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    'आप जाइए हम आपकी सुरक्षा नहीं कर पाएंगे', बांग्‍लादेशी सेना ने हसीना से कहा था; भारत को सबक लेने की जरूरत

    Updated: Tue, 13 Aug 2024 07:16 PM (IST)

    बांग्लादेश में आरक्षण के खिलाफ शुरू हुआ आंदोलन हिंसा में बदल गया। इस तरह से भीड़ सड़क पर उतर कर अपनी मांगे मनवाने में सफल हो रही है और यहां वोट की ताकत गौण हो गई है।सैकड़ों लोग मारे गए और हजारों घायल हुए। कानून व्यवस्था खत्म हो चुकी है। बांग्लादेश की सेना ने शेख हसीना से कह दिया था कि ...

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    Bangladesh Violence Update: बांग्‍लादेश में आंदोलन करते प्रदर्शनकारी।

     डिजिटल डेस्‍क, नई दिल्‍ली।बांग्लादेश में पिछले दिनों जो हालात बने हैं, वह बहुत चिंताजनक हैं। खास कर जनवरी में जो सरकार चुनाव जीत कर आई, तभी से तरह तरह के विरोध प्रदर्शन हो रहे थे। कोशिश की जा रही थी कि सड़क पर उतर कर प्रदर्शन करते हुए चुनी हुई सरकार को हटा दिया जाए और पिछले हफ्ते प्रदर्शनकारी ऐसा करने में सफल हो गए।

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    ऐसा लगता है कि भीड़ का सड़क पर उतर कर प्रदर्शन करना और उनकी मांगे ज्यादा महत्वपूर्ण हो गई हैं। इसमें सोशल मीडिया और साइबर माध्यमों की भी अहम भूमिका है। इस तरह से भीड़ सड़क पर उतर कर अपनी मांगे मनवाने में सफल हो रही है और यहां वोट की ताकत गौण हो गई है।

    अगर भीड़ को राजधानी या जहां सरकारी प्रतिष्ठान है, वहां आने दिया जाए तो वे सारे रास्ते बंद कर सकते हैं। बांग्लादेश में भी यही हुआ। वहां की प्रधानमंत्री को लग रहा था कि भीड़ पर काबू पाया जा सकता है, लेकिन बाद में बांग्लादेश की सेना और पुलिस के भी हाथ-पांव फूल गए। कई पुलिस स्टेशन जला दिए गए। सेना ने प्रधानमंत्री से कहा कि आप जाइये, हम आपकी सुरक्षा नहीं कर पाएंगे।

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    लोकतांत्रिक देशों के लिए सबक

    यह हर लोकतांत्रिक देश के लिए एक सबक है कि लोकतंत्र के साथ वहां की सरकारों को इस बात का इस बात का ध्यान रखना होगा कि ऐसे हालात पैदा न हों कि भीड़ सड़क पर उतर आए। लोगों को ऐसा नहीं लगना चाहिए कि उनके पास सड़क पर उतरने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा है। लोग मरने-मारने पर न उतर आएं।

    बांग्लादेश में जब 1971 की लड़ाई हुई तो पाकिस्तान और पूर्वी पाकिस्तान के बीच लड़ाई हुई। उस समय जो बुद्धिजीवी थे, उनमें अधिकांश को प्रताड़ित किया गया था। कईयों को मार दिया गया था। त

    ब पाकिस्तान की मदद अमेरिका कर रहा था, क्योंकि वह उस समय चीन से अपने रिश्ते सुधारने में लगा हुआ था। वह चीन को रूस के खेमे से निकालना चाहता था। उनकी मदद पाकिस्तान कर रहा था।

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    पाकिस्तान ने इस स्थिति का भरपूर फायदा उठाया, लेकिन अभी तो मामला पूरी तरह से बदल गया है। इस बार भीड़ ने सड़क पर उतरकर एक सरकार को हटा दिया।

    ट्यूनीशिया , मिस्र में ऐसा हो चुका है और कुछ वर्ष पहले श्रीलंका में भी ऐसा हुआ था, जब अराजक भीड़ ने सत्ता में बैठे लोगों को देश छोड़कर भागने के लिए मजबूर कर दिया।

    भारत के पड़ोसियों पर चीन का प्रभाव

    इस तरह भारत के पड़ोसी देशों श्रीलंका, पाकिस्तान, नेपाल, मालदीव में हालात अस्थिर हैं और इन देशों में चीन का प्रभाव भी पड़ रहा है। चीन इन देशों में राजनीतिक दलों को पैसा देता है और इन दलों का इस्तेमाल अपने हित पूरे करने के लिए करता है।

    भारत भी अपने स्तर पर प्रयास कर रहा है कि इन देशों में लोकतंत्र फले फूले, लेकिन हमारे पास इतने संसाधन नहीं हैं कि हम चीन की तरह इन देशों में पैसा खर्च कर सकें। ऐसे में पड़ोसी देशों में हमारे रणनीतिक हित दांव पर लगे हैं।

    इससे निपटने के लिए सरकार के सभी मंत्रालयों को एकजुट होकर प्लानिंग कर काम करना होगा। अभी हर मंत्रालय और विभाग अलग-अलग अपने स्तर पर काम कर रहा है। विदेश मंत्रालय नोट बनाकर भेज देता है। उसे लगता है कि उसने अपना काम कर दिया।

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    (सोर्स: शशांक, पूर्व विदेश सचिव से बातचीत)