Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    बड़े बवाल को जन्म दे सकता है सोशल मीडिया पर वायरल होता एक गलत मैसेज

    By Kamal VermaEdited By:
    Updated: Tue, 17 Apr 2018 11:37 AM (IST)

    भारत बंद ने यह साबित कर दिया है कि सोशल मीडिया पर कोई संदेश फैलाकर भी बड़ा बवंडर खड़ा किया जा सकता है। यह भारत में पहली बार हुआ है।

    बड़े बवाल को जन्म दे सकता है सोशल मीडिया पर वायरल होता एक गलत मैसेज

    नई दिल्ली [अवधेश कुमार]। 10 अप्रैल का भारत बंद एक बार फिर पूरे देश के विवेकशील लोगों को भयभीत कर गया है। दो अप्रैल के बंद ने भी यही किया था। 10 अप्रैल का भारत बंद नि:संदेह, दो अप्रैल की प्रतिक्रिया में आयोजित किया गया था। हालांकि दोनों में मौलिक अंतर था। दलितों के नाम पर आयोजित दो अप्रैल के भारत बंद को अनेक गैर राजनीतिक-राजनीतिक संगठनों का समर्थन था। उससे सबक लेते हुए व्यापक तैयारियां की गई थीं। हां, एक बार सड़कों पर लोगों के उतरने के बाद अनेक जगह उन्हें संभालना कठिन हो गया एवं हमें भारी हिंसा का सामना करना पड़ा। 10 अप्रैल के भारत बंद का आयोजन किसने किया यह भी पता नहीं है। किसी नामी या मान्य संगठन ने इसका समर्थन तक नहीं किया था। जाहिर है इसके लिए पूर्व तैयारी भी नहीं हुई होगी। बावजूद कई राज्यों में हमने इसका असर देखा। कहीं-कहीं तो संपूर्ण बंद कराया जा चुका था। इसमें भी भयावह हिंसा की घटनाएं हुईं। तो बिना तैयारी के, बिना बड़े या छोटे संगठनों की घोषणा के बंद आखिरकार आयोजित हो गया।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    भारत बंद पर विचार करने की जरूरत

    इस भारत बंद ने हमें एक साथ कई पहलुओं पर विचार करने को मजबूर किया है। आखिर लोगों में किस तरह का असंतोष और आक्रोश है कि वे इस तरह सड़कों पर उतर रहे हैं? आंदोलनों में इतनी हिंसा क्याें हो रही है और इसे कैसे रोका जाए? किंतु इन सबसे भी बढ़कर जो बड़ा प्रश्न हमारे सामने खड़ा हुआ है वह यह कि कैसे बिना किसी संगठन और पूर्व तैयारी के भी इतना बड़ा बंद कराया जा सकता है? दो अप्रैल के बाद हमने फेसबुक पर कुछ पोस्ट एवं वाट्सएप्प पर कुछ संदेश देखे कि 10 अप्रैल को भारत बंद होगा। ये पोस्ट और संदेश अलग-अलग व्यक्तियों के आ रहे थे। उनको लेकर बहस भी हो रही थी। कुछ इसका समर्थन कर रहे थे तो कुछ विरोध। कुछ लोग इसे नजरअंदाज करने की बात कर रहे थे। ऐसे लोगों की बड़ी संख्या थी जो यह मानने को तैयार नहीं थे कि इस तरह सोशल मीडिया पर पोस्ट या संदेश डालकर कोई बंद आयोजित हो सकता है।

    हिंसा रोकने के लिए पुख्ता सुरक्षा व्यवस्था 

    हालांकि सरकार ने इसे गंभीरता से लिया। केंद्रीय गृह मंत्रलय द्वारा सभी राज्यों को इसके प्रति सतर्क रहने तथा संभावित हिंसा को रोकने के लिए सुरक्षा व्यवस्था को पुख्ता करने का सुझाव दिया गया था। बहरहाल इस बंद ने यह साबित कर दिया है कि सोशल मीडिया पर कोई संदेश फैलाकर भी बड़ा बवंडर खड़ा किया जा सकता है। यह भारत में पहली बार हुआ है। हालांकि इसके पहले भी सोशल मीडिया की भूमिका आंदोलनों में रही है। 2011 के अन्ना आंदोलन में भी सोशल मीडिया की भूमिका थी, लेकिन उसकी भूमिका सहयोगी की थी। इसकी संगठित तैयारी पहले से की गई, मुख्यधारा के मीडिया का पूरा उपयोग हुआ था। उस दौरान भी जब अन्ना को गिरफ्तार किया गया तो कुछ मिनटों के अंदर सोशल मीडिया के माध्यम से संदेश फैलाकर दिल्ली की सड़कों पर विरोध प्रदर्शन किया गया। निर्भया कांड के विरुद्ध लोगों को सड़क पर उतारकर विरोध प्रदर्शन कराने में भी सोशल मीडिया की महत्वपूर्ण भूमिका थी, लेकिन यहां भी मुख्यधारा का मीडिया पूरी तरह सक्रिय था।

    सोशल मीडिया पर आह्वान

    कई संगठनों ने अपनी ओर से प्रदर्शनों का आह्वान किया था। राजनीतिक पार्टियां भी इसमें शामिल थीं। केवल सोशल मीडिया पर आह्वान कर बिना किसी संगठन के बंद आयोजन कर देने का वाकया इसके पहले कभी नहीं हुआ था तो इस बंद के बाद हमें सोशल मीडिया की नई शक्ति को पहचानना होगा। सामान्यत: आंदोलन करने के लिए व्यापक तैयारी की आवश्यकता होती है। लोगों को संगठित करना होता है, संसाधन एकत्रित करने होते हैं, उनमें प्रमुख लोगों को जिम्मेदारियां बांटी जाती हैं। कई बार राजनीतिक पार्टियों से भी मदद ली जाती है और मुद्दे उनके अनुकूल हुए तो वो स्वयं सक्रिय हो जाते हैं, लेकिन इस भारत बंद ने तत्काल यह बता दिया है कि लोगों को विरोध के लिए सड़कों पर उतारने के लिए सोशल मीडिया ही पर्याप्त है।