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    महिलाओं को तय करने दें कितने बच्चे चाहिए.. पालन पोषण और एजुकेशन का खर्च; क्या माता-पिता की इन समस्याओं के पास है कोई हल?

    Updated: Mon, 09 Dec 2024 07:55 PM (IST)

    भारत की प्रजनन दर 2.1 से घटकर 2.0 पर आ गई है जो चिंताजनक नहीं बल्कि सोच-समझकर नीतियां बनाने का अवसर है। 36.5 करोड़ युवाओं के साथ भारत का जनसांख्यिकीय लाभांश उसकी ताकत है लेकिन गुणवत्तापूर्ण शिक्षा पोषण और कौशल विकास जरूरी हैं। बच्चों की देखभाल और शिक्षा की बढ़ती लागत माता-पिता के लिए चुनौती है। समावेशी नीतियां और महिलाओं का सशक्तिकरण जनसांख्यिकीय संतुलन के लिए अनिवार्य हैं।

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    भारत की जनसंख्या चिंता की बात या सावधानी से विचार करने की जरूरत है? फाइल फोटो

    डिजिटल डेस्‍क, नई दिल्‍ली। यह डर कि 2.1 प्रतिशत से कम प्रजनन  दर  (टीएफआर) वाला समाज धरती से गायब हो सकता है, यह पूरी तरह से निराधार है। देश खत्म हो जाएगा इस आशंका में परिवार बढ़ाने की बात करना मौलिक रूप से गलत है।

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    यह महिलाओं की स्वायत्तता को कमजोर करने के साथ उन नीतिगत उपायों की भी अनदेखी करता है, जिनकी भारत को अपनी जनसांख्यिकीय चुनौतियों से निपटने के लिए जरूरत है। भारत की जनसंख्या चिंता की बात नहीं है, बल्कि इस पर सावधानी से विचार करने की जरूरत है।

    साल 2023 में देश चीन को पीछे छोड़ कर दुनिया की सबसे अधिक आबादी वाला देश बन गया है। भारत की कुल प्रजनन दर (टीएफआर) 1992-93 में 3.4 प्रतिशत से घटकर 2019-21 में 2.0 प्रतिशत हो गई है, जो रिप्लेसमेंट रेट 2.1 प्रतिशत से नीचे चली गई है।

    सही पोषण और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और कौशल विकास जरूरी

    संयुक्त राष्ट्र के अनुमानों के अनुसार, भारत की जनसंख्या 21वीं सदी के छठे दशक में 1.7 अरब तक तक पहुंच सकती है। 2100 तक जनसंख्या धीरे-धीरे घटकर 1.5 अरब हो जाएगी। भारत का जनसांख्यिकीय लाभांश यानी युवाओं की बड़ी आबादी, देश के भविष्य को नया आकार देने का अवसर प्रदान करता है।

    10 से 24 वर्ष की आयु के 36.5 करोड़ से अधिक युवाओं के साथ भारत अगले तीन दशकों में दुनिया के सबसे बड़े कार्यबलों में से एक बनने की राह पर है। लेकिन इस क्षमता का लाभ तभी पूरी तरह से उठाया जा सकता है, जब हम गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, बच्चों के पोषण, स्वास्थ्य देखभाल, कौशल विकास और नौकरियों के लिए जरूरत के हिसाब से निवेश करेंगे।

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    खर्च के बोझ तले दबने से डर रहे मां-बाप

    बच्चों के पालन-पोषण पर आने वाला खर्च अधिक बच्चे पैदा करने की अपील को कमजोर करता है। बच्चों की शिक्षा, स्वास्थ्य सुविधाओं का खर्च लगातार बढ़ रहा है।

    लगभग 50 प्रतिशत बच्चे निजी स्कूलों में जाते हैं। 14 वर्ष की आयु तक मुफ्त और अच्छी गुणवत्ता वाली शिक्षा की संवैधानिक गारंटी के बावजूद अधिकांश गरीब और मध्यम वर्ग के परिवारों को निजी क्षेत्र की महंगी स्कूली शिक्षा का बोझ झेलना पड़ रहा है। इन मुद्दों का समाधान करने की जरूरत है।

    भारत का जनसांख्यिकीय परिदृश्य विविधता से परिपूर्ण है। यह ऐसी नीतियों और कार्यक्रमों की मांग करता है, जो राज्यों की विशिष्ट आवश्यकताओं के अनुरूप हो। आदेश देकर जनसंख्या नियंत्रण लागू करने के बजाय विचारशील, समावेशी नीतियों के माध्यम से सशक्तिकरण पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।

    इसमें परिवारों पर आर्थिक बोझ कम करने के लिए बच्चो की देखभाल और शिक्षा पर आने वाली लागत कम करना और पारिवारिक सहायता प्रणालियों में निवेश शामिल है। उच्च प्रजनन क्षमता वाले क्षेत्रों से कार्यबल की कमी वाले राज्यों में प्रवास के माध्यम से श्रम असंतुलन को दूर करना एक और व्यावहारिक कदम है। साथ ही महिलाओं को सशक्त बनाना होगा।

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    (सोर्स: पापुलेशन फाउंडेशन ऑफ इंडिया की कार्यकारी निदेशक पूनम मुतरेजा से बातचीत)