जीवाणुओं पर सर्वाधिक असरदार है नीम की छाल
सरदार वल्लभ भाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय में नब्बे प्रकार की संक्रमित खाद्य सामग्री पर शोध में सामने आया कि नीम का अर्क बैक्टीरिया से मुकाबले में सबसे अधिक प्रभावी है।
मेरठ (ओम बाजपेयी)। नीम औषधीय गुणों की खान है। यह सभी जानते हैं, लेकिन उसकी छाल का अर्क जीवाणुओं पर सबसे ज्यादा असरकारक है। सरदार वल्लभ भाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय में नब्बे प्रकार की संक्रमित खाद्य सामग्री पर शोध में सामने आया कि नीम का अर्क बैक्टीरिया से मुकाबले में सबसे अधिक प्रभावी है। शोध में नीम के अन्य अवयव भी शामिल किए गए थे, जिसमें अर्क सबसे अधिक प्रभावशाली और नीम का बीज सबसे कम प्रभावी मिला।
विश्वविद्यालय के जैव प्रौद्योगिक महाविद्यालय में परास्नातक की छात्रा प्रियंका पालडेढ़ साल से पैथोलॉजी और माइक्रोबायोलॉजी विभाग में ‘एंटीमाइक्रोबियल एक्टिविटी ऑफ नीम’ टाइटल पर शोध कर रही हैं। डॉ. पुरुषोत्तम के मार्गदर्शन में हुए शोध में नीम का अर्क मनुष्य के लिए हानिकारक बैक्टीरिया इस्केरिचया कोलाई (ई-कोलाई) का सफाया करने में कारगर साबित हुआ है।
ऐसे किया गया शोध : शहर में दुकानों पर खुले में बिक रही मिठाई, डेयरी उत्पाद और गन्ने के जूस के स्टाल बीमारियां परोसते हैं। अलग-अलग जगहों से उक्त खाद्य सामग्री और पेय पदार्थों के 90 सैंपल एकत्रित किए गए। प्रयोगशाला में 28 नमूनों में पाए गए ई-कोलाई बैक्टीरिया को अलग किया गया। डॉ. पुरुषोत्तम ने बताया कि बैक्टीरिया की पुष्टि के लिए उसे हिमाचल प्रदेश के कसौली स्थित केंद्रीय अनुसंधान संस्थान भेज कर सीरोटाइपिंग कराई गई। रिपोर्ट के आधार पर अत्यधिक संक्रमित बैक्टीरिया के छह सैंपलों पर नीम के अर्क का प्रभाव देखा गया।
यह रहा परिणाम : नीम के पेड़ की पत्तियों, बीज और तने की छाल से अर्क निकाला गया। तीनों प्रकार के अर्क की सबसे कम मात्रा 25 माइक्रोलीटर का जीवाणुओं पर प्रभाव एक जैसा रहा, लेकिन 200 माइक्रोलीटर मात्रा ने अलग अलग प्रभाव दिखाया। बीज सबसे कम प्रभावी रहा। नीम की छाल से निकले अर्क ने सबसे अधिक 170 एमएम की दूसरी तक बैक्टीरिया को पूरी तरह मार दिया।
इस तरह घातक है ई-कोलाई : ई-कोलाई बैक्टीरिया अक्सर खाद्य पदार्थो में पनपता है। इससे संक्रमित खाने-पीने की वस्तुओं के सेवन से बुखार, डायरिया और हैजा जैसी बीमारियां होती हैं। यह यूरिनरी अंगों को भी संक्रमित करता है जिससे किडनी भी प्रभावित होती है। कई मामलों में किडनी फेल भी हो जाती है। मूल रूप से कानपुर की प्रियंका पाल ने बताया कि नीम के अर्क के शोध ने उनका उत्साह बढ़ाया है। वह भविष्य में माइक्रोबायलॉजी के क्षेत्र में कार्य कर गंभीर और जटिल बीमारियों के इलाज खोजना चाहती हैं।
आइएआरआइ ने भी लगाई मुहर: कृषि से संबंधित शोध कार्यों में देश की अग्रणी संस्था भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आइएआरआइ) के वैज्ञानिकों ने भी प्रियंका पाल के शोध की पड़ताल की है। संस्थान के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. लक्ष्मण प्रसाद ने बताया कि नीम के पेड़ के अलग-अलग अवयवों में अलग-अलग औषधीय गुणों के आकलन की दिशा में कार्य करने की संभावनाओं का पता लगा है।
-नीम की छाल का अर्क सबसे अधिक प्रभावी
-शोध में 200 माइक्रोलीटर अर्क से 170 एमएम तक बैक्टीरिया समाप्त
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