कहीं बाढ़, कहीं सूखा... जल्दी आकर देर से विदा हुआ मानसून; टूट गया इतने साल का रिकॉर्ड
इस साल दक्षिण-पश्चिम मानसून 24 मई को केरल में पहुंचा, जो 2009 के बाद सबसे जल्दी था। यह पूरे देश में सामान्य तिथि से पहले फैल गया और एक दिन देरी से विदा हुआ, जिससे 8% अधिक बारिश हुई। उत्तर-पश्चिम भारत में अत्यधिक वर्षा हुई, जबकि पूर्वोत्तर में कम बारिश हुई। मानसून से कहीं बाढ़ आई तो कहीं सूखा, लेकिन कुल मिलाकर कृषि के लिए यह राहत भरा रहा।

कुछ इलाकों में बाढ़ की तबाही तो कहीं सूखे की स्थिति रही (फाइल फोटो)
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। चार महीने तक वर्षा देने वाला दक्षिण-पश्चिम मानसून गुरुवार को आखिरकार देश से पूरी तरह विदा हो गया है। इस वर्ष मानसून ने केरल में 24 मई को दस्तक दी थी, जोकि 2009 के बाद सबसे पहले आगमन था। आमतौर पर मानसून एक जून को केरल पहुंचता है और आठ जुलाई तक पूरे देश में फैल जाता है।
लेकिन इस बार यह पूरे देश में आठ जुलाई की सामान्य तिथि से नौ दिन पहले ही छा गया और एक दिन देर से विदा हुआ। यानी सक्रियता लंबी रही और बारिश भी आठ प्रतिशत ज्यादा देकर लौटा। कुछ इलाकों में बाढ़ की तबाही तो कहीं सूखे की स्थिति रही।
देशभर में औसतन 937.2 मिमी वर्षा हुई
भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) ने गुरुवार को दक्षिण-पश्चिम मानसून की विदाई और उत्तर-पूर्व मानसून के आगमन की घोषणा साथ-साथ कर दी है क्योंकि इसी दिन उत्तर-पूर्वी मानसून ने देश के दक्षिणी हिस्से में दस्तक दी है। इस तरह वर्षा के एक चक्र का समापन एवं दूसरे की शुरुआत एक ही दिन हुई।
कृषि मंत्रालय ने इस बार के मानसून को संतुलित और अनुकूल बताया है। चार महीने के मानसून मौसम (एक जून से 30 सितंबर) के बीच देशभर में औसतन 937.2 मिमी वर्षा हुई, जोकि सामान्य 868.6 मिमी से करीब आठ प्रतिशत अधिक है। हालांकि यह बारिश असमान रूप से हुई है यानी कहीं ज्यादा तो कहीं कम हुई। देश के उत्तर-पश्चिम हिस्से में 27.3 प्रतिशत अधिक बारिश हुई, जो वर्ष 2001 के बाद सबसे ज्यादा है।
मध्य भारत में 15 प्रतिशत और दक्षिणी हिस्से में लगभग 10 प्रतिशत अधिक वर्षा हुई है। इसके विपरीत पूर्व और उत्तर-पूर्व हिस्से में सामान्य से 20 प्रतिशत कम बारिश हुई, जो 1901 के बाद दूसरा सबसे कम आंकड़ा है। इस क्षेत्र में 1,089.9 मिलीमीटर वर्षा दर्ज की, जो कि 1,367.3 मिलीमीटर की सामान्य मात्रा से काफी कम है।
पंजाब, हिमाचल और उत्तराखंड में मचाई तबाही
इस वर्ष के मानसून को पंजाब, हिमाचल और उत्तराखंड में भारी बारिश के लिए भी जाना जाएगा। पंजाब में बाढ़ और अतिवृष्टि से हजारों हेक्टेयर फसलें डूब गईं। पहाड़ी क्षेत्रों में बादल फटने और भूस्खलन से जन-धन की हानि हुई। पुल, सड़कें एवं मकान बह गए। हालांकि कई राज्यों में पर्याप्त वर्षा से किसानों को फायदा हुआ।
जलाशयों में जलस्तर सामान्य से ऊपर आ गया है, जिससे रबी फसलों की बुआई में सहूलियत होगी। समग्रता में यह मौसम कृषि, जलाशयों और ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिए राहतभरा रहा है। अब दक्षिण भारत में उत्तर-पूर्वी वर्षा की बारी है, जो आने वाले महीनों में जल संकट कम करने और रबी मौसम को मजबूत करने में अहम भूमिका निभाएगी।
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