Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    राष्‍ट्रीय विज्ञान दिवस के अवसर पर मिले ऐसे जिज्ञासु किशोरों से, जो इनोवेशन में दिखा रहे दम...

    By Sanjay PokhriyalEdited By:
    Updated: Sun, 27 Feb 2022 09:06 AM (IST)

    मेरा मानना है कि बच्चों को अगर सोचने की स्वतंत्रता दी जाए तो वे कमाल कर सकते हैं चाहे वह कोई भी क्षेत्र क्यों न हो। बच्चों-किशोरों-युवाओं ने कोविड-19 ...और पढ़ें

    Hero Image
    अपने जिज्ञासु माइंड के लिए जुइ केसकर को कई राष्‍ट्रीय और अंतरराष्‍ट्रीय पुरस्‍कार भी मिले हैं।

    महान वैज्ञानिक आइंस्‍टाइन कहते थे कि सबसे जरूरी बात है हमारे मन में किसी चीज को लेकर सवाल उठना यानी जिज्ञासा का होना। यदि आप जिज्ञासु हैं तो दैनिक जीवन में कुछ न कुछ उपयोगी जरूर खोज लाएंगे। हो सकता है कि उस दिशा में मेहनत करें तो कुछ बड़ी चीजों की खोज हो जाए, जिससे आपका ही नहीं औरों को भी लाभ हो। राष्‍ट्रीय विज्ञान दिवस (28 फरवरी) के अवसर पर मिलते हैं कुछ ऐसे ही जिज्ञासु किशोरों से, जो नवोन्‍मेष (इनोवेशन) में दिखा रहे हैं दम...

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    पुणे की 15 वर्षीया जुइ केसकर के अंकल नौ साल से पर्किंसन बीमारी से पीडि़त थे। जुइ के अनुसार, उनका पूरा इलाज शरीर में होने वाले कंपन के इतिहास पर आधारित था। इसका प्रथम चरण था कि पहले कंपन को मापा जाए। इसके लिए किसी डिवाइस की जरूरत थी। अंकल को दर्द से परेशान देखकर जुइ को बड़ा दुख होता। वह उनके इलाज के लिए कुछ ठोस करना चाहती थीं।

    पिछले साल कोरोना की दूसरी लहर में जब लाकडाउन हुआ तो उन्हें इस दिशा में सोचने का पर्याप्‍त अवसर मिला। स्‍कूल आनलाइन होने से जुइ ने यूट्यूब व वेबसाइट आदि की मदद से कंप्‍यूटर प्रोग्राम सीखा और जे ट्रीमर-3डी नामक डिवाइस तैयार करने में जुट गयीं। इस दिशा में उनके पिता ने भी खूब मदद की। यह पहने जाने वाला डिवाइस है, जिसमें सेंसर, एक्‍सलरेमीटर और गाइरो मीटर लगे हुए हैं जो‍ साफ्टवेयर से जुड़े होते हैं। यह पर्किंसन से पीडि़त व्‍यक्ति में होने वाले कंपन को ट्रैक करता है। इससे डाक्‍टर को इलाज में मदद मिलती है। जुइ के इस उपयोगी डिवाइस का पेंटेंट हो चुका है। अपने जिज्ञासु माइंड के लिए उन्हें कई राष्‍ट्रीय और अंतरराष्‍ट्रीय पुरस्‍कार भी मिले हैं। इनमें सबसे ताजा पुरस्‍कार है प्रधानमंत्री राष्‍ट्रीय बाल पुरस्‍कार-2022।

    किफायती है थर्मोइलेक्ट्रिक स्टोव जेनरेटर : आजमगढ़ (उप्र) जिले के धड़वल गांव के रहने वाले 12वीं के छात्र प्रांजल श्रीवास्तव बताते हैं कि वह जब भी छुट्टियां मनाने अपने गांव जाते थे तो देखते थे कि वहां विद्युत आपूर्ति ठीक तरीके से न होने से महिलाओं को अंधेरे में खाना बनाने, दूसरे जरूरी काम करने के लिए मजबूर होना पड़ता था। सौर ऊर्जा एक अच्छा विकल्प हो सकता था, लेकिन यह एक महंगा साधन है जिसका खर्च सभी वर्ग के लोग वहन नहीं कर सकते हैं। ऐसे में क्‍यों न सस्ती और उपयोगी डिवाइस बनायी जाए। इसके बाद प्रांजल अपने काम में जुट गए। उन्‍होंने उपकरण बनाने के लिए एलपीजी गैस स्टोव से निकलने वाली ऊर्जा के बारे में सोचा। वह कहते हैं, ‘एलपीजी सभी घरों में उपलब्ध होती है। मैंने एक सर्वे में पढ़ा था कि प्रतिवर्ष 30 प्रतिशत एलपीजी गैस जरूरत से अधिक आंच में बर्बाद हो जाती है।‘

    प्रांजल ने इंटरनेट पर पेल्टीयर डिवाइस के बारे में पता लगाया जिसे एक तरफ से गर्म करने और दूसरी तरफ से ठंडा करने पर विद्युत ऊर्जा उत्पन्न होती है। इसके बाद एक स्टैंड की मदद से गैस के बर्नर से ऊपर की बजाय अगल-बगल से निकल रही आंच से गर्मी लेकर पेल्टियर डिवाइस तक पहुंचाया। इसके जरिए ऊर्जा को एक सुपर कैपेसिटर में एकत्र कर एक यूएसबी पोर्ट के द्वारा छोटे इलेक्ट्रानिक उपकरण या एलईडी बल्ब को जलाया जा सकता है। प्रांजल बताते हैं कि लगभग हर घर में तीन घंटे तक गैस स्टोव जलता है। इस लिहाज से इस डिवाइस से लगभग चार घंटे तक एलईडी बल्ब जलाने या फोन चार्ज करने भर की उर्जा मिल जाती है। डिवाइस बनाने में महज पांच सौ रुपये की लागत आई।

    प्रांजल ने जब यह माडल बनाया था तब वह नौवीं कक्षा के छात्र थे। उपकरण को बाजार में उतारने के लिए सऊदी अरब की एक कंपनी, आइआइटी कानपुर और एक पेट्रोलियम एजेंसी से बातचीत भी जारी है। प्रांजल भविष्य में एयरोस्पेस इंजीनियर बनकर इसरो के साथ नवाचार की राह पर आगे बढ़ना चाहते हैं। इसके लिए प्रांजल को 2019 में राष्ट्रपति से नेशनल अवार्ड के साथ फिलीपींस में आयोजित एशियन अवार्ड में पूरे एशिया में प्रथम स्थान और एक लाख रुपये की सम्मान राशि प्राप्त हुई थी।

    हादसे से बचाएगी सिक्योरिटी लाइट : चार पहिया वाहन चालकों के लिए साइड देखना बड़ी समस्या होती है। कई बार यही हादसे की वजह बनती है। इससे छुटकारा पाने के लिए प्रयागराज (उप्र) में ज्वाला देवी सरस्वती विद्यामंदिर इंटर कालेज, गंगापुरी में स्थापित अटल टिंकरिंग लैब से जुड़े बाल नवोन्मेषियों ने सिक्योरिटी लाइट फार व्हीकल (गाड़ियों की सुरक्षा के लिए लाइट) का माडल तैयार किया है। यह माडल अटल टिंकरिंग लैब से जुड़े विद्यार्थियों के लिए राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित प्रतियोगिता में भी रखा गया था, जहां इसे सराहा गया। उम्मीद है कि माडल को परिष्कृत कर जल्द ही सभी वाहनों में प्रयोग किया जाने लगेगा।

    सिक्योरिटी लाइट फार व्हीकल का माडल तैयार करने में कक्षा नौ के छात्र असीम सिंह, अंशुमान सिंह व हर्ष पटेल ने करीब छह महीने मेहनत की। मार्गदर्शन अटल टिंकरिंग लैब प्रभारी विज्ञान शिक्षक अमित वर्मा ने किया। यह माडल अल्ट्रासोनिक सेंसर पर कार्य करता है। इसे तैयार करने में एलईडी, मेटल प्लेट, पावर बैकअप (गाड़ियों में प्रयोग होने वाली बैटरी) आर्डिनो, बजर, जंपर, वायर का प्रयोग किया गया। जिस वाहन में यह डिवाइस लगेगा उसके पास से यदि कोई दूसरा वाहन या कोई भी चीज गुजरेगी तो स्टेयरिंग के पास लाइट जल जाएगी और बजर बजने लगेगा। इससे चालक को सतर्क होने में मदद मिलेगी। माडल बनाने में शामिल अंशुमान कहते हैं कि अभी जो महंगी गाड़ियां आ रही हैं उनमें चालक पीछे की चीजें देखने के लिए स्टेयरिंग के पास एलसीडी का इस्तेमाल करते हैं। महंगे कैमरे व अन्य उपकरण भी होते हैं जिससे कीमत बढ़ जाती है। सिक्योरिटी लाइट फार व्हीकल का प्रयोग होने पर कीमत 15 हजार तक कम हो सकती है।

    नवोन्मेषी दल में शामिल हर्ष पटेल कहते हैं कि इस माडल में स्टेयरिंग के पास पांच एलईडी लगाई जाएंगी, वहीं बजर भी रहेगा। अल्ट्रासोनिक सेंसर वाहन में रहेगा। प्रोग्रामिंग कर तय किया जाएगा कि दूसरा वाहन कितने करीब आए तो सेंसर चालक को सूचना देने के लिए बजर बजाए और स्टेयरिंग के पास लगी लाइट जल जाए।

    छोटे किसानों की उम्मीद बनी 'सब्जी कोठी' : बिहार राज्‍य के भागलपुर, नाथनगर के नया टोला दुधैला निवासी निक्की कुमार झा ने अपने स्टार्टअप प्रोजेक्ट 'सप्तकृषि' के तहत 'सब्जी कोठी’ का निर्माण किया है। यह किसी भी मौसम और जलवायु में बेहतर और एक ही तरह से काम करता है। सब्जी कोठी एक माइक्रो क्लाइमेटिक स्टोरेज है, जिसमें सब्जियां तीन से लेकर 30 दिनों तक एकदम ताजी रहती हैं। इसके लिए थोड़ा पानी और कम से कम 20 वाट बिजली की जरूरत होती है। सब्जी कोठी तीन श्रेणियों में तैयार की गई है। इससे छोटे किसानों और रेहड़ी पर सब्जी बेचने वाले किसानों को विशेष फायदा होगा। इसका आकार बक्सानुमा होता है। इसमें अधिकतम एक हजार किलो तक सब्जियां स्टोर की जा सकती हैं, जबकि छोटे किसानों और रेहड़ी के साथ सब्जी कोठी में दो सौ से ढाई सौ किलो तक सब्जियों को रखा जा सकता है।

    सामान्य सब्जी कोठी का वजन आठ से नौ किलो होता है। इसे आसानी से कहीं भी ले जाया जा सकता है। जहां बिजली की दिक्कत है, वहां इसे सोलर एनर्जी से चलाया जा सकता है। निक्की बताते हैं कि सब्जी कोठी को सात दिनों तक अरुणाचल प्रदेश के चांगलांग जिले के हार्टीकल्चर विभाग में प्रयोग के लिए रखा गया, जो फिट पाया गया। इसकी शुरुआत सबसे पहले आइआइटी पटना से शुरू हुई। इसके बाद आइआइटी कानपुर से तकनीकी सहयोग मिला। शेर-ए-कश्मीर यूनिवर्सिटी आफ एग्रीकल्चर साइंस एंड टेक्नोलाजी के इन्क्यूबेशन सेंटर से लैब और फंडिंग मिली। अभी अरुणाचल प्रदेश, असम, कानपुर व भागलपुर में सब्जी कोठी का प्रयोग हो रहा है। निक्की के पिता सुनील कुमार झा कहलगांव में में फिजिक्स के शिक्षक हैं। निक्‍की ने इकोलाजी एंड एनवायरमेंटल साइंस में मास्टर की डिग्री ली है। उन्‍हें पर्यावरण रत्न अवार्ड, आर्ट एंड मैनेजमेंट अवार्ड, यंगेस्ट आथर अवार्ड, साल्व्ड चैंपियन अवार्ड 2021 व भारत सरकार का यूथ अवार्ड 2021 मिल चुका है। सब्जी कोठी को वर्ल्ड वाइल्ड लाइफ फंड द्वारा क्लाइमेट साल्वर अवार्ड 2020 से भी नवाजा गया है।

    प्रक्षेपण के बाद वापस धरती पर आ सकता है यह राकेट : पूर्वी चंपारण (बिहार) के चार छात्रों ने इंटरनेट की मदद और शिक्षकों के निर्देशन में एक ऐसे राकेट का निर्माण किया है, जो आकाश में 300-400 मीटर की ऊंचाई तक जाने के बाद वापस जमीन पर आ सकता है। इसका दोबारा इस्तेमाल किया जा सकता है। इसकी लंबाई महज 50 सेंटीमीटर है। वजन 70 ग्राम है। इसका नाम अल्फा-1 रखा है। दरअसल, मोतिहारी शहर के दयानंद एंग्लो वैदिक (डीएवी) पब्लिक स्कूल में 10वीं में पढ़ने वाले आयुष कुमार, कौटिल्य वीर, अपूर्व कुमार और रितिक कुमार कक्षा छह से ही विज्ञान से जुड़े विभिन्न प्रोजेक्ट पर काम करते रहे हैं। इसी दौरान अंतरिक्ष में उपग्रह भेजने में इस्तेमाल होने वाले राकेट के प्रति उनकी उत्सुकता बढ़ी। इसके बाद उन्‍होंने निर्णय लिया कि वे इंटरनेट की मदद लेकर इस दिशा में आगे बढ़ेंगे। इसके बाद उन्‍होंने लोहे व प्लास्टिक की मदद से राकेट बनाया। पैराशूट के लिए बाजार से खरीदे गए कपड़े व रस्सी आदि का उपयोग किया। राकेट को उड़ाने के लिए सी-67 इंजन की खरीदारी आनलाइन की। इसका वजन 24 ग्राम है। यह अमेरिका में बना है। छात्रों ने बताया कि इसमें पोटैशियम नाइट्रेट, चारकोल, सल्फर आदि से मिलकर बना ईंधन उपयोग होता है। राकेट को रिमोट से कंट्रोल किया जा सकता है। इसमें लगा पैराशूट प्रक्षेपण के बाद हवा में स्वत: खुल जाएगा। इसे बनाने में 10 हजार रुपये खर्च हुए हैं। दिलचस्‍प बात तो यह है कि गत 15 फरवरी को उड़ाकर इसका सफल परीक्षण भी किया गया।

    विज्ञान के प्रति जागरूकता बढ़ाने की जरूरत : मुझे तकनीक की मदद से कुछ नया तैयार करना बहुत पसंद है। हालांकि अभी तक मैंने कुछ ज्‍यादा काम नहीं किया है लेकिन बड़ी होकर मैं इसी दिशा में कुछ करना चाहूंगी। विज्ञान को लेकर हमारे देश में जागरूकता है जिसे और बढ़ाने की जरूरत है, ताकि हर बच्‍चा इसमें रुचि ले और इनोवेशन की दिशा में आगे बढ़े। हर विषय चाहे वह लड़का हो या लड़की, सबको एक्‍सप्‍लोर करने की छूट हो। उन पर किसी प्रकार का दबाव नहीं डाला जाना चाहिए।

    प्रो.अनिल गुप्ता, सीएसआर भटनागर फेलो एवं संस्थापक सृष्टि, ज्ञान एवं राष्ट्रीय नवप्रवर्तन प्रतिष्ठान (जीआइएएन)

    बच्चों को खिलने दें खुद से : मेरा मानना है कि ने किट से लेकर डिस्पेंसर, फेस शील्ड और बहुत कुछ विकसित किया। अभिभावकों एवं शिक्षकों से एक अपील करना चाहूंगा कि बच्चों की स्पून फीडिंग न करें। उनके नाम पर विभिन्न इनोवेशंस प्रतियोगिता में अपने आइडियाज न भेजें। बच्चों को खुद से खिलने दें। उनके पास बहुत कुछ है कहने और करने के लिए। उनका जिज्ञासुपन ही उन्हें सवाल करने के लिए प्रेरित करता है। तभी वह किसी भी समस्या का हल निकालने की दिशा में सोच पाते हैं। इसलिए उनका उचित मार्गदर्शन करना चाहिए। बच्चों को अवार्ड मिले या न मिले। उनके आइडिया में दम होना चाहिए।

    इनपुट सहयोग : प्रयागराज से अमलेन्दु त्रिपाठी, लखनऊ से रामांशी मिश्रा, भागलपुर से बलराम मिश्र, मोतिहारी से (पूर्वी चंपारण) अनिल तिवारी