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    Jammu Kashmir: अचानक क्‍यों बढ़ गईं आतंकी घटनाएं? किसी की साजिश या आतंकवादी संघर्ष विराम का उठा रहे लाभ

    Updated: Tue, 16 Jul 2024 07:11 PM (IST)

    आगामी महीनों में जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। ऐसे में राज्य में आतंकी घटनाओं में तेजी चिंताजनक है। अनुच्छेद-370 हटाए जाने के बाद राज्य में निवेश आया है और विकास की गतिविधियां तेज हुई हैं। यह पड़ताल अहम मुद्दा है कि बढ़ती आर्थिक गतिविधियों के बीच जम्मू में आतंकी हमले तेज करने के पीछे पाकिस्तान की क्या रणनीति है?

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    Jammu Kashmir: जम्‍मू-कश्‍मीर में तैनात सुरक्षाकर्मी। फाइल फोटो

    डिजिटल डेस्‍क, नई दिल्‍ली। आतंकी संगठन अब जम्मू क्षेत्र को निशाना बना रहे हैं। लगातार इस तरह के हमलों से साफ है कि आतंकियों ने इस क्षेत्र में अपनी जड़ें फिर से जमा ली हैं। भौगोलिक दृष्टि से समझें तो ज्यादातर हमले पीर पंजाल के दक्षिण क्षेत्र में हो रहे हैं। यह पूरा क्षेत्र घना पहाड़ी जंगल है और  कुछ मीटर भी देखना संभव नहीं है। पाकिस्तान से आने वाले आतंकी इसका फायदा उठाकर सुरक्षाबलों पर हमला करते हैं और फिर जंगल में ही भाग जाते हैं और इस क्षेत्र में बने ठिकानों में छिपे रहते हैं।

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    वर्ष 2,000 के आसपास यह क्षेत्र आतंक का गढ़ बन चुका था। कश्मीर से अधिक हमले इसी क्षेत्र में होते थे। राजौरी-पुंछ से लेकर डोडा-किश्तवाड़ और रियासी में एक के बाद कई नरसंहार हुए और उसके बाद शासन चेता और सेना को आतंक के सफाए के लिए खुली छूट दी गई।

    2004 में पुंछ में हिल काका पर ऑपरेशन सर्प विनाश को अंजाम दिया गया। अन्य जिलों में भी सेना की रोमियो फोर्स ने आतंकियों को खोज-खोजकर मारना शुरू कर दिया। उसके बाद इन आतंकियों को कोई ठौर नहीं मिली। उसके बाद लगभग दो दशक की शांति के बाद इस क्षेत्र में आतंकी न केवल जड़ें जमा चुके हैं बल्कि सेना के शौर्य को चुनौती देने का प्रयास कर रहे हैं।

    कैसे मिल रहे आतंकियों को सुरक्षित ठिकाने?

    आवश्यकता यह समझने की है- ऐसे क्या हालात बने कि हम इस क्षेत्र में अमन की रक्षा नहीं कर पाए। इस क्षेत्र में आतंकियों को सुरक्षित ठिकाने कैसे मिल रहे हैं, जबकि यहां की मूल आबादी सदैव आतंक के खिलाफ संघर्ष में सेना का साथ देती रही है।

    पूर्ववर्ती सरकारों की नीतियों के कारण ऐसे लोगों को नदी, नालों और खड्डों के आसपास लगातार बसाया गया, जिनकी भूमिका सदैव संदिग्ध रही है। इन्हीं नालों के आस-पास आतंकियों को ठिकाने मिल रहे हैं और वह वारदात को अंजाम देने के बाद आसानी से निकल जा रहे हैं।

    क्‍या संघर्ष विराम का फायदा उठा रहा पाकिस्तान?

    दूसरा बड़ा कारण यह है कि हमने पाकिस्तान के साथ साल 2021 में संघर्ष विराम किया और इसका फायदा लगातार पाकिस्तान उठा रहा है। चूंकि अब नियंत्रण रेखा शांत है और पाकिस्तान के लिए इस क्षेत्र में आतंकियों की घुसपैठ कराना सुगम हो गया है।

    इस दौरान नियंत्रण रेखा पर संघर्षविराम का पाकिस्तान ने फायदा उठाया और एलओसी के उस पार तबाह हो चुके अपने प्रशिक्षण केंद्रों को फिर से सक्रिय कर दिया और लगातार भारतीय क्षेत्र में घुसपैठ करता रहा। यह प्रक्रिया अभी भी जारी है। यही वजह है कि एक समय जम्मू- कश्मीर में लगभग तबाह हो चुका आतंकी नेटवर्क फिर से सक्रिय हो चुका है।

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    शांत क्षेत्र में क्‍यों हो रहे आतंकी हमले?

    जम्मू-कश्मीर के पुनर्गठन के बाद पीर पंजाल के उत्तर क्षेत्र अर्थात दक्षिण कश्मीर में हमने सुरक्षा घेरा इस तरह से कसे रखा कि आतंकी और उनके समर्थक कसमसा कर रह गए।

    वहीं, शांत दिख रहे पीर पंजाल के दक्षिण क्षेत्र पर हमारी चौकसी कम होती गई। इस क्षेत्र में सुरक्षाबल पहले से ही कम थे। ऐसे में पाकिस्तान ने आतंकियों के अपने नेटवर्क को पहले राजौरी-पुंछ तथा डोडा जैसे जिलों में फिर से सक्रिय कर दिया।

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    सबसे पहले यह समझना आवश्यक है कि जम्मू के पहाड़ी क्षेत्र आतंकियों के लिए आश्रय स्थल रहे हैं। इन जंगलों में छिपकर आतंकी हमलों को अंजाम देते थे। करीब दो दशक पूर्व भी यह क्षेत्र आतंक का गढ़ रहा था और कश्मीर से अधिक हमले इस क्षेत्र में होते थे। अब रियासी में निर्दोष महिलाओं और बच्चों को निशाना बनाया गया।

    फिर कठुआ में सेना के वाहन पर हमला चिंता की बात है। अब समय ठोस निर्णय लेने का है। राजौरी, पुंछ के बाद रियासी और कठुआ के हमले बताते हैं कि सेना को और एक ओर निर्णायक प्रहार के लिए छूट देनी होगी। इस बार निर्णायक कार्रवाई हो और ऐसी हो कि पाकिस्तान कुछ भी करने से पहले सौ बार सोचे।

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    (लेखक: जीडी बख्शी, मेजर जनरल (सेवानिवृत्त))