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    Water Conservation: देशभर की नदियों को संरक्षित रखने के लिए तैयार हो रही युवा सेना

    By Jagran NewsEdited By: Sanjay Pokhriyal
    Updated: Sat, 05 Nov 2022 01:29 PM (IST)

    Water Conservation सरकारें और विज्ञानी तो अपना काम कर ही रहे हैं व्यक्तिगत स्तर पर आमजन भी कल सुरक्षित रखने के लिए जल संरक्षण में जुटे हैं। इस विशेष आयोजन में मिलिए ऐसे ही जल योद्धाओं से जो बूंद-बूंद सहेजकर जल में सबल बनने की प्रेरणा दे रहे हैंः

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    Water Conservation: बूंद-बूंद से भर रहे सागर

    रुमनी घोष, नई दिल्ली : उत्तर प्रदेश के ग्रेटर नोएडा में जब एक नवंबर को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने छोटे से बड़े घड़े में जल भरकर इंडिया वाटर वीक का शुभारंभ किया तो यह औपचारिकता से कहीं आगे पूरे देश व विश्व को संदेश देने का प्रक्रिया थी कि जल संरक्षण के छोटे प्रयास भी गागर और सागर भरने के लिए अहम हैं।

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    देशभर की नदियों को संरक्षित रखने के लिए युवा सेना तैयार हो रही है। पंचायत से लेकर राज्य स्तर तक युवाओं को जोड़ा जा रहा है जो नदियों, तालाबों, पोखर आदि का संरक्षण करेंगे। साथ ही इन जलस्रोतों को पुनर्जीवित करने का काम भी करेंगे। नदियों को लेकर राज्यों के बीच विवाद और उनमें चल रही अवैध गतिविधियों के खिलाफ आवाज उठाने और उन पर रोक लगाने के लिए ये युवा कानूनी लड़ाई भी लड़ेंगे। इसमें वह स्थानीय लोगों की मदद लेंगे। इस अभियान में जलपुरुष के नाम से ख्यात राजेंद्र सिंह भी शामिल हैं। कारवां बढ़ रहा है।

    पूरे देश में नेटवर्क बनाने का पहला प्रयास

    देशभर की नदियों के संरक्षण के लिए जल बिरादरी ने वर्ष 2021 में भारतीय नदी परिषद (आइआरसी) का गठन किया। भौगोलिक स्थिति अनुसार परिषद को दो हिस्सों में-भारतीय प्रायद्वीप कछार परिषद (आइपीआरबीसी) और भारतीय हिमालयी नदी कछार परिषद में बांटा गया है। आइपीआरबीसी ने जल संरक्षण से युवाओं को जोड़ने का बीड़ा उठाते हुए कुछ समय पहले तमिलनाडु के तिरुनेलवेली से अभियान शुरू किया। पहले बैच में लगभग 80 युवाओं को जोड़ा गया। तेलंगाना वाटर रिर्सोस डेवलपमेंट कार्पोरेशन के चेयरमैन व आइपीआरबीसी के अध्यक्ष वी प्रकाश राव के अनुसार नदियों को बचाने के लिए देशभर में एक साथ नेटवर्क बनाने का यह पहला प्रयास है। आइपीआरबीसी के कार्यक्षेत्र में नौ राज्य व तीन केंद्रशासित प्रदेश गुजरात, महाराष्ट्र, गोवा, कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, ओडिशा, अंडमान-निकोबार, लक्षद्वीप और पुडुचेरी शामिल हैं। इसके अलावा मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के भी कुछ भाग को शामिल किया गया है।

    आइपीआरबीसी की कोर टीम की सदस्य और वर्ल्ड वाटर काउंसिल की सदस्य व महाराष्ट्र की जलनायक डा. स्नेहल दोंदे बताती हैं कि कश्मीर से कन्याकुमारी तक हर राज्य में इस तरह का नेटवर्क तैयार किया जा रहा है। चूंकि नदियां व जलस्रोत ग्रामीण अंचल में ज्यादा हैं, इसलिए पंचायत स्तर पर युवाओं को ज्यादा से ज्यादा जोड़ने का लक्ष्य है। ताकि जहां पर नदियों या तालाबों के लिए बाधाएं उत्पन्न हो रही हैं, वहीं अभियान छेड़कर उसे रोका जा सके।

    दो विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रम में नदियां

    नदियों को बचाने के लिए अब इस विषय को स्कूल, कालेज के पाठ्यक्रम के रूप में पढ़ाया जाना चाहिए। परिषद ने इसकी कवायद भी शुरू कर दी है। महाराष्ट्र और झारखंड के एक-एक विश्वविद्यालय ने इसे लागू करने का निर्णय ले लिया है। झारखंड, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, असम, राजस्थान के कई केंद्रीय व अन्य सरकारी विश्वविद्यालयों ने इसको लेकर सकारात्मक संकेत दिए हैं। डा. राजेंद्र सिंह के अनुसार महाराष्ट्र के मराठवाड़ा विश्वविद्यालय, उप्र और झारखंड के विश्वविद्यालयों में इस पाठ्यक्रम को लागू कर दिया गया है। झारखंड के दुमका स्थित सिदो कान्हू मुर्मु विश्वविद्यालय की एकेडमिक काउंसिल ने इस पाठ्यक्रम की अनुमति दे दी है।

    अगले सत्र से इसे शामिल कर लिया जाएगा। हरियाणा, सिलचर के केंद्रीय विश्वविद्यालय व बुंदेलखंड विश्वविद्यालय और राजस्थान के कुछ विश्वविद्यालयों से चर्चा चल रही है। इसमें तीन तरह के पाठ्यक्रम हैं। छठवीं से दसवीं तक विषय की तरह पढ़ाने के बाद दसवीं से बारहवीं तक प्रोजेक्ट कोर्स हो और स्नातक व स्नातकोत्तर स्तर पर सर्टिफिकेट कोर्स कराया जाए। भारतीय हिमालयी कछार परिषद की अध्यक्ष इंदिरा खुराना के अनुसार पाठ्यक्रम को राज्यवार डिजाइन किया जा रहा है। जिस राज्य में पानी या नदी से जुड़ी हुई जो समस्या है, उससे आधारित पाठ्यक्रम ही पढ़ाया जाएगा। इसका उद्देश्य यह है कि इसे पढ़ने के बाद विद्यार्थी अपने आसपास के जलस्रोतों को पुनर्जीवित करना, संरक्षित करना सीख सकें।

    ये हैं प्रमुख नदियां

    मुख्य प्रायद्वीपीय नदियों में गोदावरी, कृष्णा, कावेरी, नर्मदा, ताप्ती, महानदी, दामोदर, बैगेही, मांडवी, इंद्रावती आदि हैं। इनमें से अधिकांश नदियां पश्चिमी घाट से निकलती हैं और मध्य व दक्षिण भारत के एक बड़े हिस्से में बहती हैं। वहीं हिमालयी नदी कछार परिषद के अधीन मुख्य रूप से गंगा, सतलज, यमुना व ब्रह्मïपुत्र हैं।