गुजारा भत्ता के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकते हैं मुस्लिम संगठन, अदालत ने महिलाओं के हक में सुनाया था फैसला
सुप्रीम कोर्ट द्वारा मुस्लिम महिलाओं को गुजारा भत्ता देने के अधिकार के निर्णय के बाद अब मुस्लिम संगठन इस पर पुनर्विचार याचिका दाखिल करने पर विचार कर रहे हैं । संगठनों की आंतरिक बैठकों में विरोध का कानूनी रास्ता तलाशा जा रहा है। मुस्लिम संगठन फैसले के अध्ययन के बाद सोच- विचार कर अगला कदम उठाने के पक्ष में हैं।

जागरण टीम, नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव में भाजपा की कम सीटें आने के बाद से मुखर हो रहे मुस्लिम संगठनों को सुप्रीम कोर्ट के मुस्लिम महिलाओं को भी गुजारा भत्ता देने के अधिकार के निर्णय ने बैकफुट पर ला दिया है। सर्वोच्च न्यायालय के इस फैसले ने मुस्लिम समाज को धार्मिक आधार पर अलग रखने वाले उनके अभेद्य किले को भेदा है।
जिस तरह से देश में समान नागरिक संहिता (यूसीसी) की मांग तेज हुई है, उसने भी मुस्लिम संगठनों की चिंता बढ़ा दी है। उन्हें लगता है कि मुस्लिम पर्सनल लॉ के पूरे किले के ही ढह जाने का खतरा पैदा हो गया है। तीन तलाक जैसे मामलों में मोदी सरकार के रुख को देखते हुए मुस्लिम संगठन सार्वजनिक तौर पर विरोध के बजाय अंदरखाने रणनीति बनाने में जुटे हैं।
सुप्रीम कोर्ट में डाली जा सकती है पुनर्विचार याचिका
भीड़ जुटाकर दबाव की राजनीति की जगह आंतरिक बैठकों में विरोध का कानूनी रास्ता तलाशा जा रहा है। जल्द ही सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिकाएं डाली जा सकती हैं। कांग्रेस, सपा व द्रमुक जैसे विपक्षी दलों को भी साथ आने का आह्वान किया जा सकता है, जिससे देश में राजनीतिक हलचल तेज हो सकती है। मुस्लिम मामलों के जानकारों के अनुसार, मुस्लिम संगठनों का बदला रुख पहले से अलग इसलिए है, क्योंकि केंद्र में भाजपानीत राजग की सरकार है।
पूर्व में सुप्रीम कोर्ट के इस तरह के एक निर्णय को तत्कालीन राजीव गांधी की सरकार ने वर्ष 1986 में संसद से कानून लाकर पलट दिया था। तब बोट क्लब पर मुस्लिम संगठनों ने रैली कर शक्ति प्रदर्शन किया था और तब भाजपा ने सरकार के निर्णय का मुखर विरोध किया था।
गुरुवार को नई दिल्ली में जमीयत उलेमा-ए-हिंद के एक गुट के शीर्ष पदाधिकारियों व कानून के जानकारों ने बैठक भी की, जिसमें मौलाना अरशद मदनी भी मौजूद रहे। सूत्रों के अनुसार, बैठक में सुप्रीम कोर्ट के वर्तमान और पूर्व के निर्णयों के साथ तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के दौर में हुए आंदोलनों तथा संसद से कानून लाकर फैसले को पलटने के मामले का विस्तार से जिक्र हुआ।
एआईएमपीएलबी ने रविवार को दिल्ली में बुलाई बैठक
मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) की रविवार को नई दिल्ली में बैठक बुलाई गई है। बोर्ड ने इस मुद्दे को पहले ही 10 सदस्यीय कानून कमेटी को दे दिया है। संगठन के एक पदाधिकारी के अनुसार, वह कमेटी सुप्रीम कोर्ट के निर्णय पर कानूनी सुझाव देगी, जिस पर 51 सदस्यीय शीर्ष कार्यकारी कमेटी में चर्चा होगी और सर्वसम्मति से आगे का निर्णय लिया जाएगा।
महमूद मदनी सोच समझकर कदम उठाने के पक्ष में
जमीयत उलेमा-ए-हिंद के दूसरे गुट के अध्यक्ष मौलाना महमूद मदनी इस मुद्दे पर सोच समझकर कदम उठाने के हक में हैं। उन्होंने कहा कि अभी कुछ तय नहीं हुआ है। जल्द ही जमीयत के कानूनी जानकारों की बैठक बुलाकर रणनीति तय की जाएगी। कुछ दिन पहले ही जमीयत मुख्यालय में संगठन की शीर्ष बैठक में उन्होंने सूर्य नमस्कार व सरस्वती वंदना को गैर इस्लामी बताते हुए मुस्लिम छात्रों और अभिभावकों से स्कूलों में विरोध का आह्वान किया था। इसी तरह, जमात-ए-इस्लामी हिंद जैसे बड़े संगठन भी इस मामले पर सोच विचार कर कदम उठाकर आगे बढ़ने के मूड में हैं।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले का मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड अध्ययन कर रहा है। इसके बाद ही इस पर बयान या टिप्पणी की जा सकेगी। वैसे भी पहले ही मुस्लिम कानून में तलाक देने के सवा तीन महीने तक महिला को गुजारा भत्ता देने का प्रविधान है। इसके बाद वह चाहे दूसरी शादी करे या कोई और काम करे। सभी धर्म का अपना नियम है। उसी नियम के तहत ऐसा किया जाता है।
-मौलाना खालिद रशीद फरंगी महली, इमाम ईदगाह ऐशबाग
सुप्रीम कोर्ट का फैसला महिलाओं के लिए हितकारी जरूर है, लेकिन सरकार को महिलाओं को रोजगार से जोड़ने की पहल भी करनी चाहिए। तलाकशुदा महिलाएं एक बार फिर उस पति के आगे हाथ फैलाएंगी, जो उन्हें पहले ही तलाक दे चुका है। ऐसे में सरकार को नौकरियों में और रोजगार के क्षेत्र में उनको आगे बढ़ाने की जरूरत है। तभी महिलाओं को सही मायने में न्याय मिल सकेगा।
-अजरा मोबिन, सामाजिक कार्यकर्ता
तीन तलाक पर कानून बनाने के लिए सबसे पहले वर्ष 2015 में हमने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को पत्र लिखा था। तीन तलाक कानून के बाद अब सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला महिलाओं को अपना हक पाने में कारगर साबित बहोगा। मैं सुप्रीम कोर्ट का शुक्रिया अदा करती हूं। अब सरकार की जिम्मेदारी है कि इस कानून को सख्ती से लागू करे तभी महिलाओं को न्याय मिल सकेगा।
-शहनाज सिदरत, अध्यक्ष, बज्म-ए-ख्वातीन
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