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    रिटायरमेंट, तीन बच्चे और राष्ट्रीय शिक्षा नीति पर खुलकर बोले संघ प्रमुख, मोहन भागवत ने कहा- 'भाजपा से कोई झगड़ा नहीं'

    Updated: Fri, 29 Aug 2025 12:01 AM (IST)

    Mohan Bhagwat On Retirement मोहन भागवत ने 75 साल की उम्र में रिटायर होने की अटकलों को खारिज करते हुए कहा कि उन्होंने कभी ऐसी बात नहीं कही। उन्होंने भाजपा के साथ मतभेद से भी इनकार किया और कहा कि राष्ट्रीय अध्यक्ष का फैसला भाजपा को ही लेना है। भागवत ने स्पष्ट किया कि संगठन जब तक चाहेगा नेतृत्व काम करता रहेगा।

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    मैंने कभी नहीं कहा 75 साल होने पर पद छोड़ देना चाहिए: संघ प्रमुख मोहन भागवत

    जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। आरएसएस के सरसंघचालक मोहन भागवत ने 75 साल की उम्र में रिटायर होने की अटकलों को खारिज कर दिया। 'संघ की 100 वर्ष की यात्रा: नए क्षितिज' विषय पर आयोजित कार्यक्रम के तीसरे और अंतिम दिन सवालों का जवाब देते हुए भागवत ने साफ कहा कि उन्होंने कभी भी 75 साल की उम्र में रिटायर होने की बात नहीं कही थी। न उनके खुद के लिए न ही किसी और के लिए।

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    ध्यान देने की बात है कि मोहन भागवत 11 सितंबर को 75 साल के हो रहे हैं। दरअसल उनके एक बयान का हवाला देते हुए 75 साल की उम्र को ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के लिए भी जोड़ा जा रहा था। वहीं भागवत ने यह तो स्वीकार किया कि कुछ मुद्दों पर विचार अलग हो सकते है लेकिन भाजपा के साथ मतभेद नहीं है। उनके अनुसार राष्ट्रीय अध्यक्ष को लेकर फैसला खुद भाजपा को लेना है।

    हालांकि उन्होंने चुटकी भी ली और कहा ''हम तय करते तो इतना समय लगता क्या ?'' फिर आगे कहा- टेक योर टाइम।(अपने समय से फैसला लीजिए) संघ के तीन दिवसीय कार्यक्रम में गुरुवार को होनेवाले प्रश्नोत्तर काल ही इंतजार किया जा रहा था। खासकर भाजपा के साथ कथित मतभेद और इसके कारण भाजपा अध्यक्ष के चुनाव में होने वाली देरी और और 75 साल की उम्र में रिटायर होने के मुद्दे पर। लेकिन भागवत ने जहां मतभेद को खारिज किया वहीं यह भी स्पष्ट कर दिया कि संगठन जब तक चाहता है कि नेतृत्व को काम करना होता है।

    उन्होंने सफाई दी कि मोरोपंत पिंगले की किताब का विमोचन करते हुए उन्होंने पिंगले के बयानों का हवाला दिया था जो उन्होंने 75 साल पूरे होने पर दिए थे। इसका दूसरा अर्थ निकाले जाने की जरूरत नहीं है।

    उन्होंने कहा, 'मैंने कभी नहीं कहा कि 75 होने पर मुझे या किसी और को रिटायर हो जाना चाहिए। संगठन तय करता है कि किसको कब क्या काम करना है। 80 वर्ष होने पर भी संगठन मुझे शाखा चलाने को कहेगा तो करना पड़ेगा।'

    मोहन भागवत ने सरकार या पार्टी के कामकाज में दखल देने के सवाल को भी सिरे से नकार दिया। उन्होंने कहा कि सरकार के साथ कुछ मुद्दों पर विचार अलग होगा स्वाभाविक प्रक्रिया है। उनके अनुसार ऐसे मतभेद हमारे आनुषंगिक संगठनों के बीच आपस में भी है। इसके लिए उन्होंने भारतीय मजदूर संघ और लघु उद्योग भारती का उदाहरण किया।

    उनके अनुसार सरकार और आनुषंगिक संगठनों के बीच ऐसे मतभेदों को आपसी विचार-विमर्श से दूर करने का प्रयास किया जाता है। कई मुद्दों को देखने के अलग-अलग नजरिये से के कारण मतभेद का आभास होता है लेकिन राष्ट्रहित को लेकर हमारा ध्येय एक है, इस कारण मतभेद, मनभेद में नहीं बदलता। भाजपा को छोड़कर अन्य राजनीतिक दलों से दूरी के सवाल पर मोहन भागवत ने कहा कि संघ के लिए सभी राजनीतिक समान है। जो भी राजनीतिक दल सहायता मांगता है, संघ उसे देने के लिए तैयार रहता है।

    उन्होंने कहा कि हम किसी को अपना पराया नहीं मानते हैं, किसी से परहेज नहीं है। इस सिलसिले में उन्होंने नागपुर में आयोजित एनएसयूआइ के कार्यक्रम में झगड़े के कारण मची भगदड़ का उदाहरण दिया। उस समय मोहन भागवत खुद नागपुर के जिला प्रचारक थे। नागपुर से कांग्रेस के तत्कालीन सांसद के अनुरोध पर स्वयंसेवकों ने एनएसयूआइ कार्यकर्ताओं के भोजन का प्रबंध किया था।

    उन्होंने 1948 में आरएसएस मुख्यालय को जलाने के लिए मशाल लेकर आने वाले जयप्रकाश नारायण का उदाहरण दिया, जिन्होंने 1975 में देश में सकारात्मक परिवर्तन के लिए आरएसएस पर भरोसा जताया था। इसी तरह से पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी के विजयादशमी के कार्यक्रम में आरएसएस मुख्यालय में आने का भी उदाहरण दिया।

    संघ सरकार को नहीं बताएगा कि ट्रंप से कैसे व्यवहार करें

    अंतरराष्ट्रीय व्यापार और अमेरिकी टैरिफ के बारे में एक सवाल के जवाब में भागवत ने कहा, ''अंतरराष्ट्रीय व्यापार जरूरी है और होना ही चाहिए, क्योंकि यह देशों के बीच संबंधों को भी बनाए रखता है। लेकिन यह दबाव में नहीं होना चाहिए; दोस्ती दबाव में नहीं पनप सकती।

    उन्होंने कहा, ''यह स्वतंत्र होना चाहिए, आपसी सहमति पर आधारित होना चाहिए। हमारा लक्ष्य आत्मनिर्भर होना चाहिए, साथ ही यह समझना चाहिए कि दुनिया परस्पर निर्भरता पर चलती है और उसके अनुसार कार्य करना चाहिए। हम सरकार को नहीं बताएंगे कि ट्रंप से कैसे व्यवहार करें; वे जानते हैं कि क्या करना है और हम इसका समर्थन करेंगे।''

    गौरतलब है कि संघ के इस शताब्दी वर्ष कार्यक्रम में अमेरिका एवं चीन समेत लगभग दो दर्जन दूतावासों एवं उच्चायोगों के 50 से अधिक राजनयिक उपस्थित थे।

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