गोकशी के मामले में उम्रकैद की सजा सुनाकर चर्चा में आईं मुस्लिम न्यायाधीश
उत्तर प्रदेश के अमरोहा जिले में गोकशी के मामले में मुस्लिम न्यायाधीश डॉ. नसरीन खान ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए एक आरोपी को उम्रकैद की सजा दी। 2020 के इस मामले में, न्यायाधीश खान ने गोकशी को गंभीर अपराध बताते हुए दोषी को सजा सुनाई, जिसकी चारों ओर सराहना हो रही है। इस फैसले से न्यायपालिका में लोगों का विश्वास मजबूत हुआ है।

अदालत। (प्रतीकात्मक)
राज्य ब्यूरो, अहमदाबाद: देश में जहां एक ओर हिंदू व मुस्लिम मतावलंबियों के बीच तनातनी की घटनाएं सामने आ रही है, वहीं एक मुस्लिम न्यायाधीश के फैसले ने उन्हें हिंदू समुदाय के बीच मुस्लिम रोल माडल के रूप में उभार दिया है। हम बात कर रहे हैं गुजरात के अमरेली में प्रधान जिला एवं सत्र न्यायाधीश रिजवाना बुखारी की। उन्होंने मंगलवार को गोकशी के मामले में तीन आरोपितों को दोषी मानते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई थी।
न्यायाधीश रिजवाना बुखारी मूल रूप से अहमदाबाद के वटवा क्षेत्र से हैं। बचपन से धार्मिक परिवेश में पली बढ़ी है और सुफी संत शाह आलम व सुफी संत कुतबे आलम की वंशज हैं। यह वर्ग देश में अमन चैन व सांप्रदायिक भाईचारा का पक्षधर रहा है। मंगलवार को अमरेली सत्र न्यायालय की जज के नाते उन्होंने अपने फैसले से इसका दर्शन भी करा दिया।
न्यायाधीश बुखारी ने गोकशी करने वाले अमरेली के अकरम हाजी, काशिम हाजी सोलंकी व सत्तार इस्माइल सोलंकी को आजीवन कारावास व छह-छह लाख रु का जुर्माना लगाया। उनके इस ऐतिहासिक फैसले ने गोमाता में गहरी आस्था रखने वालों का दिल जीत लिया। उनके फैसले से यह बात स्पष्ट रूप से झलकती नजर आती है जब उन्होंने गोकशी को एक घृणित अपराध अपराध माना।
भारत के पूर्व मुख्य सूचना अधिकारी उदय महूरकर ने इंटरनेट मीडिया पर इस महिला न्यायाधीश की प्रशंसा करते हए उन्हें भारतीय मुसलमानों की नई रोल माडल तक बता दिया। उन्होंने लिखा कि मुसलमानों द्वारा गोहत्या, हिन्दू-मुस्लिम संबंधों में एक बड़ी बाधा है।
एक मुस्लिम न्यायाधीश, रिजवाना बुखारी ने अमरेली में गोहत्या के लिए तीन मुसलमानों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई। यह निर्णय गुजरात के गोहत्या विरोधी कानून के तहत आया, जिसमें इस अपराध के लिए आजीवन कारावास का प्रविधान है।
महूरकर आगे लिखते हैं कि मैं अमरेली जिले के इस देशभक्त न्यायाधीश के निर्णय के लिए उनकी गहरी प्रशंसा करता हूं। मैं वीर सावरकर के 1939 के बयान को उद्धृत करता हूं, जिसमें उन्होंने लखनऊ के मुसलमानों के गोहत्या के खिलाफ मिशन की प्रशंसा की थी। सावरकर ने कहा था कि यदि मुस्लिम समुदाय के सदस्यों से ऐसे संकेत मिलते रहते हैं, तो वास्तविक हिन्दू-मुस्लिम एकता संभव है।

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