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Monsoon In India: फिर 'लाल बुझक्कड़' बना मानसून, पूर्वानुमान से ज्यादा भीगा देश

Rain Weather Update in India इस मानसून ने पिछले 25 सालों का रिकॉर्ड तोड़ दिया। वहीं भारतीय मौसम विज्ञान विभाग इस वर्ष मानसून का सही पूर्वानुमान लगाने विफल रहा।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Sat, 05 Oct 2019 11:06 AM (IST)Updated: Sun, 06 Oct 2019 08:36 AM (IST)
Monsoon In India: फिर 'लाल बुझक्कड़' बना मानसून, पूर्वानुमान से ज्यादा भीगा देश

नई दिल्‍ली [जागरण स्‍पेशल]। Weather Updates भारतीय मौसम विभाग ने 10 अक्टूबर से मानसून के लौटने की संभावना जताई है। इससे पहले 1961 में मानूसन एक अक्टूबर को वापस लौटा था। इस मानसून ने पिछले 25 सालों का रिकॉर्ड तोड़ दिया। वहीं भारतीय मौसम विज्ञान विभाग इस वर्ष मानसून का सही पूर्वानुमान लगाने विफल रहा। बिहार और कर्नाटक के कुछ हिस्सों में भारी बारिश अभी भी जारी है। बिहार का आधा हिस्सा अभी भी बाढ़ के पानी में डूबा है और दूसरा आधा भाग गंभीर सूखे से संघर्ष कर रहा है।

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औसत से ज्यादा हुई बारिश

अपने नवीनतम अपडेट एक अगस्त को भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आइएमडी) यह अनुमान लगाने में विफल रहा कि अगस्त और सितंबर की बारिश महीने की औसत बारिश का 130 फीसद होगी। आइएमडी ने एक अगस्त को कहा कि मानसून की बारिश 100 फीसद होगी। लेकिन अनुमान की तुलना में बारिश कहीं ज्यादा हुई।

आकलन करने में चूके

जाने-माने मौसम वैज्ञानिकों ने मानसूनी वर्षा की मात्रा का सही अनुमान लगाने के लिए भारतीय मौसम विभाग के गतिशील मानसून मॉडल की अक्षमता पर आश्यर्य व्यक्त किया। उनका मानना है कि मौसम विभाग दो मौसमी हालातों के आकलन में विफल रहा।

इंडियन ओशन डाइपोल

यह ऐसी मौसमी परिस्थिति है जो भारत में निश्चित तापमान के आधार संकेत देती है कि मानसून कैसा रहने वाला है। जुलाई के अंत में ये हालात अगस्त और सितंबर में भारी बरसात होने के अनुकूल थे। यह संकेत दे रहा था कि अगस्त और सितंबर में मानसून जबरदस्त रहने वाला है, लेकिन आइएमडी इसे समझने में विफल रहा।

कमजोर अलनीनो

अगस्त के मध्य तक अलनीनो कमजोर था। इसका मतलब था कि भारत की मुख्य भूमि की ओर हिंद महासागर में तापमान अधिक था। यह मौसमी परिस्थिति इस बात की द्योतक होती है कि भारत में मजबूत मानसून रहेगा।

सीएफएस हुआ विकसित

जब भारत तकनीकी और आर्थिक रूप से पिछड़ा था तो मानसून का गलत आकलन एक रवायत सी थी। गुजरते सालों में आर्थिक समृद्धि बढ़ने के साथ मानसून अनुसंधान के लिए धन उपलब्ध कराया गया और कुछ ही सालों में क्लाइमेट फोरकास्ट सिस्टम (सीएफएस) के रूप में नया मॉडल विकसित हुआ, जिसने मौसम के पैटर्न का सटीक अनुमान लगाने का भरोसा दिया। इस मॉडल के विकास पर 1,200 करोड़ रुपये खर्च किए गए हैं।

अधिकतर दावे हुए फेल

यह पहला वर्ष नहीं है जब आइएमडी मानसून का सही पूर्वानुमान लगाने में विफल रहा है। 2017 में आइएमडी ने कहा कि हाल के वर्षों में मानसून के पूर्वानुमान में सुधार हुआ है और 1988 से 2008 के बीच 90 फीसद की सटीकता का दावा किया है। हालांकि, पिछले कुछ वर्षों में यह रिकॉर्ड निराशाजनक रहा है। आइएमडी का 2015 में केवल एक बार सही पूर्वानुमान रहा है। ये वर्ष भी एक ऐसे दौर का हिस्सा था जब जलवायु परिवर्तन की बहस शुरू हुई थी।

2012 में, आइएमडी ने पूर्वानुमान लगाया था कि मानसून लंबी अवधि की औसत का 104 फीसद रहेगा, जो बाद में 93 फीसद रहा। वहीं 2013 में आइएमडी मॉडल ने लंबी अवधि की औसत के 104 फीसद बारिश का अनुमान लगाया, लेकिन 106 फीसद बारिश हुई। 2014 में, औसतन 96 फीसद बारिश के मुकाबले 88 फीसद ही बारिश हुई। इस साल आइएमडी ने 97 फीसद सामान्य बारिश का पूर्वानुमान लगाया गया था, लेकिन मानसून अब तक ही 110 फीसद बारिश ला चुका है।

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