नई दिल्ली, विवेक तिवारी। वजन घटाने के लिए या डायबिटीज के चलते अगर आप किसी आर्टिफिशियल स्वीटनर का इस्तेमाल कर रहे हैं तो सावधान हो जाइये। हाल के एक अध्ययन में वैज्ञानिकों ने पाया कि आर्टिफिशियल स्वीटनर दिल की लय-ताल बिगाड़ सकते हैं। इनका रोजाना इस्तेमाल करने पर दिल का दौरा पड़ने का खतरा बढ़ जाता है। अध्ययन में पाया गया कि सप्ताह में दो लीटर तक लो कैलोरी ड्रिंक के नाम पर पेय पदार्थ पीने वाले युवाओं में दिल की धड़कन अनियमित होने का खतरा 20 फीसदी बढ़ गया। WHO ने भी हाल की एक रिपोर्ट में आर्टिफिशियल स्वीटनर के इस्तेमाल से बचने की सलाह दी है। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म लोकल सर्कल्स के एक सर्वे के मुताबिक देश के शहरों में रहने वाले लगभग 38 फीसदी लोग आर्टिफिशियल स्वीटनर का इस्तेमाल करते हैं। ये सोडा, शुगर फ्री गम्स सहित कई अन्य उत्पादों में डाला जाता है।

अमेरिकन हार्ट जर्नल में छपे इस अध्ययन के मुताबिक जो लोग सप्ताह में कम से कम एक लीटर फलों या सब्जियों का बिना किसी मिलावट का जूस पीते हैं उनमें दिल की धड़कन की अनियमितता का खतरा 8 फीसदी तक कम हो जाता है। शोध की मुख्य लेखिका शंघाई नाइंथ पीपल हॉस्पिटल की डॉक्टर निनजन वैंग के मुताबिक ये अध्ययन यूके के लगभग 2 लाख युवाओं पर किया गया। डेटा विश्लेषण से पता चला कि जो युवा हर सप्ताह लगभग दो लीटर तक लो कैलोरी ड्रिंक पीते हैं जिसमें सुक्रालोज़, एस्पार्टेम, सैकरीन या एसेसल्फेम जैसे मिठास वाले कैमिकल होते हैं, उनमें दिल की धड़कन अनियमित होने का खतरा 20 फीसदी तक बढ़ जाता है। डॉक्टर निनजन वैंग के मुताबिक बहुत से लोग वजन घटाने या स्वास्थ्य के प्रति जागरूक होने के चलते लो शुगर या लो कैलोरी वाले प्रोडक्ट खाते हैं। ये बेहद खतरनाक हैं। शोधकर्ताओं ने यूके के लगभग 201,856 लोगों के हेल्थ डेटा का अध्ययन करने पर पाया कि इनमें से 9,362 लोगों को दिल की धड़कन अनियमित होने की शिकायत थी। अध्ययनकर्ताओं ने पाया कि ऐसे लोग जो ज्यादा धूम्रपान करते हैं और सप्ताह में दो लीटर तक ज्यादा शुगर वाली या लो कैलोरी वाले पेय पदार्थ पीते हैं उनमें दिल की धड़कन के अनियमित होने का खतरा कभी धूम्रपान नहीं करने वालों की तुलना में 31 फीसदी तक बढ़ जाता है।

मिठास वाले केमिकल बिगाड़ते हैं दिल की लय-ताल

आर्टिफिशियल स्वीटनर कई तरह के केमिकल कंपाउंड से बनाए जाते हैं। एम्स कार्डियोलॉजी के निदेशक रह चुके और वर्तमान में Nims University के कुलपति डॉक्टर संदीप मिश्रा कहते हैं कि आर्टिफिशियल स्वीटनर के तौर पर इस्तेमाल किए जाने वाले केमिकल कंपाउंड दिल के इलेक्ट्रिकल कंडक्शन को बिगाड़ते हैं। इससे दिल की लय ताल बिगड़ जाती है। दिल की अपनी एक इलेक्ट्रोफिजियोलॉजी है। दिल की धड़कन को इलेक्ट्रिसिटी के प्रवाह के तौर पर चार हिस्सों में जांचा जाता है। इसे पी, क्यू, आर और एस इंटरवल के तौर पर बांटा गया है। कई मामलों में देखा गया है कि आर्टिफिशियल स्वीटनर दिल में पी और आर इंटरवल में इलेक्ट्रिसिटी के फ्लो को स्लो कर देते हैं। इससे दिल की रिदम प्रभावित होती है। गौरतलब है कि अगर दिल में खून के आने वाले हिस्से में कंडक्शन स्लो होता है तो दिल की रिदम बिगड़ती है लेकिन अगर खून पम्प करने वाले हिस्से में दिक्कत बढ़ती है तो ऐसे मरीज को बचा पाना बेहद मुश्किल होता है।

शरीर पर कई तरह से असर डालता है

आर्टिफिशियल स्वीटनर शरीर को कई तरह से नुकसान पहुंचाते हैं। ऑर्गनाइज्ड मेडिसिन अकेडेमिक गिल्ड के सेक्रेटरी जनरल डॉ ईश्वर गिलाडा कहते हैं कि कई अध्ययनों में सामने आया है कि आर्टिफिशियल स्वीटनर कार्सिनोजेनिक होते हैं। ये शरीर में दिल, लीवर सहित कई हिस्सों को प्रभावित करते हैं। आर्टिफिशियल स्वीटनर के केमिकल को पेट में मौजूद बैक्टीरिया तोड़ने की कोशिश करते हैं। इससे शरीर के लिए जरूरी इन बैक्टीरिया को तो नुकसान होता ही है साथ ही ये केमिकल कैंसर के खतरे को बढ़ाता है। इन आर्टिफिशियल स्वीटनर की तुलना में फलों से बनने वाले स्वीटनर हमारे शरीर के लिए बेहतर हैं। कई आर्टिफिशियल स्वीटनर को अमेरिका में उनके नेशनल टॉक्सिलॉजी प्रोग्राम के तहत प्रतिबंधित किया गया है। इसमें सैकरीन भी है। इसे बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया जाता है।

डब्लूएचओ ने किया अलर्ट

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने हाल ही में आर्टिफिशियल स्वीटनर को लेकर नया दिशानिर्देश जारी किया है। इनके तहत शरीर के वजन को नियंत्रित करने के लिए आर्टिफिशियल स्वीटनर का इस्तेमाल न करने की सलाह दी है। इनका इस्तेमाल वयस्कों या बच्चों के शरीर में फैट कम करने में किसी भी तरह से मदद नहीं करता है। डब्लूएचओ की ओर से की गई समीक्षा के नतीजे यह भी बताते हैं कि आर्टिफिशियल स्वीटनर के दीर्घकालिक उपयोग से टाइप 2 मधुमेह, हृदय रोग और वयस्कों में मृत्यु दर का खतरा बढ़ जाता है। जिन आर्टिफिशियल स्वीटनर को इस्तेमाल न करने की सलाह दी गई है उनमें एसेसल्फेम, एस्पार्टेम, एडवांटेम, साइक्लामेट्स, नियोटेम, सैकरिन, सुक्रालोज़, स्टीविया और स्टीविया डेरिवेटिव शामिल हैं।

कैलोरी नियंत्रित करने के लिए न करें इस्तेमाल

भारत में खाद्य उत्पादों के नियामक फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड अथॉरिटी ऑफ इंडिया (FSSAI) ने नॉन कैलोरिक स्वीटनर को लेकर गाइडलाइन बनाई है। इसके तहत स्टीविया, एसेसल्फेम पोटेशियम, एस्पार्टेम, सोडियम और कैल्शियम सैकरीन, सुक्रालोज और सोर्बिटोल को विभिन्न खाद्य उत्पादों में इस्तेमाल किए जाने की सीमा तय की गई है। FSSAI की ओर से साफ तौर पर कहा गया है कि वजन घटाने या मधुमेह के मरीजों के इस्तेमाल के लिए FSSAI किसी भी तरह के आर्टिफिशियल स्वीटनर की सिफारिश नहीं करता है।

डीएनए को नुकसान पहुंचा सकते हैं

अमेरिकी वैज्ञानिकों का दावा है कि आर्टिफिशियल स्वीटनर के तौर पर इस्तेमाल किया जाने वाले 'सुक्रालोज' में पाया जाने वाला केमिकल किसी व्यक्ति के डीएनए को नुकसान पहुंचा सकते है। इसके इस्तेमाल से कैंसर का खतरा भी बढ़ जाता है। नॉर्थ कैरोलिना स्टेट यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने अपने अध्ययन में पाया कि 'सुक्रालोज' में पाया जाने वाला एक केमिकल, सुक्रालोज-6-एसीटेट, "जीनोटॉक्सिक" होता है, जो डीएनए या कोशिकाओं में मौजूद अनुवांशिक जानकारी को नुकसान पहुंचा सकता है। ये रिसर्च जर्नल ऑफ टॉक्सिकोलॉजी एंड एनवायर्नमेंटल हेल्थ में प्रकाशित हुई है। डीएनए में मौजूद यह जानकारी हमारे स्वास्थ्य के लिए बेहद जरूरी होती है। जो इस बात को नियंत्रित करती है कि हमारा शरीर कैसे बढ़ता है, और उसे कैसे स्वस्थ रखा जा सकता है। वहीं दूसरी तरफ फ्रेंच नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर हेल्थ की एक रिसर्च से पता चला है कि आर्टिफिशियल स्वीटनर का इस्तेमाल करने से कैंसर का खतरा बढ़ सकता है।

चीनी से कई गुना मीठे होते हैं आर्टिफिशियल स्वीटनर

अमेरिका के जॉन्स हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ मेडिसिन के मुताबिक आर्टिफिशियल स्वीटनर जिन्हें गैर-पोषक मिठास भी कहा जाता है और जिन्हें रसायनों से या कुछ जड़ी-बूटियों जैसे प्राकृतिक पदार्थों से बनाया जाता है वे सामान्य चीनी की तुलना में 200 से 700 गुना अधिक मीठे हो सकते हैं। इन मिठास में कैलोरी या चीनी नहीं होती है, लेकिन इनमें विटामिन, फाइबर, खनिज या एंटीऑक्सीडेंट जैसे लाभकारी पोषक तत्व भी नहीं होते हैं।