Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    उत्तर छत्तीसगढ़ में फिर से पैर पसार रहा नक्सलवाद, मतदान के न्यूनतम आंकड़ों ने पैदा की चिंता

    By Bhupendra SinghEdited By:
    Updated: Thu, 25 Apr 2019 07:13 AM (IST)

    वोटिंग के यह आंकड़े यह बात बयां कर रहे हैं कि उत्तर छत्तीसगढ़ में झारखंड की सीमा पर स्थित बूढ़ा पहाड़ एक बार फिर नक्सलियों का सुरक्षित ठिकाना बन रहा है। ...और पढ़ें

    Hero Image
    उत्तर छत्तीसगढ़ में फिर से पैर पसार रहा नक्सलवाद, मतदान के न्यूनतम आंकड़ों ने पैदा की चिंता

    रायपुर, स्टेट ब्यूरो। छत्तीसगढ़ में लोकसभा चुनाव के तरह तीनों चरणों का मतदान संपन्न् हो चुका है। 23 अप्रैल को 7 लोकसभा सीटों के लिए मतदान हुआ। इनमें से सरगुजा लोकसभा सीट पर सर्वाधिक वोट पड़े और छत्तीसगढ़ में मतदान की दर ने राष्ट्रीय आंकड़े से आगे बढ़कर रिकॉर्ड बनाया। एक तरफ राज्य में मतदान की दर में इजाफा हुआ, तो वहीं दूसरी तरफ सरगुजा लोकसभा सीट के ही दो ऐसे पोलिंग बूथ रहे जहां मतदान का आंकड़ा महज 15 फीसद पर ही सिमट कर रह गया।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    सामरी विधानसभा क्षेत्र के चुनचुना और पुनदाग इन दो पोलिंग बूथों को नक्सल संवेदनशील क्षेत्र के बूथ में शामिल किया गया था और तमाम कोशिशों के बावजूद यहां नक्सल भय की वजह से अपेक्षित मतदान नहीं हो पाया। दरअसल मतदान के दौरान ही नक्सलियों ने पोलिंग स्टेशन से कुछ दूरी पर आइईडी ब्लास्ट किया, जिसके बाद ग्रामीण सहम गए और मतदान के लिए पहुंचे ही नहीं।

    छत्तीसगढ़ में नक्सल उन्मूलन अभियान के द्वारा उत्तर छत्तीसगढ़ को नक्सल मुक्त होने की घोषणा की गई थी और पुलिस प्रशासन का फोकस यहां से हटकर बस्तर की ओर हो गया था, लेकिन चुनाव के दौरान यहां हुई हिंसा और मतदान की दर में इतनी बड़ी गिरावट ने एक बार फिर यहां नक्सलवाद के पैर पसारने की आशंका पैदा कर दी है।

    चुनचुना और पुनदाग गांव झारखंड की सीमा पर स्थित हैं और यहीं पर बूढ़ा पहाड़ है जो दोनों राज्यों की सीमा बनाता है। इसी के मुहाने से होकर कन्हर नदी बहती है। इस पहाड़ी इलाके में एक समय गोलियों की आवाज गूंजती रहती थी।

    साल 2006 में बड़ा ऑपरेशन चलाकर यहां कई बड़े नक्सली नेताओं को पुलिस ने ठिकाने लगाया था। इनमें भीम कोड़ाकू नामका नक्सल कमांडर भी शामिल था। इसके साथ ही नेपाली नामके दुर्दांत नक्सली को यहां से गिरफ्तार किया गया था। पुलिस की इस बड़ी कार्रवाई ने यहां नक्सलवाद की कमर तोड़ दी थी, लेकिन अब करीब 13 साल बाद एक बार फिर नक्सली यहां अपना ठिकाना बना रहे हैं।

    एनआईए की एक रिपोर्ट में बताया गया था कि माओवादियों का प्रवक्ता और करीब ढ़ाई करोड़ का ईनामी मोस्ट वांटेड राहुल तिवारी इसी बूढ़ा पहाड़ में शहर लेकर नक्सल नेटवर्क को मजबूत करने का काम कर रहा है। पिछले छ: वर्षों से यह बताया जा रहा है कि राहुल तिवारी की सांप के काटने से मौत हो चुकी है, लेकिन राहुल का शव पुलिस को आज तक नहीं मिला। स्थानीय थाने में उसकी मौत को लेकर संशय कायम है, लेकिन अक्सर यह भी खबर आती है कि राहुल की मौत नहीं हुई है और वह इस इलाके में भूमिगत होकर नक्सल नेटवर्क को मजबूत कर रहा है।

    अब यहां एक बार फिर से कई स्मॉल एक्शन टीमें सक्रिय हो रही हैं। बूढ़ा पहाड़ एक दुर्गम और घने जंगलों से घिरा हुआ इलाका है। यहां जिन दो गांवों की बात हो रही है, उनमें मतदान कराना प्रशासन के लिए बहुत बड़ी चुनौती थी।

    छत्तीसगढ़ की भौगोलिक सीमा में आने वाले इन दोनों गांवों का छत्तीसगढ़ से ही सड़क संपर्क नहीं है। पहाड़ों से होकर पगडंडी के रास्ते यहां के ग्रामीण बलरामपुर जिला मुख्यालय तक पहुंचते हैं। जिला मुख्यालय तक पहुंचने के लिए ग्रामीणों को झारखंड होकर आना पड़ता है। इस बार प्रशासन ने नक्सल गतिविधियों को देखते हुए गांव से करीब 13 किलोमीटर दूर बंदरचुंआ में स्थित सीआरपीएफ कैंप में पोलिंग बूथ बनाया था।

    प्रशासन ने सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए थे और सुबह से मतदान कराने के लिए जुटे हुए थे। दोपहर तक कई ग्रामीण पैदल चलकर मतदान केंद्रों तक पहुंचे और वोट डाला। इसी बीच गांव के रास्ते में नक्सलियों ने आइईडी इन्प्लांट कर दिया। आइईडी विष्फोट के बाद अचानक यहां दहशत का माहौल बन गया और फिर ग्रामीणों ने मतदान केंद्र तक पहुंचना ही बंद कर दिया। इन दो पोलिंग बूथों पर महज 15 फीसद वोटिंग ही हो पाई।

    वोटिंग के यह आंकड़े यह बात बयां कर रहे हैं कि उत्तर छत्तीसगढ़ में झारखंड की सीमा पर स्थित बूढ़ा पहाड़ एक बार फिर नक्सलियों का सुरक्षित ठिकाना बन रहा है और यहां इस तथ्य के आधार पर नक्सल विरोधी अभियान को मजबूती से चलाने की जरूरत है। हालांकि यहां पिछले एक वर्ष से सीआरपीएफ का कैंप स्थापित है और तीन वर्षों से बूढ़ा पहाड़ को खोदकर सड़क बनाने का काम चल रहा है, लेकिन तमाम प्रयासों के बावजूद नक्सल गतिविधियां भी बढ़ रही हैं।