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    समस्या बढ़ा रही कृत्रिम रोशनी, जीव-जंतुओं की दृष्टि पर पड़ रहा नकारात्मक प्रभाव

    By Manish PandeyEdited By:
    Updated: Tue, 13 Jul 2021 11:59 AM (IST)

    रात के समय में इंसानों के लिए पड़ने वाली कृत्रिम रोशनी की जरूरत ने विभिन्न जीव-जंतुओं के जीवन को खासा प्रभावित किया है। कृत्रिम रोशनी की अत्यधिक तीव्र ...और पढ़ें

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    कृत्रिम प्रकाश कीटों की दृष्टि को बहुत ज्यादा प्रभावित करती है।

    [अली खान] हाल में ब्रिटेन की नेचुरल एनवायरनमेंट रिसर्च काउंसिल ने अपने एक अध्ययन में पाया है कि प्रकाश के रंगों और तीव्रता में बदलाव के कारण जीव-जंतुओं की दृष्टि पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। यह अध्ययन शोध पत्रिका नेचर कम्युनिकेशन में प्रकाशित हुआ है। यह अध्ययन दुनियाभर में प्रकाश प्रदूषण के कारण बढ़ते पर्यावरणीय खतरों के प्रति हमें सचेत करता है।

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    दरअसल रात के समय में इंसानों के लिए पड़ने वाली कृत्रिम रोशनी की जरूरत ने विभिन्न जीव-जंतुओं के जीवन को खासा प्रभावित किया है। कृत्रिम रोशनी की अत्यधिक तीव्रता ने छोटे-छोटे कीट-पतंगों पर एक तरह से विनाशी प्रभाव डाला है। मालूम हो कि पारिस्थितिकी तंत्र के संतुलन को बनाए रखने में इन छोटे-छोटे कीटों का अहम योगदान रहता है। ऐसे में इनका विनाश पारिस्थितिकीय असंतुलन को बढ़ाने वाला साबित हो रहा है।

    कीटों पर पड़ने वाले कृत्रिम प्रकाश के प्रभाव को लेकर किए गए इस शोध से पता चला है कि पूरी दुनिया में रात के समय में प्रकाश व्यवस्था का स्वरूप पिछले करीब 20 वर्षो के दौरान नाटकीय रूप से बदला है। इन दिनों एलईडी जैसे विविध प्रकार के आधुनिक रोशनी वाले उपकरणों का चलन तेजी से बढ़ा है। यह स्वाभाविक है कि प्रकाश के प्रति कीटों का आकर्षण अधिक रहता है, लेकिन कृत्रिम प्रकाश व्यवस्था कीटों की दृष्टि को बहुत ज्यादा प्रभावित कर रही है।

    अध्ययन में पाया गया है कि कई कीटों की दृष्टि कुछ विशिष्ट प्रकार की रोशनी में बढ़ जाती है, जबकि प्रकाश के कुछ अन्य रूपों से इनकी दृष्टि बाधित होती है। इसके पीछे की वजह यह है कि मानव दृष्टि के लिए डिजाइन की गई कृत्रिम रोशनी में नीली और पराबैंगनी श्रेणियों का अभाव होता है, जो इन कीटों की रंगों को देखने की दृष्टि क्षमता के निर्धारण में अहम होती हैं। यह स्थिति कई परिस्थितियों में किसी भी रंग को देखने की कीटों की क्षमता को अवरुद्ध कर देती है। यह कीटों को शिकारियों से बचकर छिपे रहने के लिए अनुकूल नहीं होती है। फूलों को खोजना एवं परागण करना भी उनके लिए कठिन हो जाता है। ऐसे में प्रकाश की मात्र एवं तीव्रता को सीमित करने के सामान्य प्रयासों से आगे बढ़कर प्रकाश व्यवस्था के लिए संवेदनशील दृष्टिकोण अपनाए जाने की जरूरत है।

    वास्तव में कृत्रिम प्रकाश से होने वाला प्रदूषण समस्त वातावरण को ही प्रभावित कर रहा है। यह हमारे पारिस्थितिकी तंत्र के साथ-साथ मानव स्वास्थ्य पर भी प्रतिकूल असर डाल रहा है। हमारी कृत्रिम प्रकाश प्रदूषण के प्रति जागरूकता ही पारिस्थितिकी तंत्र को मजबूती प्रदान कर सकती है। यदि हम कृत्रिम प्रकाश व्यवस्था को दुरुस्त कर लेते हैं तो बहुत हद तक संभव है कि हम स्वास्थ्य पर पड़ने वाले बुरे प्रभाव से बच सकते हैं और कीटों के जीवन को भी बचा सकते हैं।

    (लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)