Make in India: आज भारत में बन रहा है आईफोन, क्या श्रम सुधार से मिलेगी मैन्युफैक्चरिंग को रफ्तार?
मेक इन इंडिया पहल ने भारतीय मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को नए सिरे से मजबूत किया है। वर्ष 2014 में जब भारत का मैन्युफैक्चरिंग बेस गिरावट पर था तब इस पहल ने उसे न सिर्फ रोका बल्कि GDP में इसकी हिस्सेदारी 17% तक बनाए रखी। अभी भी श्रम सुधारों और लॉजिस्टिक्स में चुनौतियां हैं लेकिन सरकार की प्रोडक्ट लिंक्ड इंसेंटिव (PLI) स्कीम से यह क्षेत्र आगे बढ़ रहा है।
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। मेक इन इंडिया पहल से भारत के मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में नई जान आई है। यह सही है कि 10 वर्ष पहले भी जीडीपी में मैन्युफैक्चरिंग की हिस्सेदारी 17 प्रतिशत थी और आज भी जीडीपी में मैन्युफैक्चरिंग का योगदान 17 प्रतिशत है, लेकिन इसके आधार पर यह निष्कर्ष निकालना सही नहीं होगा कि मेक इन इंडिया से मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा नहीं मिला है।
आपको सही तस्वीर जानने के लिए 2014 के पहले के आंकड़ों पर गौर करना होगा। 2002 से 2014 के बीच मैन्युफैक्चरिंग के आंकड़े गिर रहे थे। ज्यादा से ज्यादा वस्तुएं भारत में बनने के बजाए बाहर से आयात हो रही थीं। बाहर से आ रही चीजें इतनी सस्ती थीं कि उनका यहां निर्माण करना आर्थिक तौर पर फायदेमंद नहीं था।
भारतीय उद्यमियों ने विदेश में लगाई थीं फैक्ट्रियां
यही वह दौर था, जब बहुत से कारोबारियों ने भारत में अपनी मैन्युफैक्चरिंग यूनिट बंद करके दूसरे देशों में जाकर मैन्युफैक्चरिंग यूनिट लगाईं। यहां तक भारत के ही बहुत से उद्यमियों ने अपनी यूनिट भारत में बंद करके बांग्लादेश में लगाईं और बांग्लादेश ने कपड़ों के निर्यात में भारत को पीछे छोड़ दिया। उस समय भारत का दूसरे देशों से जो व्यापार समझौता था, वह एकतरफा था। जैसे थाईलैंड और आसियान के साथ।
इस समझौते से फायदा सिर्फ दूसरे देशों को हो रहा था और व्यापार संतुलन भारत के खिलाफ था। इससे भारत में मैन्यूफैक्चरिंग खत्म हो रही थी। इस स्थिति को बदलने के लिए 2014 में मेक इन इंडिया को लॉन्च किया गया। अगर मेक इन इंडिया न होता तो मैन्युफैक्चरिंग का आंकड़ा गिर कर 10-12 प्रतिशत पर आ जाता।
मेक इन इंडिया से कैसे फायदा हुआ?
मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र को मेक इन इंडिया से कैसे फायदा हुआ है। इसे देखने का एक और तरीका है। साल 2014 में भारत की जीडीपी में मैन्युफैक्चरिंग की हिस्सेदारी 17 प्रतिशत थी। उस समय हमारी जीडीपी का आकार 2 लाख करोड़ डॉलर था। इसका 17 प्रतिशत हुआ 35 अरब डॉलर।
आज हमारी जीडीपी का आकार 3.2 लाख करोड़ डॉलर है। इसका 17 प्रतिशत हुआ करीब 50 अरब डॉलर। ऐसे में मेक इन इंडिया ने भारत की मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर की गिरावट को न सिर्फ रोका है, बल्कि मैन्युफैक्चरिंग बेस का विस्तार किया है।
मेक इन इंडिया की सफलता का आकलन आप ऐसे कर सकते हैं कि 10 वर्ष पहले कोई सोच भी नहीं सकता था कि भारत में आईफोन बन सकता है। एपल जैसी बड़ी कंपनी के लिए यह सोचना भी मुश्किल था कि वह भारत में आईफोन बनाए। यह सोच आई है सिर्फ मेक इन इंडिया की वजह से।
मेक इन इंडिया के बाद जो प्रोडक्ट लिंक्ड इंसेंटिव (पीएलआई) स्कीम शुरू की गई है। इसमें उत्पाद के हिसाब से प्रोत्साहन दिया जा रहा है। जैसे किसी उत्पाद की इंडस्ट्री को छूट देने की जरूरत है तो उसे छूट दी जा रही है।
इसी तरह अगर किसी को फैक्ट्री लगाने में लगने वाली पूंजी में मदद की जरूरत है तो इसमें भी सरकार मदद कर रही है। जैसे सेमीकंडक्टर के लिए किया है, इलेक्ट्रानिक्स, मेडिकल डिवाइस और टेक्सटाइल के लिए किया है। इसमें सरकार कह रही है कि आप जो फैक्ट्री लगा रहे हैं। निवेश कर रहे हैं, तो आप उत्पाद बनाकर निर्यात करिये। निर्यात पर आपका जो खर्चा आएगा उस पर सब्सिडी देंगे। यह निर्यात बढ़ाने के लिए एक बड़ा प्रोत्साहन है।
निश्चित तौर पर मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर के सामने कई चुनौतियां हैं। आज सबसे बड़ी चुनौती है श्रम सुधारों की है। अगर कोई मैन्युफैक्चरिंग प्लांट लगाता है और छह माह बाद हड़ताल हो जाती है तो उसकी पूंजी फंस जाएगी। भारत में सबसे बड़ा डर श्रम नियमों को लेकर है। अगर आपने किसी को एक बार नियुक्त कर लिया तो उसको निकालने की प्रक्रिया बहुत जटिल है।
आज भारत में पूंजी की समस्या नहीं है, खरीदार भी हैं लेकिन श्रमिकों के साथ काम करना एक बड़ी समस्या है। दूसरी चुनौती है भूमि की उपलब्धता। खासकर उपयुक्त जमीन की। जहां पर उत्पाद के परिवहन के लिए ट्रक उपलब्ध हों। एयरपोर्ट नजदीक हो और रेलवे की कनेक्टिविटी भी हो। भारत में लॉजिस्टिक्स की चुनौतियां भी हैं।
(डेलाइट इंडिया के पार्टनर एमएस मनी से बातचीत)