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    Money laundering case: नवाब मलिक को SC से मिली बड़ी राहत, मनी लांड्रिंग केस में अंतरिम जमानत तीन महीने बढ़ी

    By AgencyEdited By: Babli Kumari
    Updated: Thu, 12 Oct 2023 11:26 AM (IST)

    Money laundering case सुप्रीम कोर्ट ने स्वास्थ्य आधार पर महाराष्ट्र के पूर्व मंत्री और एनसीपी नेता नवाब मलिक की अंतरिम जमानत तीन महीने के लिए बढ़ा दी है। न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी और न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता की पीठ ने कहा कि मलिक किडनी की बीमारी से पीड़ित हैं और 11 अगस्त को दो महीने के लिए अंतरिम जमानत मिलने के बाद से उनकी स्थिति में सुधार नहीं हुआ है।

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    उच्चतम न्यायालय ने NCP नेता नवाब मलिक की अंतरिम जमानत तीन महीने बढ़ाई (फाइल फोटो)

    पीटीआई,नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) ने धन शोधन मामले में महाराष्ट्र के पूर्व मंत्री नवाब मलिक की अंतरिम जमानत गुरुवार को तीन महीने के लिए बढ़ा दी। मलिक ने प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा जांच किए जा रहे मामले में चिकित्सा आधार पर जमानत देने से इनकार करने के बंबई उच्च न्यायालय के 13 जुलाई के आदेश के खिलाफ शीर्ष अदालत का रुख किया था।

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    न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी और न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता की पीठ ने कहा कि मलिक किडनी की बीमारी से पीड़ित हैं और 11 अगस्त को दो महीने के लिए अंतरिम जमानत मिलने के बाद से उनकी स्थिति में सुधार नहीं हुआ है।

    वहीं, अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू ने नवाब मलिक की अंतरिम जमानत बढ़ाने का विरोध नहीं किया।

    दाऊद इब्राहिम से जुड़े मामले में पुलिस ने किया था गिरफ्तार 

    मालूम हो कि ईडी ने कथित तौर पर भगोड़े गैंगस्टर दाऊद इब्राहिम और उसके सहयोगियों की गतिविधियों से जुड़े मामले में मलिक को फरवरी 2022 में गिरफ्तार किया था।

    नवाब मलिक ने उच्च न्यायालय से राहत की मांग करते हुए दावा किया था कि वह कई अन्य बीमारियों के अलावा क्रोनिक किडनी रोग से पीड़ित है। उन्होंने योग्यता के आधार पर जमानत की भी मांग की। वहीं, उच्च न्यायालय ने कहा था कि वह दो सप्ताह के बाद योग्यता के आधार पर जमानत की मांग करने वाली उनकी याचिका पर सुनवाई करेगा।

    मलिक के खिलाफ ईडी का मामला राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) द्वारा एक नामित ग्लोबल टेररिस्ट और 1993 के मुंबई सिलसिलेवार बम विस्फोटों के मुख्य आरोपी दाऊद इब्राहिम और उसके सहयोगियों के खिलाफ गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम के तहत दर्ज की गई एफआईआर पर आधारित है। 

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