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अनोखी है तिरंगे की पेपर पेंटिंग से राष्ट्रीय ध्वज की कहानी, मुस्लिम महिला ने किया था डिजाइन

एससी शर्मा ने लंदन से टेलरिंग का डिप्लोमा करने के बाद वर्ष 1930 में कनॉट प्लेस में दुकान खोली थी। अटल बिहारी वाजपेयी समेत कई दिग्गज सिलवाते थे कपड़े।

By Amit SinghEdited By: Published: Sun, 12 Aug 2018 10:45 AM (IST)Updated: Sun, 12 Aug 2018 10:45 AM (IST)
अनोखी है तिरंगे की पेपर पेंटिंग से राष्ट्रीय ध्वज की कहानी, मुस्लिम महिला ने किया था डिजाइन
अनोखी है तिरंगे की पेपर पेंटिंग से राष्ट्रीय ध्वज की कहानी, मुस्लिम महिला ने किया था डिजाइन

नई दिल्ली (मनु त्यागी)। दादा जी ने देश की आन-बान-शान, देश के गुमान तिरंगे को बहुत ही सहेज कर सीया था। आजादी के लिए लड़ी गई 100 बरस की जंग में कुर्बान हुए देश के लिए मर-मिटने वाले हर वीर सपूत के बलिदान को तिरंगे में तुरप दिया था।

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तिरंगे के तीनों रंग केसरिया, सफेद और हरे को मिलाकर, उसके आकार व बीच में बने अशोक चक्र.. हर चीज को दादा जी ने बड़े करीने के साथ कागज पर बने सबसे पहले तिरंगे से मिलान करते हुए सीकर सजा दिया था। मानों मां भारती स्वयं उनके पास खड़े होकर उनकी भावनाओं को रंग, रूप आकार दे रही हों। मेरे दादा जी का सौभाग्य था कि उन्हें स्वाधीनता दिवस के अवसर पर फहराया जाने वाला पहला तिरंगा तैयार करने का अवसर मिला। उनकी रग-रग में आजादी व देशभक्ति की भावना हिलोरे लेती थी।

शिव चरण शर्मा के पौत्र राजेश शर्मा अपने दादा जी के बारे में बेहद फक्र के साथ बताते हैं कि मेरे दादा जी ने सन् 1930 में कनॉट प्लेस में टेलर की दुकान खोली थी। उन्हें सिलाई का इस कदर शौक था कि इसके लिए लंदन से डिप्लोमा किया था। उनको आजादी का ऐसा जुनून था कि उन्होंने तिरंगा सीने के लिए कोई कीमत नहीं ली थी। 15 अगस्त 1947 को लालकिले पर फहराया जाने वाला तिरंगा भी उनके दादा द्वारा सिले गए तिरंगे की प्रतिकृति था।

अटल जी का सूट देने गया था

स्व. एससी शर्मा के पौत्र राजेश बताते हैं कि मैं भी आज दादा जी की दिखाई राह पर चल रहा हूं। 1930 से कनॉट प्लेस के 7 डी ब्लॉक में हमारी दुकान हुआ करती थी। मेरे दादा जी का 1981 में देहांत हो गया था। इसके बाद मेरे पिता जी राम लाल शर्मा ने दुकान संभाल ली थी और 1984 से मैंने भी दुकान पर बैठना शुरू कर दिया था। मुङो आज भी याद है हमारे यहां दुकान पर बड़े-बड़े राजनेता, अधिकारी सब कपड़े तैयार कराने आते थे।

हम सबके प्रिय अटल बिहारी वाजपेयी जब प्रधानमंत्री बने थे तो उस समय उनके कई सूट हमारी दुकान से बने थे। मैं सूट पहुंचाने उनके घर जाया करता था। दादा जी की तरह ही बेहतर टेलरिंग सीखने के लिए मैंने और मुझसे पहले मेरे पिता जी ने भी लंदन से इसका डिप्लोमा किया था। हालांकि वर्ष 2012 में सुप्रीम कोर्ट से केस हार जाने के बाद हमारी दुकान बंद हो गई। लेकिन मैं आज भी दादा जी और पिता जी का साथ छूट जाने के बाद भी उनसे मिले संस्कारों के साथ आगे बढ़ रहा हूं।

कागज पर बना था पहला तिरंगा

दरअसल 1936 बैच के आइसीएस अधिकारी बदरुद्दीन तैयब उस संविधान सभा के सदस्य सचिव थे, जिसने राष्ट्रध्वज के स्वरूप को अंतिम रूप दिया था। तैयब की सलाह पर ही तिरंगे में अशोक चक्र को स्थान दिया गया था। उन्होंने जब ये सलाह संविधान सभा में शामिल सदस्यों को दी तो उनसे कहा गया कि नमूने के तौर पर एक तिरंगा बनाकर दिखाएं। तैयब ने अपनी चित्रकार पत्नी नरगिस से एक नमूना तैयार करने को कहा। तब नरगिस ने कागज पर तिरंगा बनाया। उन्होंने उसमें बीच में सफेद रंग की पट्टी पर अशोक चक्र को रखा।

बाद में इसे कनॉट प्लेस की रीगल बिल्डिंग में स्थित एससी शर्मा टेलर्स के पास कपड़े पर तैयार कराने के लिए ले जाया गया। बदरुद्दीन तैयब ने तैयार तिरंगे को जब संविधान सभा के समक्ष पेश किया तो उस पर तुरंत सभी की सहमति बन गई और देश के नए राष्ट्र ध्वज के रूप में हरी झंडी दिखा दी गई थी। तत्कालीन आइसीएस बदरुद्दीन की बेटी लैला तैयब बताती हैं कि स्वाधीनता दिवस के कार्यक्रम को आयोजित कराने की जिम्मेदारी खुद पंडित जवाहर लाल नेहरू ने मेरे पिताजी को सौंपी थी। मुङो इस बात पर फक्र है कि यह अवसर उन्हें मिला। लैला फिलहाल ‘दस्तकार’ नामक संस्था का संचालन कर देश की हस्तकरघा परंपरा को आज भी जीवित रखने में अहम भूमिका निभा रही हैं।


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