15 साल पहले देखा था डॉक्टर बनने का सपना, बेटी के साथ NEET क्लियर कर मां ने रच दिया इतिहास
तमिलनाडु के तेनकासी में माँ अमुथावली और बेटी साम्युक्ता कृपालिनी ने एक साथ नीट परीक्षा उत्तीर्ण की है। 49 वर्षीय अमुथावली जो एक फिजियोथेरेपिस्ट हैं ने अपनी बेटी के साथ परीक्षा दी और सरकारी कॉलेज में प्रवेश प्राप्त किया। अमुथावली ने 147 अंक प्राप्त किए और उनकी बेटी को 460 अंक मिले हैं।

आईएएनएस, चेन्नई। तमिलनाडु के तेनकासी में मां-बेटी की एक अनूठी जोड़ी ने इस साल मेडिकल की राष्ट्रीय प्रवेश परीक्षा नीट को पास कर लिया है। प्रौढ़ महिला अमुथावली ने पहली बार इस साल अपनी बेटी के साथ नीट की परीक्षा दी। इस प्रेरणादायक कहानी की मुख्य किरदार अमुथावली पेशे से फिजियोथेरेपिस्ट हैं, जिन्होंने चिकित्सा अध्ययन के अपने 15 वर्ष पुराना सपना पूरा करने का निर्णय लिया।
व्यक्तिगत व वित्तीय बाधाओं के कारण उन्हें अपने इस सपने को पूरा करने का अवसर नहीं मिला था। अब मां और बेटी दोनों इस वर्ष अपनी एमबीबीएस की यात्रा शुरू करने जा रही हैं। अपनी बेटी को राष्ट्रीय पात्रता-सह-प्रवेश परीक्षा (नीट) की तैयारी में मदद करते हुए 49 वर्षीय अमुथावली ने परीक्षा में खुद भी शामिल होने का निर्णय लिया।
सरकारी कॉलेज में मिला एडमिशन
अमुथावली ने कहा, 'मैं वर्षों से फिजियोथेरेपिस्ट के रूप में काम कर रही हूं, लेकिन मैं हमेशा चिकित्सा की पढ़ाई करना चाहती थी, लेकिन मुझे कभी अवसर नहीं मिला। जब मैंने अपनी बेटी के साथ तैयारी शुरू की, तो मुझे अहसास हुआ कि अभी या कभी नहीं। उसने मुझे फिर से कोशिश करने का साहस दिया।'
दिव्यांगों (पीडब्ल्यूडी) श्रेणी के तहत अमुथावली ने नीट में 147 अंक प्राप्त किए हैं। उन्हें विरुधुनगर के सरकारी मेडिकल कॉलेज में प्रवेश मिल गया है। उनकी बेटी साम्युक्ता कृपालिनी ने इसी परीक्षा में 460 अंक प्राप्त किए और वह तमिलनाडु के किसी मेडिकल कॉलेज में सीट पाने के लिए चल रही सामान्य काउंसलिंग प्रक्रिया में भाग ले रही हैं।
लोगों ने की सराहना
- दिलचस्प बात यह है कि मां-बेटी ने यह तय किया है कि वे एक ही कालेज में नहीं पढ़ेंगी, भले ही उन्हें दोनों को प्रवेश के प्रस्ताव मिलें। ताकि वह पढ़ाई पर स्वतंत्र रूप से ध्यान केंद्रित करें। अमुथावली की कहानी ने तेनकासी में कई लोगों को प्रेरित किया। स्थानीय लोगों और शुभचिंतकों ने उनकी उच्च शिक्षा की ओर बढ़ने की दृढ़ता की सराहना की है।
- चिकित्सा शिक्षा के विशेषज्ञों ने भी उनकी सफलता को इस बात का प्रमाण माना कि उम्र कभी भी सीखने में बाधा नहीं बननी चाहिए। विरुधुनगर मेडिकल कॉलेज के एक वरिष्ठ डॉक्टर ने कहा, 'उनकी कहानी कई अन्य लोगों को प्रेरित करेगी जो अपने सपनों को पीछे छोड़ चुके हैं।'
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