पराली जलाने के मामलों की रोकथाम के लिए फिर हुआ सक्रिय केंद्र, राज्यों से मांगी तैयारियों की जानकारी
पराली जलाने का सीजन आते ही हर बार की तरह केंद्र सरकार फिर सक्रिय हो गई है। केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने राज्यों से पराली जलाने की रोकथाम के लिए की गई तैयारियों की जानकारी मांगी है।
नई दिल्ली, जेएनएन। पराली जलाने का सीजन आते ही हर बार की तरह केंद्र सरकार फिर सक्रिय हो गई है। इसे लेकर राज्यों के साथ वर्चुअल बैठकों का दौर शुरू हो गया है, हालांकि पिछले वर्षों के अनुभवों को देखते हुए यह कहना मुश्किल है कि पराली के जहरीले धुएं से राहत मिलेगी। बावजूद इसके केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने राज्यों से पराली जलाने की रोकथाम के लिए की गई तैयारियों की जानकारी मांगी है।
साथ ही पिछले दो वर्षों में किसानों को पराली की समस्या से निजात पाने के लिए मुहैया कराए गए हैपी सीडर जैसे कृषि उपकरणों को प्रमुखता से इस्तेमाल करने के लिए प्रोत्साहित करने को कहा है। इस बीच पराली जलाने की घटनाओं पर 20 सितंबर के बाद निगरानी शुरू करने के भी निर्देश दिए गए हैं। इस संबंध में सभी राज्यों से पराली जलाने की घटनाओं और उसकी रोकथाम के लिए उठाए गए कदमों की जानकारी देने को कहा गया है।
खास बात यह है कि पंजाब और हरियाणा में पराली जलाने का सिलसिला 20 सितंबर के बाद से शुरू हो जाता है जो 30 नवंबर तक चलता है। इस दौरान किसान खेतों में धान की फसल को काटकर गेहूं की बोआई करते है। ऐसे में वे खेतों को जल्द साफ करने के लिए पराली को जला देते है। इसका खामियाजा यह होता है कि पराली की धुंआ आकर दिल्ली-एनसीआर में छा जाता है। कृषि वैज्ञानिकों की मानें तो खेतों में पराली जलाने से उसकी उर्वरा शक्ति भी क्षीण होती है।
मंत्रालय से जुड़े सूत्रों के मुताबिक पराली जलाने की घटनाओं की रोकथाम का जिम्मा राज्यों के पास है। ऐसे में जब तक उनकी ओर से सख्ती नहीं दिखाई जाएगी या फिर उन्हें इसके लिए हतोत्साहित नहीं किया जाएगा, तब तक इस पर प्रभावी रोक लग पाएगी यह कहना मुश्किल है।
मालूम हो कि पिछले वर्षों में केंद्र की सख्ती के बाद ही पराली जलाने की घटनाओं में कुछ कमी आई है लेकिन इसे जलाने का सिलसिला बंद नहीं हुआ है। फिलहाल केंद्र का सबसे ज्यादा फोकस पंजाब पर है। जहां वर्ष 2020 में पराली जलाने के मामले वर्ष 2019 के मुकाबले 46 फीसद ज्यादा आए थे।