'सिर्फ इसलिए क्षतिपूर्ति देने से इंकार नहीं कर सकते...' मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की अहम टिप्पणी
मध्य प्रदेश हाई कोर्ट की इंदौर पीठ ने कहा कि आयकर रिटर्न पर आयकर अधिकारी के हस्ताक्षर-मुहर न होने पर बीमा दावा निरस्त नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने आयकर ...और पढ़ें

आयकर रिटर्न पर हस्ताक्षर न होने पर दावा निरस्त नहीं: हाई कोर्ट
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। दुर्घटना बीमा दावे से जुड़े एक मामले में मध्य प्रदेश हाई कोर्ट की इंदौर पीठ ने स्पष्ट किया है कि केवल इस आधार पर कि आयकर रिटर्न पर आयकर अधिकारी के हस्ताक्षर-मुहर नहीं हैं, किसी व्यक्ति की आय को अप्रमाणित मानते हुए बीमा दावा निरस्त नहीं किया जा सकता।
कोर्ट ने कहा कि आयकर रिटर्न एक वैधानिक दस्तावेज है और उसे साक्ष्य के रूप में पूरी तरह नकारा नहीं जा सकता। अगर इसकी प्रामाणिकता को लेकर जिला न्यायालय को किसी तरह का संशय था तो कोर्ट को आयकर विभाग से इसकी जांच करवानी चाहिए थी।
रिटर्न जमा करने वाले के हस्ताक्षर और अधिकारी की मुहर नहीं होने का मतलब यह बिलकुल नहीं कि रिटर्न जमा ही नहीं किया गया है। मृतक के तीन वर्ष के आयकर रिटर्न देखने से यह बात स्पष्ट है कि उसकी आय में लगातार बढ़ोतरी हो रही थी।
हाई कोर्ट ने मृतक के आश्रितों को जिला कोर्ट द्वारा दिलवाई गई तीन लाख, 82 हजार रुपये की क्षतिपूर्ति को अपर्याप्त मानते हुए इसे बढ़ाकर 21 लाख, 65 हजार रुपये करने का आदेश दिया। मामला इंदौर निवासी हंसराज का है।
वह आठ जुलाई 2010 को अपने मित्र के साथ कार से जा रहे थे। इस दौरान उनके आगे चल रहे टैंकर चालक द्वारा अचानक ब्रेक लगाने से उनकी कार टैंकर में घुस गई। हादसे में हंसराज की मृत्यु हो गई थी।
उनकी पत्नी अनिता, दो नाबालिग बच्चों और मां ने जिला कोर्ट में क्षतिपूर्ति के लिए दावा प्रस्तुत किया। इसमें उन्होंने हंसराज द्वारा जमा कराए गए तीन वर्ष के आयकर रिटर्न और रिटर्न जमा करने की रसीद प्रस्तुत की।
बीमा कंपनी ने रिटर्न जमा करने की रसीद को लेकर आपत्ति जताई। बीमा कंपनी का कहना था कि रिटर्न जमा करने वाले के हस्ताक्षर और आयकर अधिकारी के हस्ताक्षर-मुहर नहीं हैं। इस पर जिला कोर्ट ने रिटर्न को साक्ष्य में अग्राह्य मानते हुए हंसराज के आश्रितों को सिर्फ तीन लाख, 82 हजार रुपये क्षतिपूर्ति दिलवाई। जिला कोर्ट के इसी आदेश को हाई कोर्ट में चुनौती दी गई।
(न्यूज एजेंसी पीटीआई के इनपुट के साथ)

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