नई दिल्ली, अनुराग मिश्र/विवेक तिवारी। भारत सहित पूरी दुनिया में पिछले कुछ सालों में एंटीबायोटिक दवाओं का अंधाधुंध इस्तेमाल किया जा रहा है। कभी डॉक्टर की सलाह से, कभी बिना सलाह के, किसी भी तरह की बीमारी में इनका इस्तेमाल लोग धड़ल्ले से कर रहे हैं। इसका परिणाम ये हुआ है कि अब इन एंटीबायोटिक दवाओं ने कुछ बैक्टीरिया पर असर करना बंद कर दिया है। इससे दुनिया में बैक्टीरियल इंफेक्शन से मौतें बढ़ रही हैं। भारत में कुछ दिनों पहले ICMR (इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च) ने एक स्टडी रिपोर्ट में कहा कि कार्बापेनेम्स और इमिपेनेम एंटीबायोटिक दवाओं का असर कम हो रहा है। ये दवाएं निमोनिया और ई. कोली जैसे बैक्टीरिया से होने वाले रोगों के लिए हैं। आईसीएमआर की रिपोर्ट को लैसेंट की रिपोर्ट ने और पुख्ता किया है। रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 2019 में सिर्फ पांच बैक्टीरिया से 6.8 लाखों लोगों की मौत हो गई। एक अन्य रिपोर्ट के मुताबिक साल में HIV और मलेरिया से जितनी मौतें होती हैं, उतनी मौत अकेले दवा प्रतिरोध के कारण हो रही हैं।

वहीं दूसरी तरफ विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) भी ऐसे बैक्टीरिया और वायरस की लिस्ट को अपडेट कर रहा है जो भविष्य में प्रकोप या महामारी का कारण बन सकते हैं। दुनिया भर में सबसे ज्यादा चिंता Disease X को लेकर जताई जा रही है जो एक अज्ञात जीवाणु या विषाणु है जो आने वाले समय में गंभीर अंतरराष्ट्रीय महामारी का कारण बन सकता है।

दुनियभर में हुई 77 लाख मौतें

लैसेंट की रिसर्च में दावा किया गया है कि 2019 में दुनिया में 77 लाख मौतें 33 सामान्य बैक्टीरिया संक्रमण के कारण हुईं। इन 33 में से पांच बैक्टीरिया आधी से ज्यादा मौतों की वजह बने। संक्रमण से मौतों की मुख्य वजह बनने वाले पांच बैक्टीरिया हैं- ई. कोली, एस. निमोनिया, के. निमोनिया, एस. ऑरियस और ए. बॉमनी। 2019 में दिल की बीमारियों से सबसे ज्यादा मौतें हुईं। लेकिन मौतों का दूसरा सबसे बड़ा कारण बैक्टीरिया से होने वाला इंफेक्शन रहा। शोधकर्ताओं ने पाया कि बैक्टीरिया जनित 77 लाख मौतों में से 75 फीसदी से ज्यादा तीन सिंड्रोम श्वसन संक्रमण, रक्त प्रवाह संक्रमण और पेरिटोनियल संक्रमण रहे।

लैंसेट का ये अध्ययन 2019 में 204 देशों में 23 रोगाणुओं और 88 एंटीबायोटिक ड्रग कांबिनेशन पर किया गया। इस शोध में 40 लाख 71 हजार लोगों को शामिल किया गया। रिपोर्ट दावा करती है कि 15 साल से ज्यादा उम्र वालों की मौत एस ऑरियस जैसे खतरनाक बैक्टीरिया के कारण होती है। सालमेलेनो बैक्टीरिया की चपेट में 5-14 साल के बच्चे सबसे ज्यादा आते हैं। रिपोर्ट के अनुसार, नवजात से लेकर 5 साल की उम्र वाले ढाई लाख बच्चों की निमोनिया के कारण मौत हुई। इसके अलावा निमोनिया के कारण 1 लाख 24 हजार और मौतें दुनियाभर में हुई हैं।

भारत में बैक्टीरिया संक्रमण से 13.7 लाख मौत

ई-कोलाई बैक्टीरिया से डायरिया से लेकर यूटीआई और निमोनिया जैसे संक्रमण होते हैं। ये बैक्टीरिया कितना खतरनाक है, इसका अंदाजा आप इससे लगा सकते हैं कि इसकी वजह से देश में 2019 में 1.6 लाख लोगों की जान गई। इसी तरह एस निमोनिया (1.4 लाख), के निमोनिया (1.3 लाख) , एस ऑरियस (1.2 लाख) , ए बोमैनिया (1.1 लाख) जैसे जीवाणु अलग-अलग बीमारी के रूप में लोगों की जिंदगी छीन रहे हैं। कुल मिलाकर, रिपोर्ट से पता चलता है कि 2019 में भारत में बैक्टीरिया के संक्रमण से 13.7 लाख लोगों की मौत हुई।

एंटीबायोटिक से शरीर के कई अंगों को नुकसान

आल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (एम्स) के पैथोलॉजी विभाग के डा. अमित डिंडा कहते हैं कि कोई भी एंटीबायोटिक दवा बिना डॉक्टर की सलाह के नहीं लेनी चाहिए। इन दवाओं की प्रकृति अलग-अलग होती है। कोई एंटीबायोटिक ज्यादा लेने पर किडनी को नुकसान पहुंचता है तो किसी से लीवर या शरीर के किसी अन्य अंग को। एंटीबायोटिक दवा से पाचनतंत्र में मौजूद अच्छे बैक्टीरिया मर जाते हैं, इससे आपको खाने की इच्छा नहीं होती है।

प्रतिरोधक क्षमता और सेहत पर असर

दिल्ली मेडिकल काउंसिल की साइंफिक कमेटी के चेयरमैन डॉक्टर नरेंद्र सैनी का कहना है कि आने वाले समय में हम एंटीबायोटिक दवाओं की कमी से महामारी जैसी स्थिति का सामना कर सकते हैं। भारत में बड़े पैमाने पर एंटीबायोटिक दवाओं का इस्तेमाल किया जा रहा है। बहुत से लोग बैक्टीरियल इंफेक्शन के लिए गलत एंटीबायोटिक दवा का इस्तेमाल कर रहे हैं। ये बेहद चिंताजनक है। दुनिया में कई सारे बैक्टीरिया पर कई एंटीबायोटिक दवाएं बेअसर हो रही हैं। पिछले कई सालों से नई एंटीबायोटिक दवाएं भी नहीं खोजी गई हैं। बहुत से बैक्टीरिया हमारी सेहत के लिए बेहद जरूरी हैं, गलत दवाओं के इस्तेमाल से ये मर जाते हैं। इससे हमारी प्रतिरोधक क्षमता और सेहत पर असर पड़ता है।

कल्चर जांच से कम होगी एंटीबायोटिक

एम्स ट्रामा सेंटर के डाक्टरों की शोध में यह बात सामने आई है कि यदि कल्चर जांच के आधार पर मरीजों को एंटीबायोटिक दवा दी जाए तो दवा की जरूरत कम होगी। इससे इलाज में एंटीबायोटिक दवाओं के बेअसर होने की समस्या भी कम होगी। एम्स के डाक्टरों ने ट्रामा सेंटर के आइसीयू में भर्ती हुए 18 वर्ष से अधिक उम्र के 582 मरीजों पर अध्ययन किया है। इन मरीजों को आइसीयू में भर्ती करने के 24 घंटे के अंदर अनुभव के आधार पर दी गई एंटीबायोटिक, एंटी फंगल दवाओं और कल्चर जांच के बाद दी गई एंटीबायोटिक व एंटी फंगल दवाओं के इस्तेमाल पर तुलनात्मक अध्ययन किया।

इस अध्ययन में पाया गया कि बगैर यह जाने की मरीज को किस चीज का संक्रमण था, सिर्फ अनुभव के आधार पर एंटीबायोटिक व एंटी फंगल दवा देने पर उसकी खपत अधिक हुई। कल्चर जांच से संक्रमण का पता चलने के बाद एंटीबायोटिक दवाएं बदलनी भी पड़ीं। दवा भी कम मरीजों को देने की जरूरत पड़ी।

एम्स ट्रामा सेंटर के माइक्रो बायोलाजी विभाग की प्रोफेसर डा. पूर्वा माथुर ने कहा कि आइसीएमआर की शोध परियोजना के तहत यह अध्ययन किया था। इसका मकसद आइसीयू में एंटीबायोटिक की खपत का पैटर्न जानना था, ताकि इनका इस्तेमाल कम करने की नीति बनाई जा सके।

शारदा अस्पताल के मेडिकल सुपरिटेंडेंट डा. ए.के. गॉडपायले कहते हैं कि एंटीबायोटिक दवाओं के असर न करने की गंभीर वजह है। बैक्टीरिया लगातार अपना आकार बदल रहा है। इसके अलावा बैक्टीरिया का म्यूटेशन भी हो रहा है। एंटीबायोटिक दवाओं का धड़ल्ले से इस्तेमाल भी एक बड़ा कारण बनता जा रहा है। इंफेक्शन प्रोटोकॉल का सही से पालन नहीं किया जा रहा है। 

शारदा अस्पताल के प्रोफेसर डा. भूमेश त्यागी हिदायत देते हैं कि किसी प्रमाणित डॉक्टर द्वारा बताई गई एंटीबायोटिक ही लेनी चाहिए। एंटीबायोटिक का सेवन बिना किसी सलाह के नहीं करना चाहिए। एंटीबायोटिक का प्रयोग बेवजह नहीं करना चाहिए। 

एंटी माइक्रोबियल रजिस्टेंस

मेडिकल शब्दावली में दवाएं बेअसर होने की स्थिति को एंटी माइक्रोबियल रजिस्टेंस कहा जाता है। ऐसा तब होता है जब बैक्टीरिया, वायरस, फंगस या पैरासाइट समय के साथ बदलते रहते हैं। निर्धारित बीमारी के लिए दी जाने वाली दवा रोगी पर असर नहीं करती है। इसका परिणाम होता है कि संक्रमण से उसकी मौत हो जाती है।

एचआईवी और मलेरिया के बराबर मौतें

वॉशिंगटन विश्वविद्यालय के प्रोफेसर क्रिस्टोफर मुरे और उनके सहयोगियों ने अपने अध्ययन के जरिए पूरी दुनिया में लोगों में रोगाणुरोधी प्रतिरोधक (AMR) क्षमता में आई कमी का आकलन करने और इस समस्या का समाधान खोजने का प्रयास किया। रिसर्च में शामिल वैज्ञानिकों ने 2019 में 204 देशों के अलग-अलग क्षेत्रों में 23 रोगजनकों (बैक्टीरिया, वायरस या ऐसे सूक्ष्म जीव जो हमें बीमार करते हैं) से हुई बीमारियों पर 88 एंटीबायोटिक ड्रग कॉम्बिनेशन के असर का अध्ययन किया।

इस अध्ययन के आधार पर क्रिस्टोफर मुरे और उनके सहयोगियों ने अनुमान लगाया कि 2019 में दवाओं के सीधे प्रतिरोध के कारण लगभग 12.7 लाख मौतें हुईं। यह दुनियाभर में एचआईवी (6.80 लाख) और मलेरिया (6.27 लाख) से हुई कुल मौतों के समान है। इस अध्ययन से यह भी पता चलता है कि एंटीबायोटिक दवाओं की प्रतिरोधक क्षमता पैदा होने से मरने वालों की संख्या कोविड-19 और टीबी के बाद सबसे ज्यादा है।

एम्स के डॉ. अमित कुमार डिंडा के अनुसार लोगों को ये समझना चाहिए कि कोविड-19 एक वायरस है और एंटीबायोटिक दवाएं बैक्टीरिया पर असर करती हैं। कोई भी एंटीबायोटिक दवा बिना डॉक्टर की सलाह के नहीं लेनी चाहिए।

एंटीबायोटिक के टॉक्सिक इफेक्ट

'एंटीबायोटिक्स एंड हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन इन इंडिया ड्यूरिंग द कोविड-19 पेंडेमिक' रिसर्च पेपर लिखने वाले शोधकर्ता सुमंत गांद्रा और जॉर्जिया स्यूलिस का कहना है कि अनुचित तौर पर एंटीबायोटिक का इस्तेमाल करना हानिकारक है। किसी रोग में इसके गलत प्रयोग की वजह से रोगी में अनावश्यक टॉक्सिक इफेक्ट हो सकते हैं। साथ ही इससे एंटीबायोटिक रजिस्टेंट बैक्टीरिया की आशंका प्रबल हो जाती है। एजिथ्रोमाइसिन ड्रग का प्रयोग भारत में डायरिया और टाइफाइड के इलाज के लिए होता है। इसके गलत इस्तेमाल से दुष्प्रभाव हो सकते हैं। वहीं कार्बापेनम एंटीबायोटिक्स को गंभीर परिस्थितियों में प्रयोग किया जाता है।

सफदरजंग अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक डा. बीएल शेरवाल ने कहा कि जिन मरीजों को जरूरत हो सिर्फ उन्हें ही एंटीबायोटिक देनी चाहिए। अंधेरे में तीर मारने से बेहतर है कि रैपिड जांच या कल्चर जांच के आधार पर इसे मरीज को दी जाए। मरीज खुद भी दवा दुकान से एंटीबायोटिक लेकर खा लेते हैं। इससे भी नुकसान होता है। इसलिए इसके विवेकपूर्ण इस्तेमाल के लिए लोगों को जागरूक करना जरूरी है।

47% दवाएं रेगुलेटरी बॉडी से पास नहीं

लैंसेट की रिपोर्ट के मुताबिक देश का प्राइवेट हेल्थकेयर सिस्टम जिन एंटीबायोटिक दवाओं का इस्तेमाल करता है, उनमें से 47 फीसदी से ज्यादा दवाओं को राष्ट्रीय फार्मास्युटिकल रेगुलेटरी बॉडी ने पास नहीं किया है। रिपोर्ट के अनुसार 2020 में भारत में एंटीबायोटिक दवाओं की कुल 1629 करोड़ डोज बेची गईं। यह 2018 और 2019 में बेची गई डोज के बनिस्पत थोड़ी कम है। वहीं 2018 में एंटीबायोटिक का 72.6 फीसद प्रयोग वयस्कों में हुआ। यह 2019 में 72.5 फीसद और 2020 में 76.8 फीसद हो गया। इसके अतिरिक्त, भारत में वयस्कों के लिए एज़िथ्रोमाइसिन की बिक्री 2020 में 5.9 प्रतिशत, 2019 में 4.5 फीसद और 2018 में 4 फीसद थी। यह एंटीबायोटिक्स के उत्तरोतर बढ़ते इस्तेमाल को दर्शाता है। इसके अलावा सांस की बीमारियों के इलाज में इस्तेमाल होने वाला डॉक्सीसाइक्लिन और फेरोपेन की बिक्री भी इस दौरान काफी बढ़ गई।

कई बैक्टीरियल इंफेक्शन में बेअसर एंटीबायोटिक

आईसीएमआर की सितंबर 2022 की एक रिसर्च के मुताबिक कई बैक्टीरियल इंफेक्शनों के मामले में कार्बापेनेम्स दवाएं बेअसर हो चुकी हैं। कार्बापेनेम्स दवाओं की वह श्रेणी है जो आईसीयू में न्यूमोनिया जैसे आम इंफेक्शनों के इलाज में इस्तेमाल की जाती रही है। रिपोर्ट की मुख्य लेखिका और आईसीएमआर की वरिष्ठ वैज्ञानिक कामिनी वालिया कहती हैं कि सेप्सिस या कई गंभीर इंफेक्शन के इलाज के लिए हमारे पास दवाएं कम पड़ती जा रही हैं। इसकी वजह है उच्च प्रतिरोधक क्षमता वाले पैथोजंस। डा. वालिया का कहना है कि एंटीबायोटिक दवाओं के तर्कसंगत उपयोग को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। इसके लिए जांच करने वाली प्रयोगशालाओं की गुणवत्ता में सुधार और उन्हें सशक्त बनाया जाना बहुत जरूरी है। डाक्टरों को भी एंटीबायोटिक दवाओं को निश्चित जांच रिपोर्ट के आधार पर ही लिखना चाहिए, अनुमान के आधार पर नहीं।

इमिपेनेम का असर 22 प्रतिशत घटा

आईसीएमआर की रिपोर्ट के अनुसार एंटीबायोटिक दवा इमिपेनेम का एएमआर 2016 के 14 प्रतिशत की तुलना में 2021 में बढ़कर 36 प्रतिशत हो गया। इस दवा का इस्तेमाल 'ई कोली' बैक्टीरिया से होने वाले संक्रमण के इलाज में किया जाता है। 'क्लेबसिएला न्यूमोनिया' के इलाज में इस्तेमाल की जाने वाली विशेष प्रकार की एंटीबायोटिक दवाओं के असर में भी कमी देखी गई है। 2016 में इस बीमारी के इलाज में दी जाने वाली दवाओं का असर 65 प्रतिशत होता था, जो 2020 में घटकर 45 प्रतिशत और 2021 में 43 प्रतिशत पर आ गया।

पेट दर्द, मधुमेह, मोटापा और प्रतिरक्षा तंत्र के लिए बेहद जरूरी जीवाणु

लखनऊ स्थित किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय (केजीएमयू) के कुलपति लेफ्टिनेंट जनरल डा. बिपिन पुरी ने कहा कि पाचन तंत्र और प्रतिरक्षा तंत्र को बेहतर बनाने के लिए हमारे शरीर में 10 से 100 लाख करोड़ जीवाणु होते हैं। यह जीवाणु पेट दर्द, मधुमेह, मोटापा और प्रतिरक्षा तंत्र के लिए बेहद जरूरी होते हैं। यह जीवाणु एक मनुष्य से दूसरे मनुष्य में 80 से 90 प्रतिशत तक भिन्न हो सकते हैं। एंटीबायोटिक दवाओं के लेने से शरीर के अच्छे जीवाणु भी मर जाते हैं जिससे प्रतिरक्षा और पाचन तंत्र के कमजोर होने और गंभीर बीमारियों की आशंका बढ़ जाती है। जब तक डाक्टर सलाह न दे, एंटीबायोटिक दवा बिल्कुल न खाएं।

फिजिशियन और कैंसर रोग विशेषज्ञ डा. शशिभूषण उपाध्याय का कहना है कि कई लोग बिना डाक्टर की सलाह के मेडिकल स्टोरों और झोलाछाप डॉक्टर से लगातार एंटीबायोटिक और पेरासिटामोल का प्रयोग कर रहे है, जिसकी वजह से लीवर और फेफड़ों में खराबी आ रही है। ऐसे में दवा का सेवन चिकित्सक से पूछ कर ही करें।