नई दिल्ली, अनुराग मिश्र/विवेक तिवारी। देश भर में मच्छरों का प्रकोप दिन-ब-दिन बढ़ता जा रहा है। हाल में ही बेंगलुरु, दिल्ली-एनसीआर और उत्तर प्रदेश में मच्छरों की तादाद में बढ़ोतरी हुई है। इसके पीछे बेमौसम बारिश के साथ क्लाइमेट चेंज जिम्मेदार है। वैज्ञानिकों का मानना है कि जलवायु परिवर्तन की वजह से मच्छरों की तादाद बढ़ती जा रही है वहीं इसकी वजह से मच्छर पहले की तुलना में अधिक घातक होते जा रहे हैं वहीं उन पर मच्छर रोधी दवाओं का असर भी कम हुआ है।

बीते कुछ दिनों में बेंगलुरू में मच्छरों की संख्या में तेजी से ईजाफा हुआ है। वैज्ञानिकों का मानना है कि वर्ष भर बारिश के साथ-साथ अनियमित तापमान के साथ आर्द्र परिस्थितियों ने शहर और आस-पास के क्षेत्रों को मच्छरों के लिए एक आदर्श प्रजनन स्थल में बदल दिया है। दिल्ली में भी बीते हफ्ते मच्छरों की तादाद में बढ़ोतरी हुई। सार्वजनिक स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों का कहना है कि दिल्ली में पिछले एक पखवाड़े में मच्छरों के घनत्व में अचानक वृद्धि देखी जा रही है। हालांकि, अधिकारियों ने कहा कि मच्छरों की नई फसल क्यूलेक्स जीनस की है, जिससे डेंगू, मलेरिया या चिकनगुनिया नहीं होता है।

क्यूलेक्स मच्छर ज्यादातर कम हानिकारक होते हैं। यह त्वचा में जलन पैदा करते हैं। उनकी अधिक मौजूदगी नालियों और जल निकायों में बहुत अधिक ठहराव और तैरने वाली सामग्री का संकेत देती है क्योंकि वे रुके हुए पानी में प्रजनन करते हैं। मच्छरों से होने वाली बीमारियों पर साप्ताहिक रिपोर्ट में प्रजनन स्थलों का पता लगाने में वृद्धि देखी गई। मच्छरों की संख्या में बढ़ोतरी मार्च में तापमान में वृद्धि और वर्षा में बढ़ोतरी बड़ा कारण है।

डब्ल्यूएचओ ने भी जारी की चेतावनी

डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट के अनुसार जलवायु परिवर्तन से मच्छर जनित बीमारियों डेंगू, जीका और चिकनगुनिया का वैश्विक प्रकोप हो सकता है। डेंगू, जीका और चिकनगुनिया जैसे अर्बोवायरस के कारण होने वाले संक्रमणों की घटना हाल के दशकों में दुनिया भर में बढ़ी है। रिपोर्ट बताती है कि मच्छरों से लोगों में फैलने वाली ये बीमारियाँ दुनिया भर में प्रकोप की बढ़ती संख्या का कारण बन रही हैं, जलवायु परिवर्तन, वनों की कटाई और शहरीकरण कुछ प्रमुख जोखिम कारक हैं, जो मच्छरों को नए वातावरण में बेहतर रूप से अनुकूलित करने और भौगोलिक रूप से संक्रमण के जोखिम को फैलाने की अनुमति देते हैं।

डेंगू और जलवायु परिवर्तन में संबंध

लैसेंट की कुछ समय पहले आई रिपोर्ट में सामने आया था कि तापमान बढ़ने से कई बीमारियां, जो पहले कुछ स्थानों पर नहीं पाई जाती थीं वे भी उन स्थानों में फैल सकती हैं जैसे पहले डेंगू फैलाने वाले एडीज एजिप्टी मच्छर आमतौर पर समुद्र तल से 1005.84 मीटर से ज्यादा ऊंचाई वाले जगहों पर नहीं पाए जाते थे पर अब जलवायु परिवर्तन की वजह से कोलम्बिया में 2194.56 मीटर की ऊंचाई पर बसे जगहों में भी पाए जाने लगे हैं।

मौसम बदलेगा तो उन जगहों पर भी बढ़ेंगे मच्छर जहां यह नहीं पाए जाते

नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मलेरिया रिसर्च के वैज्ञानिक डॉक्टर हिम्मत सिंह कहते हैं कि जलवायु परिवर्तन के चलते पूरी दुनिया में मच्छरों के लिए अनुकूल माहौल बना है। मच्छरों के प्रजनन के लिए अच्छे माहौल वाले इलाके बढ़े हैं। वहीं गर्मी बढ़ने के साथ ही मच्छरों की लाइफ साइकिल तेज हो जाती है। गर्मी बढ़ने से अंडे से एक वयस्क मच्छर बनने के समय में कमी आती है। जिससे मच्छर जल्दी बड़े हो जाते हैं। एक मच्छर के लिए आदर्श तापमान लगभग 25 से 27 डिग्री और आर्द्रता 70 से 80 है। अगर तापमान आधा डिग्री तक बढ़ जाता है तो मच्छरों के पानी मे रहने के समय में कमी आती है और वो जल्दी बड़े हो जाते हैं। ऐसे में आपको उनकी संख्या ज्यादा महसूस होती है। क्लाइमेट चेंज के अगर तापमान बढ़ता है तो हो सकता है देश के कई हिस्से जहां मच्छर नहीं पाए जाते थे या जहां मच्छरों के लिए तापमान अनुकूल नहीं था वहां भी वो पाए जाने लगेंगे। वहीं ज्यादा सामान्य से कहीं ज्यादा तापमान हो जाए तो मच्छर कम भी हो सकते हैं। उदाहरण के तौर पर राजस्थान के गर्म इलाकों में तापमान और बढ़ता है तो मच्छर कम होंगे। वहीं पहाड़ों के घाटी वाले इलाकों में जहां अभी तक सामान्य तौर पर ज्यादा मच्छर नहीं पाए जाते वहां तापमान बढ़ने पर उनकी संख्या बढ़ सकती है। एक बात और ध्यान देने वाली है एक मच्छर के लारवा को व्यस्क मच्छर बनने में कम से कम 7 से 8 दिन लगते हैं। ऐसे में अगर पानी 7 दिनों से ज्यादा इकट्ठा होता है तो वहां मच्छर पनन सकते हैं। इस साल काफी लम्बे समय तक बारिश के चलते कई जगहों पर इस तरह का माहौल तैयार हुआ।

पहाड़ों पर भी बढ़ने लगे मामले

आईसीएमआर सेंटर ऑफ एक्सिलेंस फॉर क्लाइमेट चेंज एंड वेक्टर बॉर्न डिजीज के प्रिंसिपल इनवेस्टिगेटर रहे डॉक्टर रमेश धीमान बताते हैं कि जल जनित और वेक्टर जनित रोग पैदा करने वाले रोगजनक जलवायु के प्रति संवेदनशील होते हैं। मच्छरों, सैंड फ्लाई, खटमल आदि जैसे बीमारी फैलाने वाले कीटों का विकास और अस्तित्व तापमान और आर्द्रता पर निर्भर करता है, ये रोग वाहक मलेरिया, डेंगू, चिकनगुनिया, जापानी एन्सेफलाइटिस, कालाजार जैसी बीमारी बहुत तेजी से फैला सकते हैं। बदलते मौसम के चलते पूरी दुनिया में मच्छरों के प्रजनन के लिए एक बेहतर माहौल बना है। अब मच्छर ऐसे इलाकों में भी पाए जाने लगे हैं जहां पहले ये नहीं थे। उदाहरण के लिए, भारत में हिमालयी क्षेत्र, जलवायु परिवर्तन के प्रति बहुत अधिक संवेदनशील है क्योंकि तापमान में वृद्धि के कारण ठंडे तापमान वाले क्षेत्र मलेरिया और डेंगू के के लिए उपयुक्त हो गए हैं।

ये है समाधान

ICMR की संस्था नेशनल इंटीट्यूट ऑफ मलेरिया रिसर्च के वैज्ञानिक हिम्मत सिंह कहते हैं कि अन्य मच्छरों की तुलना में टाइगर मच्छर में प्रतिरोधक क्षमता ज्यादा बढ़ी है। ये मच्छर अन्य मच्छरों की तुलना में घातक भी है। सामान्य तौर पर किसी मच्छर को मारने के लिए 4 से 5 साल तक कोई एक केमिकल इस्तेमाल किया जाए तो वो इसके लिए प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर लेता है। ऐसे में हमें मच्छरों के लिए दो अलग अलग तकनीकों का इस्तेमाल करना चाहिए। पहली तकनीक जिसमें लम्बे समय तक एक केमिकल का छिड़काव नहीं किया जाता है। कुछ समय के अंतरराल पर मच्छर मारने के लिए केमिकल बदल दिए जाते हैं। वहीं दूसरी तकनीक को मोजैक तकनीक कहते हैं जिसमें मच्छरों को मारने के लिए किसी एक केमिकल का इस्तेमाल नहीं किया जाता है, बल्कि कई केमिकलों को मिला कर छिड़काव किया जाता है। इस तरह से मच्छरों पर नियंत्रण लगाया जा सकता है। वयस्क एडीज या टाइगर मच्छर को नियंत्रित करना काफी मुश्किल होता है। ऐसे में सबसे बेहतर होता है कि इस मच्छर के लारवा को ही खत्म कर दिया जाए।