'एक गऊ मेरे भीतर है जिसे कटने का डर है..', पढ़ें साहित्य अकादमी पुरस्कार के लिए चयनित कवयित्री गगन गिल से बातचीत
नामचीन साहित्यकार गगन गिल को वर्ष 2024 का साहित्य अकादमी पुरस्कार उनकी कृति मैं जब तक आई बाहर के लिए मिला है। गिल ने अपनी साहित्यिक यात्रा अपनी मां ड ...और पढ़ें

ज्ञानेंद्र कुमार शुक्ल, ग्रेटर नोएडा। वर्ष 2024 का साहित्य अकादमी पुरस्कार हिंदी की नामचीन साहित्यकार व कवयित्री गगन गिल को दिए जाने की घोषणा हुई है। इसके बाद जब मैं ग्रेटर नोएडा में सेक्टर पाई स्थित एलडिगो ग्रीन मीडोस के फ्लैट जी-16 में गगन गिल से मिलने पहुंचा तो वह स्वभाव के अनुसार बेहद शांत, आंखों में खुशी के आंसू लिए मिलीं। दरवाजा खोला और औपचारिक परिचय के बाद जैसे ही कुछ पूछना चाहा तो बोलीं क्या बोलूं समझ में नहीं आ रहा, फोन पर फोन बधाई के लिए आ रहे हैं। ऐसे में क्या बोलूं और कैसे बोलूं। बस ईश्वर से प्रार्थना कर मां व डॉ. निर्मल वर्मा पर कविताएं लिखी हैं जो कि मेरे जीवन की महत्वपूर्ण दो घटनाएं हैं। मेरी कृति "मैं जब तक आई बाहर" वर्ष 2017 में प्रकाशित हुई थी। इसमें चार खंड हैं और हर खंड में सात कविताएं हैं। प्रस्तुत है उनसे बातचीत के प्रमुख अंश...
सवाल: अपनी साहित्यिक यात्रा के बारे में कुछ बताइए, मैं जब तक आई बाहर तक का सफर कैसे तय किया?
जवाब- अपने जीवन की दो घटनाओं जिसमें डॉ. निर्मल वर्मा व मां डॉ. महेंद्र कौर गिल को लेकर ईश्वर से इस कृति में प्रार्थना की है। यह चार खंडों में है। हर खंड में सात कविताएं लिखी हैं। मां जो कि दिल्ली में प्रधानाचार्य व पंजाबी की सुप्रसिद्ध लेखिका रही हैं। ऐसे में साहित्य का बोध हुआ और उस तरफ खुद को 20 वर्ष की उम्र में ही ढाल लिया। उसका परिणाम यह हुआ कि साल 1983 में उनकी कविताओं की सीरीज और दूसरा कविता संग्रह 'एक दिन लौटेगी लड़की' नाम से वर्ष 1989 में प्रकाशित हुआ।
सवाल: नए लेखक खासकर महिलाएं इंटरनेट मीडिया में लिख रहे हैं। सामाजिक और अपने ऊपर हो रहे उत्पीड़न को लेकर लिख रही हैं, आप किस तरह इस परिवर्तन को देखती हैं ?
जवाब- परिवर्तन है, लेकिन उनको चाहिए कि जीवन को अपने ऊपर घटने दें, घबराएं नहीं। जो अनुभव उन्होंने अपने जीवन में लिए हैं, उनको अपनी भाषा में कैसे लाया जाए, इसकी प्रतीक्षा जरूर करें। किसी जल्दबाजी की जरूरत नहीं है। निश्चित तौर पर महिलाएं सभी वर्जनाओं को तोड़कर लिखने का प्रयास कर रही हैं , सफल भी हैं। यह अच्छा परिवर्तन है।
सवाल:वर्तमान में जो समाज, देश के अंदर माहौल चल रहा है उसको आप किस तरह से देखती हैं?
जवाब - देश व समाज के अंदर निश्चित तौर पर विद्वेष की भावना है। इसको लेकर जो मन में विक्षोभ था और है। इसके लिए एक कविता के माध्यम से लिखा है कि 'एक गऊ मेरे भीतर है, जिसे कटने का डर है'। यह कविता बहुत कुछ कहती है, जिसे मैं विस्तार से या इसका किसी रूप में वर्णन नहीं कर सकती हूं। कहा कि यह सांप्रदायिक विद्वेष है।
सवाल: इन दिनों क्या नया लिख रही हैं और पाठकों को कब तक पढ़ने को मिलने वाला है?
जवाब - थोड़ा रुकते हुए बोलीं कि मैं कुछ कहने की स्थिति में नहीं हूं, अब कुछ संयत हो सकी हूं। फिर भी बताए देती हूं कि इन दिनों मैं गद्य की दो किताबों को लिखने का काम कर रही हूं। इसके साथ ही पांच कविता संग्रह और चार गद्य संग्रह भी हैं। यात्रा वृतांत जो वर्ष 2008 में प्रकाशित हुआ था अवाक नाम से जो कैलाश मानसरोवर की यात्रा पर आधारित था। इसको बीबीसी ने सर्वश्रेष्ठ यात्रा वृतांत के तौर पर चुना है।
सवाल: यह गद्य साहित्य किस तरह के हैं, क्या नए वर्ष में पाठकों तक पहुंच जाएंगे?
जवाब- जिन गद्य पुस्तकों को लिखने का काम मैं कर रही हूं। इनमें साहित्यिक निबंध और व्यक्तिपरक निबंध शामिल हैं। पूरी कोशिश रहेगी कि नए वर्ष में यह काम पूर्ण कर सकूं। कोशिश है और लगातार जारी रहेगी।
सवाल: साहित्य अकादमी का पुरस्कार मिलने की जानकारी कैसे हुई, कई बड़े नाम आपने पीछे छोड़ दिए क्या कहेंगी।
जवाब - अब बस और कुछ न पूछिए, मैं जवाब न दे पाऊंगी। मुझे तो आज दोपहर पौने दो बजे साहित्य अकादमी के सचिव डॉ. केएस राव ने फोन कर जानकारी दी कि आपको इस वर्ष का साहित्य अकादमी पुरस्कार दिया जा रहा है। इसके बाद तो मैं कुछ समझ नहीं पा रही। बड़े नामों को जानकर क्या करेंगे कि किनको पीछे छोड़ा, कुछ नाम तो हैं ही जिनको पीछे छोड़ा होगा।

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