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हाशिमपुरा नरसंहार : गोलियां चलती रहीं, एक-एक कर गिरतीं गई 42 लाशें, 'वे' देख रहे थे

मेरठ के हाशिमपुरा नरसंहार का लिंक केंद्र में सत्तासीन तत्कालीन कांग्रेस सरकार से भी है, जिसने 1986 में बाबरी मस्जिद का ताला खोलने का आदेश दिया था।

By JP YadavEdited By: Published: Wed, 31 Oct 2018 02:56 PM (IST)Updated: Wed, 31 Oct 2018 02:56 PM (IST)
हाशिमपुरा नरसंहार : गोलियां चलती रहीं, एक-एक कर गिरतीं गई 42 लाशें, 'वे' देख रहे थे
हाशिमपुरा नरसंहार : गोलियां चलती रहीं, एक-एक कर गिरतीं गई 42 लाशें, 'वे' देख रहे थे

नई दिल्ली/मेरठ, जेएनएन। 31 साल के लंबे इंतजार के बाद बुधवार को दिल्ली हाई कोर्ट ने उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले के हाशिमपुरा नरसंहार (1987) मामले में एक खास समुदाय के 42 लोगों की हत्या में 16 पीएसी जवानों को उम्रकैद की सजा सुनाई है। बता दें कि 31 साल पहले मई 1987 में मेरठ के हाशिमपुरा में 42 लोगों की हत्या कर दी गई थी। बुधवार को सजा के दौरान दिल्ली हाई कोर्ट की टिप्पणी भी इसकी तस्दीक कर रही है कि यह हत्या मनुष्यता के खिलाफ थी? सही मायने में आजादी के बाद यह सामूहिक नरसंहार उत्तर माथे पर ऐसा कलंक है, जो कभी नहीं मिटाया जा सकता है। 

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हाशिमपुरा नरसंहार मामला

मेरठ के हाशिमपुरा नरसंहार का लिंक केंद्र में सत्तासीन तत्कालीन कांग्रेस सरकार से भी है, जिसने 1986 में बाबरी मस्जिद का ताला खोलने का आदेश दिया था। इसने पूरे देश का राजनीतिक माहौल गरमा दिया, लेकिन  पश्चिमी उत्तर प्रदेश का माहौल ज्यादा ही गरमा गया।

अप्रैल, 1987 में बिगड़ने लगा था माहौल
बाबरी मस्जिद का ताला खोलने के आदेश के जो माहौल बिगड़ा उससे 14 अप्रैल, 1987 से मेरठ में धार्मिक उन्माद शुरू हो गया। इस दौरान दुकानों और घरों को आग के हवाले कर दिया गया था। हत्या, आगजनी और लूट की वारदातें होने लगीं। कई हत्याओं के बाद माहौल बिगड़ने लगा था। 

मेरठ में नहीं संभल रहे थे हालात, लगा दिया था कर्फ्यू

हालात बिगड़ने के साथ शासन-प्रशासन ने तत्काल कदम उठाए और माहौल पर काफी हद तक काबू पाया, लेकिन मेरठ में दंगे की चिंगारी शांत नहीं हुई थी। जगह-जगह छिटपुट घटनाएं हो रही थीं। इनके मद्देनजर मई के महीने में मेरठ शहर में कर्फ्यू लगाना पड़ा। इस दौरान हालात संभालने के लिए शहर में सेना के जवानों ने मोर्चा संभाल लिया। हालात काबू में आने लगे, लेकिन मई का महीना आते आते कई बार शहर में कर्फ्य जैसे हालात हुए और कर्फ्यू लगाना भी पड़ा।

22 मई यूपी के लिए बन गया काला अध्याय

हालात संभालने के मद्देनजर 19 और 20 मई, 1987 को पुलिस, पीएसी और मिलिट्री ने हाशिमपुरा मोहल्ले में सर्च अभियान चलाया। हाशिमपुरा के अलावा शाहपीर गेट, गोला कुआं, इम्लियान सहित अन्य मोहल्लों में पहुंचकर सेना ने मकानों की तलाशी ली थी। इस दौरान भारी मात्रा में हथियार और विस्फोटक सामग्री मिली थीं। सर्च अभियान के दौरान हजारों लोगों को पकड़ा गया और गिरफ्तार करके जेल भेज दिया था।

वहीं, गंभीर आरोप यह था कि इस दौरान जवान यहां रहने वाले किशोरों, युवकों और बुजुर्गों सहित कई 100 लोगों को ट्रकों में भरकर पुलिस लाइन ले गए। उस दिन शाम के समय पीएसी के जवान एक ट्रक को दिल्ली रोड पर मुरादनगर गंग नहर पर ले गए थे। बताया जाता है कि इस ट्रक में करीब 50 लोग थे। इसे बाद वहां ट्रक से उतारकर जवानों ने एक-एक करके लोगों को गोली मारकर गंग नहर में फेंक दिया।

इसमें तकरीबन 8 लोग सकुशल बच गए थे, जिन्होंने बाद में थाने पहुंचकर इस मामले में रिपोर्ट दर्ज कराई थी। और 43 लोगों की मौत हो गई थी। पुलिस फाइलों में दर्ज जानकारी के मुताबिक, जुल्फिकार, बाबूदीन, मुजीबुर्रहमान, मोहम्मद उस्मान और नईम गोली लगने के बावजूद सकुशल बच गए थे। बाबूदीन ने ही गाजियाबाद के लिंक रोड थाने पहुंचकर रिपोर्ट दर्ज कराई थी, जिसके बाद हाशिमपुरा कांड पूरे देश में चर्चा का विषय बना।

पीएसी पर यह था गंभीर आरोप

पेश मामले के अनुसार मेरठ जिला स्थित हाशिमपुरा में 22 मई 1987 को काफी संख्या में प्रोविंशियल आ‌र्म्ड कांस्टेबुलरी (पीएसी) के जवान पहुंचे थे। जवानों ने मस्जिद के सामने चल रही धार्मिक सभा में करीब 50 लोगों को हिरासत में लिया। फिर 42 लोगों को गोली मार दी। शव नहर में फेंक दिए गए थे।


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