नई दिल्ली, विवेक तिवारी। केंद्रीय भूजल आयोग (सीजीडब्ल्यूबी) की हाल की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि दिल्ली हर साल औसतन 0.2 मीटर भूजल खो रही है। इस लिहाज से हर दिन दिल्ली की जमीन के नीचे का पानी 0.05 सेंटीमीटर नीचे जा रहा है। रिपोर्ट बताती है कि यहां के करीब 80 फीसदी स्रोत क्रिटिकल या सेमी क्रिटिकल स्थिति में आ चुके हैं। वहीं वैज्ञानिकों ने एक अध्ययन में पाया है कि दिल्ली-एनसीआर में बढ़ती कंक्रीट की सतह के चलते बारिश का ज्यादातर पानी बह जाता है, जिससे जमीन में पानी रिचार्ज नहीं हो पाता है। TERI (The Energy and Resources Institute) के एक अध्ययन के मुताबिक दिल्ली में 2031 तक बारिश का 70 फीसदी से ज्यादा ज्यादा पानी बह कर नालों के जरिए नदियों में चला जाएगा।

ये अध्ययन यमुना रिवर बेसिन के तहत दिल्ली को चार हिस्सों अलीपुर, नजफगढ़, मेहरौली और ट्रांस यमुना में बांटकर किया गया है। अलीपुर के तहत 519.11 वर्ग किलोमीटर, नजफगढ़ के तहत 482.69 वर्ग किलोमीटर, मेहरौली के 373.12 वर्ग किलोमीटर और ट्रांस यमुना के 127.39 वर्ग किलोमीटर एरिया को शामिल किया गया है। इस अध्ययन के लिए कैलिब्रेटेड मॉडल का इस्तेमाल किया गया है। यह अध्ययन मुख्य रूप से बढ़ती कंक्रीट की सतह और ग्राउंड वाटर रिचार्ज पर है।

अध्ययन में शामिल टेरी के वैज्ञानिक चंदर कुमार सिंह कहते हैं कि तेजी से बढ़ते शहरीकरण और कंक्रीट की बढ़ती सतह का असर सीधे तौर पर ग्राउंड वाटर रिचार्ज पर पड़ा है। अध्ययन में पाया गया कि 2005 से 2016 के बीच सबसे ज्यादा शहरीकरण ट्रांस यमुना में हुआ है। इसके चलते हर साल 65.69 फीसदी बारिश का पानी जमीन में जाने की बजाय नालों के जरिए नदी में बह जाता है। इसी तरह महरौली इलाके में लगभग 49.39 फीसदी बारिश का पानी नालों में बह जाता है।

ग्राउंड वाटर रिचार्ज न होने से आने वाले समय में दिल्ली को पानी के गंभीर संकट से जूझना पड़ सकता है। अध्ययन के मुताबिक 2016 से 2031 के दौरान ट्रांस-यमुना इलाके में कंक्रीट की बढ़ती सतह के चलते भूगर्भ जल के स्तर में और गिरावट आएगी। इस इलाके में वर्तमान स्थिति की तुलना में 36.25 फीसदी ज्यादा बारिश का पानी नालों में जाने का अनुमान है। इसी तरह अलीपुर इलाके में 19.41 फीसदी और नजफगढ़ इलाके में 7.93 फीसदी तक ज्यादा बारिश का पानी नालों में बह जाएगा।

भूजल घटने से जमीन धंसने का खतरा

जिस तरह दिल्ली और आसपास के इलाकों में भूजल निकाला जा रहा है उससे 100 किलोमीटर के दायरे में जमीन धंसने का खतरा बढ़ गया है। अनुसंधानकर्ताओं ने सैटेलाइट डेटा से पता लगाया कि राष्ट्रीय राजधानी के करीब 100 वर्ग किलोमीटर इलाके में जमीन धंसने का खतरा ज्यादा है। इनमें 12.5 वर्ग किलोमीटर का इलाका कापसहेड़ा में है, जो आईजीआई एयरपोर्ट से महज 800 मीटर के फासले पर है।

आईआईटी बॉम्बे, जर्मन रिसर्च सेंटर ऑफ जियोसाइंसेस और अमेरिका की कैंब्रिज और साउदर्न मेथडिस्ट यूनिवर्सिटी के संयुक्त अध्ययन में पाया गया कि एयरपोर्ट के आसपास जिस तेजी से जमीन धंसने का दायरा बढ़ रहा है, उससे लगता है कि जल्द ही एयरपोर्ट भी इसकी जद में आ जाएगा। वर्ष 2014-2016 के दौरान धंसने की दर लगभग 11 सेमी प्रति वर्ष थी जो अगले दो वर्षों में लगभग 50 फीसद बढ़कर लगभग 17 सेमी प्रति वर्ष हो गई। 2018-2019 के दौरान यह दर तकरीबन समान रही। वैज्ञानिकों ने इस अध्ययन के लिए उपग्रह सेंटिनल से प्राप्त आंकड़ों की मदद ली थी। इसमें फेज-1 में 2014 से 2016, फेज-2 में 2016 से 2018 और फेज-3 में 2018 से 2019 के बीच का विश्लेषण किया गया था।

बढ़ती कंक्रीट की सतह से बाढ़ का खतरा बढ़ा

वीरमाता जीजाबाई टेक्नोलॉजिकल इंस्टीट्यूट (वीजेटीआई), माटुंगा ने अपने एक अध्ययन में पाया कि कंक्रीट की सतह में 70% से ज्यादा की बढ़ोतरी के चलते मुंबई में मानसून के दौरान बाढ़ की स्थिति बदतर हो जाती है, इससे बारिश के पानी को अवशोषित करने की मिट्टी की क्षमता कम हो गई है। शोधकर्ताओं ने कहा कि पिछले 45 वर्षों में, कंक्रीटीकरण और बाढ़ अवशोषक के रूप में काम करने वाली वेटलैंड को भरने से नालों में जाने वाले बारिश के पानी में 40% की वृद्धि हुई है। पानी के इस बढ़े हुए प्रवाह की तुलना में नालों को चौड़ा और गहरा नहीं किया गया है। जिससे शहर में बाढ़ का खतरा बढ़ा है।

पेड़ों के किनारे बढ़ता कंक्रीट खतरा

एनजीटी ने 23 अप्रैल 2013 को अपने आदेश में सभी सार्वजनिक प्राधिकरणों को यह सुनिश्चित करने को कहा कि दिल्ली में किसी भी पेड़ के एक मीटर के दायरे में कोई कंक्रीट या सख्त सतह नहीं बनाई जानी चाहिए। आदेश में सार्वजनिक निकायों को सभी पेड़ों की देखभाल करने और भविष्य में उचित सावधानी बरतने का आदेश दिया गया है। दिल्ली यमुना बायोडायवर्सिटी पार्क के प्रभारी और पर्यावरणविद फैयाज खुदसर कहते हैं कि पेड़ों के आसपास कंक्रीट की सतह बनाना पेड़ों के लिए बेहद घातक है। बारिश के मौसम में जमीन के अंदर मौजूद पेड़ों की जड़ें पानी में भीगी रहती हैं। ऐसे में पेड़ों को पोषण ऊपरी जड़ों से मिलता है। लेकिन कंक्रीट की सतह से ढंक जाने पर पेड़ों की जड़ें धीरे धीरे सूख जाती हैं और पेड़ कमजोर हो जाते हैं। ऐसे में तेज हवा या ज्यादा बारिश में पेड़ उखड़ जाता है। हमें इस बात का ध्यान रखना होगा कि विकास कितना और किस कीमत पर करना है। ये पेड़ पौधे हमें सिर्फ साफ हवा ही नहीं देते बल्कि जमीन को बांध कर रखने और पानी के स्तर को बनाए रखने में भी मदद करते हैं।

क्या है समाधान

टेरी के अध्ययन में साफ कहा गया है कि दिल्ली में बढ़ती शहरी आबादी के चलते हरित क्षेत्र में कमी आई है। शहरों में हो रहे तेज विकास के चलते कंक्रीट सतह में बढ़ोतरी हुई है। इसमें कमी किए जाने की आवश्यकता है। शहर में ज्यादा पेड़ पौधे लगाए जाने और कंक्रीट की सतह कम किए जाने से भूजल स्तर में बढ़ोतरी होगी। रिपोर्ट में गंगा बेसिन के लिए भी यही सुझाव दिए गए हैं। जहां जमीन खाली पड़ी है वहां घास या छोटे पौधे लगाए जा सकते हैं।