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    40 तेजस विमान का ऑर्डर अब तक क्‍यों पूरा नहीं हुआ? DRDO के पूर्व महानिदेशक ने दिया जवाब

    Updated: Mon, 13 Jan 2025 08:31 PM (IST)

    हाल ही में वायु सेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल एपी सिंह ने लड़ाकू विमानों की संख्या कम होने पर चिंता जाहिर की थी। उन्होंने रक्षा उत्पादों के विकास में निजी भागीदारी बढ़ाने और अनुसंधान एवं विकास के लिए अधिक धनराशि आवंटित करने की वकालत की। उसके बाद से इस पर चर्चा शुरू हो गई है। इससे जुड़े सभी सवालों के जवाब यहां पढ़ें ...

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    रक्षा उत्पादों के विकास में निजी भागीदारी बढ़ाने से क्‍या बदलेगा। फाइल फोटो

     जागरण टीम, नई दिल्‍ली। रक्षा के क्षेत्र में काम करने की अपार संभावनाएं हैं। यह कहना सही नहीं होगा कि रक्षा के क्षेत्र में सरकारी कंपनियों का एकाधिकार है। बहुत सी निजी कंपनियां रक्षा क्षेत्र में आ गई हैं और वे बड़े-बड़े काम रहीं हैं। जैसे आर्टिलरी गन बनाई है। थोड़े दिन पहले लाइट टैंक बनाया है। रडार बना रहीं हैं। इलेक्ट्रो आप्टिक्स बना रहीं हैं। इस तरह बहुत सी कंपनियां काम कर रहीं हैं।

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    डीआरडीओ के पूर्व महानिदेशक डॉ. हरि बाबू श्रीवास्तव बातचीत में बताते हैं, 'अगर हम चाहते हैं कि हमारा देश आगे बढ़े और रक्षा के क्षेत्र में प्रगति करके उस स्तर पर पहुंचे जहां रक्षा बाजार में बड़ी हिस्सेदारी रखने वाले  देश हैं तो हमें सरकारी और निजी दोनों तरह की कंपनियों को रक्षा उत्पादन के क्षेत्र में आगे बढ़ाना होगा।

    वह बताते हैं कि जहां तक हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) द्वारा वायुसेना को तेजस की सप्लाई न कर पाना है, तो मुख्य समस्या यह है कि जब तक कि कोई ऑर्डर लागत के लिहाज से प्रतिस्पर्धी नहीं होगा तब तक किसी भी चीज का उत्पादन नहीं किया जा सकता है।''

    14 साल में 40 विमानों का ऑर्डर क्यों पूरा नहीं हुआ?

    उनके मुताबिक, अगर वायुसेना को पता है कि यह अच्छा विमान है और उनको इसकी जरूरत होगी तो कम संख्या में आर्डर नहीं करेंगे। जरूरी है कि वे लंबी अवधि का प्लान बताएं कि वे कितने विमान लेंगे, फिर उसके हिसाब से कंपनियां प्रोडक्शन लाइन स्थापित कर सकती हैं।

    हर चीज के लिए पैसा चाहिए होता है और समय चाहिए होता है। अगर आप सिर्फ 40 विमान का ऑर्डर देकर आगे का कोई रोडमैप नहीं बताएंगे तो एचएएल लंबी अवधि के लिए किस तरह से निवेश कर पाएगा और किस तरह से प्लान कर पाएगा।

    रक्षा क्षेत्र में कहां आती है समस्या?

    पूर्व महानिदेशक डॉ.हरि बाबू श्रीवास्तव बताते हैं कि आर्डर देने वाली जो भी एजेंसी है, रक्षा मंत्रालय हो या वायुसेना हो उनको लंबी अवधि का रोडमैप बताना चाहिए कि वे कितने विमान खरीदेंगे और उसकी बिजनेस संभावनाएं क्या हैं। कंपनियों को निर्यात की संभावनाओं की तलाश भी करनी चाहिए। अगर दूसरे देश लड़ाकू विमानों का निर्यात कर रहे हैं तो हम क्यों कर पा रहे हैं।

    हमारे देश में कुछ तकनीक हैं, जिन पर काम नहीं हो पाया है। इनमें सबसे प्रमुख है इंजन। हम इंजन और दूसरी क्रिटिकल टेक्नोलॉजी पर थोड़े दिन पैसा निवेश करते हैं, फिर पैसा वापस कर लेते हैं। प्रोजेक्ट को मंजूरी देते-देते इतना समय लगा देते हैं कि इस पर काम करने वाले भ्रमित हो जाते हैं।

    विजन और बजट की जरूरत

    चाहे शोध एवं विकास हो या उत्पादन हो सेनाओं की जरूरतें हो, जब तक सरकार का और कंपनियों का लंबी अवधि का विजन नहीं होगा, तब तक एक दूसरे पर जिम्मेदारी डालते रहेंगे। इसमें सुधार नहीं हो पाएगा। रक्षा तकनीक में जो भी बड़े देश हैं, वहां हर बड़े वेपन सिस्टम के लिए दो तीन कंपनियां हैं।

    अमेरिका, रूस, चीन और फ्रांस ऐसे ही देश हैं। इन कंपनियों में लागत को लेकर प्रतिस्पर्धा होती है। अपने देश में भी यही स्थिति लानी होगी, जिससे लागत प्रतिस्पर्धी हो और उत्पादों को बनाने में कम समय लगे।

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    हर प्रोडक्ट को बनाने का समय होता है निर्धारित

    इसके अलावा किसी भी चीज को बनाने का एक न्यूनतम समय होता है। जैसे अगर लड़ाकू विमान बनाने में पांच वर्ष का समय लगता है तो आप इसे कम करके साढ़े चार वर्ष कर सकते हैं। आप चाह कर भी इसे दो वर्ष में नहीं बना सकते।

    इसके लिए आप पहले से अपनी जरूरतों का आकलन करना होगा कि हमें विश्व का सबसे बेहतर उत्पादन बनाने पर जोर देने के बजाए हमें देखना चाहिए कि हमारे परिवेश में हमें किस तरह के उत्पाद की जरूरत है।

    क्या हम अपने देश के आसपास ऑपरेशन करना चाहते हैं या पूरी दुनिया में। इसके आधार पर समग्र आकलन के साथ सरकार को यह तय करना चाहिए कि हमें किस तरह के प्लेटफार्म या हथियार चाहिए। यहां वित्तीय क्षमता भी अहम हो जाती है।  

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