महिला आयोग ने कार्यस्थलों पर महिलाओं के लिए अनुकूल माहौल नहीं होने पर उठाए सवाल
राष्ट्रीय महिला आयोग ने विचार-विमर्श के बाद कई ऐसे बिंदु तलाशे हैं जो कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न की रोकथाम वाली व्यवस्था में खामी छोड़ते हैं।
नई दिल्ली, प्रेट्र। राष्ट्रीय महिला आयोग ने विचार-विमर्श के बाद कई ऐसे बिंदु तलाशे हैं जो कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न की रोकथाम वाली व्यवस्था में खामी छोड़ते हैं। समीक्षा में पाया गया कि कार्यस्थलों पर यौन उत्पीड़न रोकने या उस पर नजर रखने के लिए कोई अधिकारी नियुक्त नहीं है। यौन उत्पीड़न के रोकथाम वाले तंत्र को अधिनियम में भी स्पष्ट नहीं किया गया है।
महिला यौन उत्पीड़न पर छिड़े मी टू अभियान में देश के भीतर जिस तरह से शिकायतें सामने आई हैं, महिला आयोग ने उन्हें लेकर व्यवस्था की समीक्षा की है। पाया कि कार्यस्थलों के हालात पूरी तरह महिलाओं के अनुकूल नहीं हैं। आयोग ने बताया कि मी टू अभियान के तहत मीडिया में बड़ी संख्या में आई शिकायतों और काफी पुराने मामलों से साबित होता है कि व्यवस्था में सुधार की बहुत जरूरत है। इस मसले में विशेषज्ञों के साथ बैठकर विचार-विमर्श किया गया।
समीक्षा में अवकाश प्राप्त महिला न्यायाधीश सुजाता मनोहर, जी रोहिणी, अनुराधा पॉल, देश के सहायक महाधिवक्ता, मेघालय और कुछ अन्य क्षेत्रों के प्रतिनिधियों को शामिल किया गया। समीक्षा में यह राय निकलकर सामने आई कि कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न को रोकने वाले अधिनियम में अभी और संशोधन की जरूरत है। मौजूदा अधिनियम के प्रावधान उत्पीड़न रोकने के लिए पर्याप्त नहीं हैं।
अधिनियम में कई प्रावधानों में उत्पीड़न की रोकथाम न कर पाने की खामी है। उत्पीड़न के बाद की प्रक्रिया को भी पर्याप्त सक्षम नहीं पाया गया। यह स्थिति पूरे देश के कार्यस्थलों पर पाई गई। अधिनियम में महिलाओं को यौन उत्पीड़न से बचाने वाला कोई प्रावधान नहीं है। अपनी तरफ से सतत नजर रखने वाला कोई सक्षम अधिकारी नियुक्ति का भी प्रावधान नहीं है।
विशेषज्ञों और आयोग के सदस्यों ने संस्थाओं में बनी आंतरिक शिकायत समिति के कार्यप्रणाली पर भी असंतोष जताया। पीड़ित के प्रति इस समिति के व्यवहार के प्रावधान भी स्पष्ट नहीं हैं। हाल ही में मी टू अभियान में बॉलीवुड की कई अभिनेत्रियों और मीडिया जगत की कई पत्रकारों ने अपने यौन उत्पीड़न की घटनाओं का रहस्योद्घाटन किया है।