नई दिल्ली, अनुराग मिश्रा/ विवेक तिवारी । अगर आप अपना वजन घटाने के लिए घंटों भूखे रहते हैं तो थोड़ा सावधान हो जाइये। विशेषज्ञों का मानना है कि ज्यादा देर तक भूखे रहने से दिल और दिमाग पर बोझ बढ़ता है। ऐसे में दिल का दौरा पड़ने का खतरा बढ़ जाता है। अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन की ओर से प्रकाशित इस अध्ययन में कहा गया है कि जो लोग दिन में सिर्फ आठ घंटों के दौरान ही कुछ खाते हैं बाकी समय भूखे रहते हैं उनमें दिल का दौरा पड़ने का खतरा लगभग दो गुना तक बढ़ जाता है। वहीं शोधकर्ताओं का मानना है कि जिन लोगों को पहले से दिल की कोई बीमारी है या कैंसर है और अगर वो लम्बी फास्टिंग करते हैं तो उनका जीवन मुश्किल में पड़ सकता है। वहीं जिन लोगों के दिल में स्टंट पड़े हों अगर वो ज्यादा देर तक भूखे रहते हैं तो उनके स्टंट ब्लॉक होने का भी खतरा बढ़ जाता है।

शंघाई जिओ टोंग यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ मेडिसिन के विक्टर जोंग की अगुवाई में ये रिसर्च की गई है। इस रिसर्च में अमेरिकी सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन के हेल्‍थ सर्वे में शामिल करीब 20 हजार लोगों के डेटा पर अध्ययन किया गया है। इस डेटा में आधे पुरुष और आधी महिलाओं का डेटा था। अध्ययन में पाया गया कि जो लोग लम्बे समय तक डाइटिंग करते हैं उनमें दिल का दौरा पड़ने से जिन लोगों की मौत हुई उनकी औसत उम्र 48 वर्ष थी। अध्ययन में 2003 से 2019 के बीच हुई मौतों के आंकड़ों का भी अध्ययन किया गया है। अध्ययन के मुताबिक, इंटरमिटेंट फास्टिंग करने वाले 91% लोगों में दिल की बीमारी से मौत का खतरा बढ़ता देखा गया। झोंग का दावा है कि स्‍टडी में 8 घंटे से ज्यादा इंटरमिटेंट फास्टिंग करने वाले लोगों में दिल का दौरा पड़ने से होने वाली मौतों का सीधे तौर पर संबंध देखा गया। । वैज्ञानिकों का मानना है कि इस विषय पर अभी और अध्ययन किए जाने की जरूरत है।

विशेषज्ञों का मानना है कि हमारे शरीर के लिए शुगर बेहद जरूरी है। बहुत लम्बी फॉस्टिंग करने से शरीर के हर हिस्से को नुकसान पहुंचता है। दिल्ली मेडिकल काउंसिल की साइंटिफिक कमेटी के चेयरमैन डॉक्टर नरेंद्र सैनी कहते हैं कि शरीर में शुगर की कमी सबसे ज्यादा दिमाग को नुकसान पहुंचाती है। शरीर को कोई भी मुश्किल होती है तो सबसे पहले इंसान बेहोश होता है। ऐसे में दिमाग को तुरंत शुगर की जरूरत होती है। ऐसे में हमें बहुत लम्बे समय तक भूखा नहीं रहना चाहिए। खास तौर पर किसी भी तरह की बीमारी से पीड़ित व्यक्ति को तो इस बात का खास तौर पर ध्यान रखना चाहिए। हमारा शरीर कुछ इस तरह से बना है कि बाकी सारे अंग तो शुगर की कमी को कुछ देर बरदाश्त कर सकते हैं। लेकिन दिल और दिमाग को शुगर चाहिए ही होता है। ऐसे में कई बार शुगर के मरीज को शुगर देनी पड़ती है। ज्यादा शुगर को कंट्रोल करना आसान है लेकिन शुगर की शरीर में कमी को मैनेज करना कठिन होता है।

घंटों भूखे रहने से शरीर में बढ़ते हैं स्ट्रेस हॉरमोन

एम्स कार्डियोलॉजी के निदेशक रह चुके और वर्तमान में Nims University के कुलपति डॉक्टर संदीप मिश्रा कहते हैं काफी देर तक भूखा रहना खतरनाक है। अगर कोई व्यक्ति किसी तरह की बीमारी से पीड़ित है तो उसको विशेष तौर पर ध्यान देना चाहिए कि भले थोड़ा खाए पर थोड़ी थोड़ी देर पर खाता रहे। दरअसल हमारा शरीर बहुत देर तक जब भूखा रहता है तो शरीर में कई तरह के स्ट्रेस हॉरमोन या कॉटीसोल रिलीज होने लगते हैं। हार्ट अटैक में इस स्ट्रेस हॉरमोन की अहम भूमिका होती है। वहीं दूसरी तरफ जो व्यक्ति काफी देर कर भूखा रहता है वो जब अपना फास्ट खत्म करता है तो कॉर्बोहाइड्रेट की कमी को पूरा करने के लिए जरूरत से ज्यादा खा लेता है। ऐसे में अचानक से बॉडी में बहुत सारी शुगर बढ़ती है। उस शुगर को कंट्रोल करने के लिए अचानक से बहुत सारी इंसुलिन भी रिलीज होती है। ऐसे में शरीर में एक तनाव पैदा होता है। ये शरीर के सभी अंगों पर दबाव बढ़ाता है। कई मामलों में देखा गया है कि ज्यादा देर तक भूखा रहने से लोगों को अच्छी नींद नहीं आती है। इससे भी शरीर में तनाव बढ़ता है तो दिल और दिमाग सहित सभी अंगों के लिए खतरा बढ़ता है। जो लोग पहले से दिल के मरीज हैं उनको खास तौर पर सलाह दी जाती है कि वो थोड़ी थोड़ी देर पर कुछ खाते रहें। लम्बे समय तक भूखे न रहें। जिन मरीजों के दिल में स्टंट पड़ा है वो अगर ज्यादा देर भूखे रहते हैं तो उनमें डीहाइड्रेशन हो जाता है ऐसे में दिल में पड़े स्टंट ब्लॉक होने का खतरा बढ़ जाता है।

क्या कहते हैं डाइटीशियन 

हमारे देश में बड़े पैमाने पर तीज त्योहारों पर व्रत रखने की परंपरा है। विशेषज्ञों का मानना है कि व्रत का मतलब पूरी तरह से भूखा रहना या रूटीन से हट कर खाना नहीं है। एनसीआर रेलवे हॉस्पिटल की सीनियर डाइटीशियन अर्पणा सक्सेना कहती हैं कि किसी भी तरह की क्रैश डाइट शरीर को नुकसान पहुंचाती है। इंटरमीडियेट फास्टिंग हो, कीटो डाइट हो या वेगन डाइट इनको बिना किसी विशेषज्ञ की सलाह के फॉलो करना आपके शरीर को नुकसान पहुंचा सकता है। लम्बे समय तक भूखे रहने से शरीर का ग्लूकोज लेवल तेजी से घटता है। इससे ब्रेन स्ट्रोक या दिल का दौरा पड़ने का खतरा निश्चित तौर पर बढ़ता है। हमारे शरीर नश्चित मात्रा में शुगर जरूरी है। दरअसल हमारी मांसपेशी को काम करने के लिए शुगर की जरूरत होती है। हमारे दिल में भी मांसपेशियां होती हैं। लम्बे समय तक भूखे रहने से मांसपेशियों की काम करने की क्षमता पर असर पड़ता है। इससे दिल की बीमारी का खतरा बढ़ता है। यदि कोई व्यक्ति व्रत भी रह रहा है तो उसे तरल पदार्थ जैसे छाछ, नीबू पानी, नारियल पानी आदि भरपूर मात्रा में लेने चाहिए। वहीं एक दिन में कम से कम 130 ग्राम कार्बोहाइड्रेड लेना चाहिए। व्रत के दौरान आलू व शकरकंद जैसी चीजों से कार्बोहाइड्रेड की जरूरत को पूरा किया जा सकता है।

आर्टिफिशियल शुगर बढ़ा सकती है मुश्किल

वजन घटाने के लिए या डायबिटीज के चलते अगर आप किसी आर्टिफिशियल स्वीटनर का इस्तेमाल कर रहे हैं तो थोड़ा सावधान हो जाइये। हाल ही में हुए एक अध्ययन में वैज्ञानिकों ने पाया है कि आर्टिफिशियल स्वीटनर आपके दिल की लय-ताल को बिगाड़ सकते हैं। नियमित तौर पर मिठास के लिए आर्टिफिशियल स्वीटनर का इस्तेमाल करने पर दिल का दौरा पड़ने का खतरा बढ़ जाता है। अध्ययन में पाया गया कि सप्ताह में दो लीटर तक लो कैलोरी ड्रिंक के नाम पर पेय पदार्थ पीने वाले युवाओं में 20 फीसदी दिन की धड़कन अनियमित होने का खतरा बढ़ गया। WHO ने भी हाल ही में आई अपनी एक रिपोर्ट में आर्टिफिशियल स्वीटनर के इस्तेमाल से बचने की सलाह दी है। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म लोकल सर्कल्स की ओर से किए गए एक सर्वे के मुताबिक भारत में शहरों में रहने वाले लगभग 38 फीसदी लोग आर्टिफिशियल स्वीटनर का इस्तेमाल करते हैं। ये सोडा, शुगर फ्री गम्स सहित कई अन्य उत्पादों में ये डाला जाता है। आर्टिफिशियल स्वीटनर शरीर को कई तरह से नुकसान पहुंचाते हैं। ऑर्गनाइज्ड मेडिसिन अकेडेमिक गिल्ड के सेक्रेटरी जनरल डॉ ईश्वर गिलाडा कहते हैं कि कई अध्ययनों में सामने आया है कि आर्टिफिशियल स्वीटनर कार्सिनोजेनिक होते हैं। ये शरीर में दिल, लीवर सहित कई हिस्सों को प्रभावित करते हैं। आर्टिफिशियल स्वीटनर के तौर पर शरीर में जाने वाले केमिकल को पेट में मौजूद बैक्टीरिया तोड़ने की कोशिश करते हैं। इससे शरीर लिए जरूरी इन बैक्टीरिया को तो नुकसान होता ही है साथ ही ये केमिकल कैंसर के खतरे को बढ़ाता है। इन आर्टिफिशियल स्वीटनर की तुलना में फलों से बनने वाले स्वीटनर हमारे शरीर के लिए बेहतर हैं। कई आर्टीफीशियल स्वीटनर्स को अमेरिका में उनके नेशनल टॉक्सिलॉजी प्रोग्राम के तहत प्रतिबंधित किया गया है। इसमें सैकरीन भी है। इसे बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया जाता है।

डब्लूएचओ ने किया अलर्ट

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने हाल ही में आर्टिफिशियल स्वीटनर को लेकर नए दिशानिर्देश जारी किया है। इनके तहत शरीर के वजन को नियंत्रित करने के लिए आर्टिफिशियल स्वीटनर का इस्तेमाल न करने की सलाह दी है। डब्ल्यूएचओ की ओर से कहा गया है कि आर्टिफिशियल स्वीटनर का इस्तेमाल वयस्कों या बच्चों में शरीर में फैट को कम करने में किसी भी तरह से मदद नहीं करता है। डब्लूएचओ की ओर से की गई समीक्षा के नतीजे यह भी बताते हैं कि आर्टिफिशियल स्वीटनर के दीर्घकालिक उपयोग से टाइप 2 मधुमेह, हृदय रोग और वयस्कों में मृत्यु दर का खतरा बढ़ जाता है। जिन आर्टिफिशियल स्वीटनर को इस्तेमाल न करने की सलाह दी गई है उनमें एसेसल्फेम, एस्पार्टेम, एडवांटेम, साइक्लामेट्स, नियोटेम, सैकरिन, सुक्रालोज़, स्टीविया और स्टीविया डेरिवेटिव शामिल हैं। हालांकि इनका इस्तेमाल स्वच्छता उत्पादों, जैसे टूथपेस्ट, त्वचा क्रीम, और दवाओं, या कम कैलोरी शर्करा और चीनी अल्कोहल (पॉलीओल्स) पर लागू नहीं होती है, जो कैलोरी युक्त शर्करा या चीनी डेरिवेटिव हैं।