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    नरेन्द्र मोहन स्मृति व्याख्यान में केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद ने कहा- विकसित भारत के लिए सबको शिक्षा जरूरी

    By Jagran NewsEdited By: Ashisha Singh Rajput
    Updated: Mon, 10 Oct 2022 10:04 PM (IST)

    नरेन्द्र मोहन स्मृति व्याख्यान में केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने कहा- मध्यकाल में भारत के पराभव की असली वजह प्राचीन ज्ञान परंपरा से विमुख होना रहा है। उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति में प्राचीनता भी है और मृत्युंजयता भी-

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    केरल के राज्यपाल ने दैनिक जागरण के पूर्व प्रधान संपादक नरेन्द्र मोहन की स्मृति में आयोजित व्याख्यान में कहा-

    नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने अगले 25 सालों में भारत को विकसित देश बनाने के लिए सभी को शिक्षित करना जरूरी बताया है। उन्होंने भारतीय संस्कृति और मूल्य समावेशी बताते हुए कहा कि इसमें आधुनिकता की चुनौतियों से निपटने की शक्ति है, इसीलिए यह प्राचीनता बनाए रखते हुए मृत्युंजय भी साबित हुआ है।

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    आरिफ मोहम्मद खान दैनिक जागरण के पूर्व प्रधान संपादक नरेन्द्र मोहन की स्मृति में आयोजित व्याख्यान में ''मूल्य आधारित आधुनिक शिक्षा और समाज निर्माण'' विषय पर बोल रहे थे। आरिफ मोहम्मद खान के अनुसार मध्यकाल में भारत के पराभव की असली वजह प्राचीन ज्ञान परंपरा से विमुख होना रहा है। इसके लिए उन्होंने स्वामीनाथनंद की ''एक परिवर्तनशील समाज के सनातन मूल्य'' पुस्तक का उद्धरण देते हुए कहा कि असल में हम सरस्वती के उपासक से सरस्वती के खलनायक बन गए थे। उनके अनुसार श्रीमद् भागवत में ज्ञान का प्रचार-प्रसार नहीं करने वाले को खलनायक कहा गया है।

    उन्होंने कहा कि प्राचीन ग्रंथों में ज्ञान को हासिल करने के साथ ही उसके दूसरों के साथ साझा करने को तप कहा गया है। इसीलिए ज्ञान को अर्जित और साझा करने की प्रक्रिया हमेशा चलती रहनी चाहिए। उन्होंने कहा कि जब तक ज्ञान अर्जित करने और उसे बांटने की परंपरा जारी रही, भारत दुनिया में विश्वगुरू बना रहा, जैसे ही ज्ञान को कुछ लोगों तक सीमित किया जाने लगा, उसका पराभव शुरु हो गया।

    उनके अनुसार आधुनिक भारत में भी शिक्षा की आधारभूत संरचना तैयार करने में गरीबों से लिये गए टैक्स का पैसा भी शामिल है। इसीलिए इससे शिक्षित होने वाले हर व्यक्ति की जिम्मेदारी गरीबों और अशिक्षितों को शिक्षित करने की है। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी आजादी के अमृतकाल में स्वतंत्रता सेनानियों के सपनों का भारत बनाने की बात कह रहे हैं। इसके लिए हम सभी को एकजुट होकर प्रयास करना होगा।

    आरिफ मोहम्मद खान ने कहा कि शिक्षा और ज्ञान को मूल्यों से जोड़े रखना जरूरी है। उनके अनुसार ज्ञान व्यक्ति को शक्ति देता है और इसका इस्तेमाल कैसे हो यह मूल्य सिखाता है। उन्होंने कहा कि ''यदि किसी के ज्ञान का जुड़ाव मूल्यों के साथ नहीं है, तो उसको राक्षस बनने से कोई नहीं रोक सकता।'' इस सिलसिले में उन्होंने प्रसिद्ध इतिहासकार बिपिन चंद्रा और उनके जर्मन शिक्षक के बीच हुई बातचीत का हवाला दिया।

    उनके अनुसार बिपिन चंद्र भारत में अधिकांश लोगों के अशिक्षित होने के कारण आजादी के बाद के हालात को लेकर आशंकित थे। लेकिन उनके जर्मन शिक्षक ने उन्होंने आश्वस्त करते हुए कहा कि जर्मनी में जिस समय सबसे अधिक लोग पीएचडी तक शिक्षा हासिल करने वाले थे, उसी समय हिटलर जैसे तानाशाह का उदय हुआ था, जिसने दुनिया को युद्ध में झोंक में दिया। लेकिन भारत में अशिक्षित आबादी ने महात्मा गांधी जैसे नेता को जन्म दिया, जिन्होंने दुनिया को अहिंसा का पाठ पढ़ाया।

    उन्होंने संस्कृत श्लोक का उदाहरण देते हुए कहा कि विद्या व्यक्ति को सबसे पहले विनय सिखाती है। आरिफ मोहम्मद खान के अनुसार भारतीय संस्कृति, मूल्य और शिक्षा परंपरा का आधुनिकता से कोई विरोध नहीं है, बल्कि यह सभी को समावेशित करने वाली है, क्योंकि यह किसी को भी नस्ल, भाषा, लिंग और पूजा पद्धति के नाम पर बाहर नहीं करती है।

    उन्होंने कहा कि दुनिया की सभी संस्कृतियों का आधार नस्ल, भाषा और पूजा पद्धति रहा है। वहीं भारत की संस्कृति का आधार 5000 साल से अधिक समय से आत्मा रहा है और यह आत्मा सभी पुरुषों, महिलाओं, पेड़ों व जीव जंतुओं में विराजमान है। वहीं 150 साल पहले तक यूरोप में माना जाता था कि महिलाओं में आत्मा होती ही नहीं है, इसीलिए उसके साथ किसी भी तरह का अत्याचार किया जा सकता है।

    आरिफ मोहम्मद खान के अनुसार जिस बहुलतावादी समाज की बात मजबूरी में पश्चिम के देश कर रहे हैं, वह प्राचीन काल से भारतीय संस्कृति, मूल्य और ज्ञान का आधार रहा है। उनके प्राचीन भारतीय ग्रंथों में सत्य को एक बताया गया है, जिसको विद्वान अलग-अलग तरीके से बताते हैं। इसके साथ ही भारतीय दर्शन और ज्ञान परंपरा में करुणा के भाव को अहमियत दी गई है, जिसका पाश्चात्य संस्कृति में नितांत अभाव है। इस सिलसिले में उन्होंने श्रीमद् भागवत गीता में द्रौपदी अपने पुत्रों के युद्ध में मारे जाने के शोक विह्वल होने के बावजूद अर्जुन को अश्वत्थामा को मारने से रोकती है, क्योंकि वह नहीं चाहती है कि उसकी जैसी पीड़ा अश्वथामा की माता गौतमी को सहना पड़े।

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