनके नेतृत्व में चार दिसंबर 2024 को चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) के लिए एक ढांचागत समझौते पर नेपाल सरकार के साथ समझौता हुआ। इससे ट्रांसिज और व्यापारिक सहयोग को और मजबूत करने की बात है।
नेपाल को चीन के रास्ते माल ढुलाई और आयात-निर्यात की सुविधा मिल गई है। उनके पूर्व के कार्यकालों से सबक सीखते हुए और नेपाल की राजनीतिक अस्थिरता को देखते हुए भारत ने इस बार ओली से संपर्क साधने में इंतजार किया। इस महीने के मध्य में ओली भारत आने वाले थे।
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