सावन में कजरी सुननी है तो मुंबई पधारिए
मुंबई,[ओमप्रकाश तिवारी]। वह दिन हवा हो गए जब सावन की पहली फुहार पड़ते ही पूर्वी उत्तरप्रदेश और पश्चिमी बिहार में महुए की डाल पर झूलों की पेंगे और कजरी, आल्हा व चैता के स्वरों से मन भीग जाता था । अब इस संस्कृति को बचाने की बीड़ा वास्तव में मुंबई ने उठा रखा है।
मुंबई,[ओमप्रकाश तिवारी]। वह दिन अब हवा हो गए जब सावन की पहली फुहार पड़ते ही पूर्वी उत्तरप्रदेश और पश्चिमी बिहार में महुए की डाल पर झूलों की पेंगे और कजरी, आल्हा व चैता के स्वरों से मन भीग जाता था । अब इस संस्कृति को बचाने का बीड़ा वास्तव में मुंबई ने उठा रखा है।
मुंबई के पश्चिमी उपनगर मालाड के एक विद्यालय परिसर में जब मशहूर शहनाई वादक स्व. बिसमिल्लाह खान की मानस पुत्री विख्यात शास्त्रीय गायिका सोमा घोष एवं कजरी केगढ़ मिर्जापुर की स्थापित गायिका मधु पांडेय झिरि-झिरि बरसे ला सावनवा की तान छेड़ती हैं, तो ठेठ राजस्थानी श्रोता 85 वर्षीय बुजुर्ग राधेश्याम शर्मा उठकर नाचने लगते हैं। जल्दी ही मांग कजरी से फिसलकर सोहर की होने लगती है। गायिका मधु पांडेय जब पूछती हैं कि सावन में सोहर किस लिए? तो मस्त श्रोता बेझिझक कह उठते हैं कि नारायणदत्त तिवारी बाप बने हैं इसलिए। फिर सोहर का दौर शुरू होते ही श्रोताओं में बैठी सीधे पल्लेवाली बुजुर्ग महिलाएं आगे आकर 100-100 के नोट गायिका के सिर पर घुमाते हुए उसके हारमोनियम पर रखती जाती हैं।
यह सिलसिला पिछले आठ वर्ष से मुंबई की सांस्कृतिक संस्था अभियान द्वारा चलाया जा रहा है। अभियान के इस अभियान की लोकप्रियता को देखते हुए इस बार पूरे 12 स्थानों पर कजरी महोत्सव का आयोजन किया जा रहा है। छठ पूजा जैसे धार्मिक उत्सव के भी राजनीतिक रंग ले लेने इस महानगर में पराग अलवणी जैसे मराठी भाषी भाजपा नेता भी अपने क्षेत्र में यह उत्सव करने के लिए लालायित हैं। बात सिर्फ कजरी तक ही सीमित नहीं है। अभियान के संयोजक अमरजीत मिश्र बताते हैं कि सावन को पारंपरिक अंदाज में मनाने के लिए अभियान संस्था द्वारा उत्तरभारत को तर्ज पर ही कई स्थानों पर झूले लगाने, हाथों में मेहंदी रचने, महावर लगाने एवं चूड़ी पहनाने की भी मुफ्त व्यवस्था की जाती है। ताकि लोग अपनी परंपराओं को याद रख सकेंऔर उनका आनंद ले सकें।
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