MNREGA-जी राम जी के बीच शुरू हो गया उत्तर-दक्षिण विवाद, विधेयकों के नामों को लेकर क्या कहता है संविधान?
मनरेगा का नाम बदलने को लेकर विवाद जारी है, जिसने केंद्र सरकार के विधेयकों का नाम हिंदी में रखने की प्रथा को उजागर किया है। कई बिल सिर्फ हिंदी नामों के ...और पढ़ें

विधेयकों के नामों को लेकर क्या कहता है संविधान
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। MNREGA का नाम बदलने को लेकर चल रहे विवाद ने केंद्र सरकार के विधेयकों का नाम हिंदी में रखने की नई प्रथा को उजागर कर दिया है। जिसेक तहत किसी भी बिल के लिए हिंदी और अंग्रेजी दोनों नाम देने की परंपरा लगभग खत्म होती दिखाई दे रही है।
पिछले कुछ महीनों में कई बिल सिर्फ हिंदी नामों के साथ आए हैं। जिसे कई लोगों ने भाषा के जरिए एकरूपता लाने की कोशिश बताया है। हिंदी में विधेयकों के नामों का सबसे ज्यादा विरोध दक्षिण भारत में हुआ है। यहां नेताओं ने इसे हिंदी थोपने से जोड़कर देखा है।
किन-किन विधेयकों के हिंदी में रखे गए नाम?
जी राम जी जो MNREGA की जगह ले सकता है, इसका मतलब है विकसित भारत रोजगार और आजीविका गारंटी मिशन (ग्रामीण) बिल। उच्च शिक्षा में सुधार के लिए एक बिल को विकसित भारत शिक्षा अधिष्ठान बिल कहा जाता है। इसी के साथ बीमा कानूनों में संशोधन के लिए 'सबका बीमा, सबकी रक्षा' बिल भी आया।
परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में प्राइवेट सेक्टर को प्रवेश की अनुमति देने वाला एक बिल लाया गया। हालांकि इसका नाम अंग्रेजी में रखा गया था, लेकिन इसके संक्षिप रूप ने फिर विवाद को हवा दे दी। इस विधेयल का नाम 'सस्टेनेबल हार्नेसिंग एंड एडवांसमेंट ऑफ न्यूक्लियर एनर्जी फॉर ट्रांसफॉर्मिंग इंडिया' था जिसे शॉर्ट फॉर्म में SHANTI कहा गया।
इससे पहले, भारतीय दंड संहिता, दंड प्रक्रिया संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम की जगह लेने वाले कानूनों को भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य बिल कहा गया। इसी के साथ भारतीय वायुयान विधेयक कानून ने 1934 के एयरक्राफ्ट एक्ट की जगह ले ली है।
कांग्रेस पहले से ही महात्मा गांधी को श्रद्धांजलि के तौर पर शुरू की गई MNREGA का नाम भगवान राम के नाम पर रखने पर नाराज है। जबकि बीजेपी ताना मार रही है कि यह पार्टी की हिंदू धर्म और संस्कृति के प्रति नफरत का सबूत है। इन सब के बीच हिंदी नामों का बिलों में इस्तेमाल उत्तर-दक्षिण के बीच खाई को और बढ़ा सकता है।
दक्षिण के नेताओं ने आवाज उठाई
सोमवार को जब केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने लोकसभा में विकसित भारत शिक्षा अधिष्ठान बिल पेश किया, तो RSP(A) नेता एनके प्रेमचंद्रन ने कहा कि उन्हें नाम बोलने में मुश्किल हो रही है। उन्होंने कहा कि हिंदी नामों का इस्तेमाल करने का यह तरीका संविधान के अनुच्छेद 348(B) का उल्लंघन करता है, जिसमें कहा गया है कि नए कानूनों के नाम अंग्रेजी में होने चाहिए।
कांग्रेस सदस्य जोति मणि और DMK सदस्य टी एम सेल्वगणपति ने भी अपनी आपत्तियां साफ कर दीं। जोति मणि ने कहा, 'मैं इसे हिंदी थोपना मानती हूं। पहले से ही, तमिलनाडु को SSA फंड से वंचित कर दिया गया है, सिर्फ इसलिए कि हमने राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 में तीन-भाषा नीति का विरोध किया है।' DMK नेता टी आर बालू ने भी दक्षिणी राज्यों पर हिंदी थोपने के खिलाफ बात की।
कांग्रेस नेता पी चिदंबरम ने कहा कि यह बदलाव गैर-हिंदी भाषी लोगों और उन राज्यों का अपमान है जिनकी आधिकारिक भाषा हिंदी के अलावा कोई और है।
X पर एक पोस्ट में, उन्होंने कहा कि अब तक यह चलन था कि बिल का शीर्षक अंग्रेजी वर्जन में अंग्रेजी शब्दों में और बिल के हिंदी वर्जन में हिंदी शब्दों में लिखे जाते थे। जब 75 साल के इस चलन में किसी को कोई दिक्कत नहीं हुई, तो सरकार को इसे बदलना क्यों चाहिए?'
क्या कहता है संविधान?
संविधान का अनुच्छेद 348(1)(b) कहता है कि जब तक संसद कोई और फैसला नहीं लेती, केंद्र और राज्य स्तर पर सभी बिल, अधिनियम, अध्यादेश, आदेश, नियम, विनियम और उप-नियमों के साथ-साथ सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट की सभी कार्यवाही अंग्रेजी में होनी चाहिए। किसी अन्य अनुवाद के साथ टकराव होने पर अंग्रेजी वर्जन ही मान्य होगा।

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