Muslim Woman Divorce: मुस्लिम महिलाओं के 'खुला' पर मद्रास हाईकोर्ट की अहम टिप्पणी, जानिए क्या है ये प्रथा
Muslim Woman Divorce मद्रास हाईकोर्ट ने कहा कि एक मुस्लिम महिला सिर्फ अदालत में तलाक मांग सकती है ना कि किसी भी शरिया परिषद में। कोर्ट ने इसी के साथ वहां से प्राप्त सर्टिफिकेट को अमान्य बताया। आइए जानें हाईकोर्ट के फैसले की अहम बातें।
नई दिल्ली, आनलाइन डेस्क। Muslim Woman Divorce मद्रास हाई कोर्ट (Madras High Court) ने मुस्लिस महिलाओं के तलाक को लेकर एक अहम फैसला सुनाया। कोर्ट ने मुस्लिम महिलाओं के 'खुला' को लेकर निर्देश दिया है कि वह इसके लिए केवल फैमिली कोर्ट में जा सकती हैं। कोर्ट ने कहा कि मुस्लिम महिला को शरिया परिषद में जाने की जरूरत नहीं है। हाई कोर्ट ने कहा कि शरिया एक निजी संस्था है और वह तलाक को खत्म करने को लेकर कोई भी प्रमाण नहीं दे सकती है।
कोर्ट ने कही यह बातें...
मद्रास हाई कोर्ट ने एक महिला की तलाक की अर्जी पर कहा कि शरिया परिषदें द्वारा जारी कोई भी सर्टिफिकेट मान्य नहीं होगा। अदालत ने कहा कि निजी निकाय 'खुला' द्वारा विवाह खत्म करने की घोषणा या प्रमाणित नहीं कर सकते हैं। एचसी ने कहा, ये निकाय न तो न्यायालय है और न ही विवादों के मध्यस्थ हैं और अदालतें भी इस तरह के अभ्यास पर अब भड़क गई हैं"। याचिकाकर्ता और उसकी पत्नी को कोर्ट ने निर्देश दिया कि वे अपने विवादों को सुलझाने के लिए तमिलनाडु कानूनी सेवा प्राधिकरण या एक फैमिली कोर्ट से संपर्क करें।
जानें क्या है 'खुला'
'खुला' इस्लाम के तहत एक तरह की तलाक की प्रक्रिया है जिसमें एक मुस्लिम महिला अपने पति को तलाक देती हैं। इस प्रक्रिया में भी दोनों की सहमति जरूरी होती है। खुला प्रक्रिया के तहत महिला को अपनी कुछ संपत्ति पति को वापस देनी होती है।
'देश में अब फतवा नहीं चलता'
हाईकोर्ट ने एक महिला को तमिलनाडु के तौहीद जमात द्वारा 2017 में जारी किए गए प्रमाण पत्र को सुनवाई के दौरान रद्द कर दिया। अदालत ने बदर सईद बनाम भारत संघ 2017 मामले पर में अंतरिम रोक भी दी और उस मामले में प्रतिवादियों (काज़ियों) जैसे निकायों को खुला द्वारा विवाह को खत्म करने को प्रमाणित करने वाले प्रमाण पत्र जारी करने से रोक दिया। अदालत ने कहा कि मुगल या ब्रिटिश शासन के दौरान 'फतवा' जारी होते थे, लेकिन ये स्थिति अब नहीं है और स्वतंत्र भारत में इसका कोई स्थान नहीं है।