शुरू होगा पराली जलने का सीजन, रोकथाम पर अब तक करोड़ों खर्च लेकिन समस्या जस की तस
दिल्ली-एनसीआर को पराली के जहरीले धुएं से बचाने के लिए अब तक भले ही केंद्र ने करोड़ों रुपये खर्च कर दिए हैं लेकिन समस्या जस की तस बनी हुई है। यही वजह है कि जैसे ही पराली जलने का सीजन नजदीक आता है चिंताएं बढ़ जाती हैं।
नई दिल्ली, जेएनएन। दिल्ली-एनसीआर को पराली के जहरीले धुएं से बचाने के लिए अब तक भले ही केंद्र ने करोड़ों रुपये खर्च कर दिए हैं लेकिन समस्या जस की तस बनी हुई है। यही वजह है कि जैसे ही पराली जलने का सीजन नजदीक आता है, केंद्र और इससे निपटने के लिए गठित एजेंसियों की चिंताएं बढ़ जाती हैं। हालांकि इस बार केंद्र की चिंताएं कुछ ज्यादा हैं क्योंकि पंजाब और उत्तर प्रदेश में अगले साल विधानसभा चुनाव हैं। ऐसे में किसानों की नाखुशी से बचने के लिए राज्य सरकारें शायद ही इस पर सख्ती बरतें।
पड़ोसी राज्यों को जारी हुआ अलर्ट
सितंबर के अंतिम हफ्ते से शुरू होने वाले पराली जलने के इस सीजन को लेकर केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश सहित दिल्ली के सभी पड़ोसी राज्यों को सतर्क कर दिया है। साथ ही इससे जुड़ी तैयारियों को समय पर पूरा करने और प्रचार करने को कहा है। पंजाब और हरियाणा में पराली जलने का सीजन 20 सितंबर से शुरू होकर 30 नवंबर तक होता है। इस दौरान किसान अपने खेत को कम समय में बुआई के लिए तैयार करने के लिए धान की कटाई से बचे निचले हिस्सों को जला देते हैं।
करोड़ों खर्च लेकिन समस्या जस की तस
यह चिंता इसलिए भी है क्योंकि पिछले तीन साल में केंद्र इससे निपटने के लिए पंजाब सहित दिल्ली-एनसीआर के पड़ोसी राज्यों को 17 सौ करोड़ से ज्यादा की वित्तीय मदद और संसाधन मुहैया करा चुका है। इसके बावजूद पिछले साल यानी वर्ष 2020 में अकेले पंजाब में पराली जलने की 76 हजार से ज्यादा घटनाएं रिपोर्ट हुईं, जो वर्ष 2019 के मुकाबले 46 फीसद ज्यादा थीं। यह स्थिति तब थी जब पंजाब को इसके लिए 793 करोड़ की वित्तीय मदद दी गई थी।
सबसे ज्यादा घटनाएं पड़ोसी राज्यों में
वन एवं पर्यावरण मंत्रालय की रिपोर्ट के मुताबिक इन वर्षों में हरियाणा को 499 करोड़, उत्तर प्रदेश को 374 करोड़ और दिल्ली को साढ़े चार करोड़ रुपये दिए गए। खास बात यह है कि पराली जलने की सबसे ज्यादा घटनाएं पड़ोसी राज्यों में हैं। हरियाणा में पराली जलने की घटनाओं में कमी आई है। पिछले साल वहां पराली जलने की पांच हजार घटनाएं रिपोर्ट हुईं जबकि इससे पहले वर्ष 2019 में 6,652 घटनाएं दर्ज हुई थीं।
दिल्ली-एनसीआर पर छा जाता है स्माग
मालूम हो कि पंजाब और हरियाणा में जलने वाली पराली का यह धुंआ दिल्ली और एनसीआर के ऊपर हवा के कब दबाव का क्षेत्र निर्मित होने से छा जाता है। इस दौरान जहरीली हवाओं की धुंध छा जाती है और जनजीवन के लिए स्थिति गंभीर हो जाती है।
इस बार कराई जा सकती है कृत्रिम बारिश
पराली के जहरीले धुएं से निपटने की तैयारियों के बीच सरकार दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण की स्थिति ज्यादा गंभीर होने पर कृत्रिम बारिश कराने के विकल्प को भी साथ लेकर चल रही है। मंत्रालय से जुड़े अधिकारियों की मानें तो कृत्रिम बारिश कराने का पूरा रोडमैप पहले से तैयार है। जरूरत पड़ी तो विमानन एवं रक्षा मंत्रालय की मंजूरी लेकर इस प्रयोग को अंजाम दिया जाएगा।
पहले टल गई थी योजना
बता दें कि पर्यावरण मंत्रालय ने इससे पहले इसरो और आइआइटी कानपुर के वैज्ञानिकों की मदद से दिल्ली-एनसीआर में कृत्रिम बारिश कराने की तैयारी की थी। हालांकि बाद में यह योजना टल गई थी। वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (सीएक्यूएम) की ओर से भी राज्यों से कहा गया है कि वे उपग्रह डेटा का उपयोग कर पराली जलाने की घटनाओं के आकलन के लिए इसरो द्वारा विकसित एक मानक प्रोटोकाल को अपनाना और लागू करना सुनिश्चित करें।