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सुस्‍त पड़ रही धरती के घूमने की रफ्तार, जानें क्‍या पड़ेगा असर, वैज्ञानिकों ने यह दी चेतावनी

धरती के अपनी धुरी पर घूमने की रफ्तार धीमी हो रही है जिससे चंद्रमा इससे दूर होता जा रहा है। यह घटना बड़े भूकंपों की वजह बन सकती है। वैज्ञानिकों ने सनसनीखेज खुलासा किया है...

By Krishna Bihari SinghEdited By: Published: Fri, 26 Jul 2019 07:48 AM (IST)Updated: Fri, 26 Jul 2019 04:44 PM (IST)
सुस्‍त पड़ रही धरती के घूमने की रफ्तार, जानें क्‍या पड़ेगा असर, वैज्ञानिकों ने यह दी चेतावनी
सुस्‍त पड़ रही धरती के घूमने की रफ्तार, जानें क्‍या पड़ेगा असर, वैज्ञानिकों ने यह दी चेतावनी

नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। Earth’s rotation is slowing… हम जिस धरती पर मौजूद हैं वह अपनी धुरी पर 1,670 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से घूम रही है। क्या कभी आपने सोचा कि यदि धरती का अपनी धुरी पर घूमना यदि रुक जाए या इसकी घुर्णन गति मंद पड़ने लगे तो अंजाम क्या होगा.? वैज्ञानिकों की मानें तो यदि उक्त अनहोनी हुई तो इसकी वजह से धरती पर जीवन संकट में पड़ जाएगा। एक अध्ययन के मुताबिक, धरती के अपनी धुरी पर घूमने की रफ्तार धीमी हो रही है जिससे चंद्रमा इससे धीरे धीरे दूर होता जा रहा है। नासा के वैज्ञानिकों का मानना है कि यह घटना बड़े भूकंपों की वजह बन सकती है। पढ़ें यह चौंकाने वाली रिपोर्ट...

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घूर्णन गति सुस्त पड़ने से बढ़ती हैं भूकंपीय घटनाएं
धरती पर आने वाली प्राकृतिक आपदाओं में भूकंप एक ऐसी विपदा है जिसे इंसान आज तक डीकोड नहीं कर सका है। साल 2001 में गुजरात में आया भूकंप तो आपको याद ही होगा, जिसमें 20 हजार लोगों की मौत हो गई थी। यही नहीं 26 दिसंबर 2004 को 9.1 तीव्रता भूकंप के बाद आई सुनामी में लगभग 2 लाख 30 हजार लोगों की मौत हो गई थी। नासा के जेट प्रोपल्शन लेबोरेटरी (NASA’s Jet Propulsion Laboratory) के सोलर सिस्टम के एम्बेस्डर मैथ्यू फुन्के (Matthew Funke) ने कहा कि चंद्रमा का गुरु त्वाकर्षण पृथ्वी पर एक ज्वारीय उभार बनाता है। यह उभार भी धरती की घूर्णन गति से घूमने का प्रयास करता है। नतीजतन धरती की अपनी धुरी पर घूमने की रफ्तार सुस्त पड़ जाती है। वैज्ञानिकों का मत है कि धरती की घूर्णन गति या अपनी धुरी पर घूमने की गति सुस्त पड़ने से भूकंपीय घटनाएं बढ़ जाती है। हालांकि, ऐसा क्यों होता है, वैज्ञानिक अभी उन वजहों का खुलासा नहीं कर पाए हैं।

सात से अधिक की तीव्रता के भूकंपों की संख्या बढ़ी
दरअसल, यह ब्रह्मांड कोणीय संवेग (Angular Momentum) के सिद्धांत पर काम करता है। ब्रह्मांड में मौजूद पिंडों की गति भले ही अलग अलग हो लेकिन उनके कोणीय संवेग का योग नहीं बदलता है। वैज्ञानिकों का मत है कि चंद्रमा की वजह से जब धरती का कोणीय संवेग मंद पड़ता है तो चंद्रमा इसे हासिल करने के लिए अपनी कक्षा में थोड़ा और आगे बढ़ जाता है। अध्ययन के मुताबिक, चंद्रमा हर साल लगभग डेढ़ इंच आगे बढ़ रहा है। इससे धरती पर भविष्य में बड़े भूकंप आ सकते हैं। कोलोराडो यूनिवर्सिटी (University of Colorado) के वैज्ञानिक रोजर बिल्हम (Roger Bilham) और मोंटाना यूनिवर्सिटी (University of Montana) के रेबेक्का बेंडिक (Rebecca Bendick) ने अपने अध्ययन में पाया कि वर्ष 1900 के बाद से सात से अधिक की तीव्रता वाले भूकंपों में इजाफा हुआ है। 20वीं सदी के अंतिम पांच वर्षों में जब धरती की घूर्णन गति में थोड़ी कमी देखी गई तब सात से अधिक के तीव्रता के भूकंपों की संख्या अधिक थी। वैज्ञानिकों ने इस दौरान हर साल 25 से 30 तेज भूकंप दर्ज किए। इनमें औसतन 15 बड़े भूकंप थे।

...तो खत्म हो जाएगी धरती से इंसानों की आबादी
इससे पहले लंदन के वैज्ञानिक माइकल स्टीवंस ने अपने अध्ययन में पाया था कि धरती यदि एकाएक घूमना बंद का वातावरण गतिमान बना रहेगा। हवा 1,670 किलोमीटर प्रतिघंटे की रफ्तार से चलेगी। यह तूफानी हवा रास्ते में आने वाली हर चीज को ध्वस्त करती चली जाएगी। मनुष्य किसी बंदूक की गोली की रफ्तार से एक दूसरे से टकराएंगे। इसके साथ ही पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र समाप्त हो जाएगा। उस समय का वातावरण परमाणु विस्फोट के बाद की स्थितियों जैसा होगा, जिससे नाभिकीय व अन्य प्रकार के प्राण घातक विकिरण फैल जाएंगे। नारंकी के आकार वाली पृथ्वी पूरी तरह से गोल हो जाएगी। समद्रों का पानी एकाएक उछलने से बाढ़ की स्थिति होगी। पृथ्वी पर आधे साल दिन रहेगा और आधे साल रात रहेगी। इससे धरती पर इंसानों की आबादी खत्म हो जाएगी। हालांकि, नासा वैज्ञानिकों की मानें तो कई अरब साल तक ऐसी घटना होने की कोई आशंका नहीं है। 

चुंबकीय उत्तरी ध्रुव भी बदल रहा अपनी जगह 
इससे पहले वैज्ञानिकों ने एक अध्‍ययन में पाया था कि धरती पर दिशा की जानकारी देने वाला मैग्ननेटिक नॉर्थ पोल (चुंबकीय उत्तरी ध्रुव) अपनी स्थिति बदल रहा है। मैग्नेटिक नॉर्थ पोल का डायरेक्शन उत्तर ध्रुव (कनाडाई आर्कटिक) से सालाना 55 किलोमीटर (34 माइल) की दर से साइबेरिया की तरफ खिसक रहा है। वैज्ञानिकों की मानें तो बीते कुछ दशकों में पृथ्वी का चुंबकीय उत्तरी ध्रुव इतनी तेजी से खिसका है कि पूर्व में लगाए गए अनुमान अब जलमार्ग के लिए सही नहीं बैठ रहे हैं। इससे जलमार्ग के जरिए यातायात में समस्‍याएं आ रही हैं। कॉलाराडो यूनिवर्सिटी के भूभौतिक विज्ञानी एवं नए वर्ल्ड मैगनेटिक मॉडल के प्रमुख शोधकर्ता अर्नोड चुलियट ने बताया कि इस बदलाव की वजह से स्मार्टफोन और उपभोक्ता के इस्तेमाल वाले कुछ इलेक्ट्रॉनिक्स कंपासों में समस्या आ रही है।

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