सौर और पवन ऊर्जा के क्षेत्र में 2022 तक पैदा होंगे तीन लाख नए रोजगारः रिपोर्ट
अंतरराष्ट्रीय श्रमिक संगठन की एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में सौर और वायु ऊर्जा के क्षेत्र में भविष्य में तीन लाख लोगों को रोजगार मिलेगा।
By Vikas JangraEdited By: Published: Tue, 15 May 2018 12:44 PM (IST)Updated: Tue, 15 May 2018 03:00 PM (IST)
style="text-align: justify;">नई दिल्ली (पीटीआइ)। अंतरराष्ट्रीय श्रमिक संगठन की एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में सौर और वायु ऊर्जा के क्षेत्र में भविष्य में तीन लाख लोगों को रोजगार मिलेगा। इसकी वजह 2022 तक देश में 175 गीगावट बिजली पैदा करने का उद्देश्य है। संगठन ने रोजगार क्षेत्र के हालात पर अपनी वार्षिक रिपोर्ट में कहा है कि जलवायु परिवर्तन से मुकाबला करने उद्देश्य इस क्षेत्र में लाखों नए रोजगार के अवसर पैदा करेगा।
संयुक्त राष्ट्र की श्रम एजेंसी का कहना है कि 2030 तक वैश्विक स्तर पर करीब 24 मिलियन नई पोस्ट अस्तित्व में आएंगी। हालांकि एजेंसी ने ये भी कहा कि हरित अर्थव्यवस्था के लिए सही नीतियों का होना भी जरूरी है जो कि कर्मचारियों को एक बेहतर सामाजिक सुरक्षा का मौहाल उपलब्ध करवाएगी।
विश्व रोजगार और सामाजिक दृष्टिकोण 2018 की रिपोर्ट के मुताबिक भारत ने खुद से ही रिन्यूएबल सोर्स से 2022 तक 175 गीगावाट बिजली पैदा करने का लक्ष्य़ रखा है, जो कि भारत के कुल बिजली उत्पादन का करीब आधा है। रिपोर्ट में ऊर्जा, पर्यावरण और जल परिषद एवं प्राकृतिक संसाधन रक्षा परिषद के अनुमानों का भी हवाला दिया है जो कि सौर और वायु ऊर्जा कंपनियों के सर्वे को आधार बनाते हुए भारत में 2022 तक करीब तीन लाख कर्मचारियों को रोजगार देने की बात कह रहे हैं।
रिपोर्ट में इस बात का भी जिक्र है कि लक्ष्य को पूरा करने के लिए कर्मचारियों की पवन ऊर्जा परियोजनाओं और सौर ऊर्जा के कर्मचारियों की संख्या को बढ़ाना होगा। साथ ही ये भी की रोजगार सृजन क्षमता घरेलू निर्माण और वोकेशनल ट्रेनिंग प्रोग्राम पर भी निर्भर करती है। यह भी कहा गया है कि डेनमार्क, एस्टोनिया, फ्रांस, जर्मनी, दक्षिण कोरिया, फिलिपींस, दक्षिण अफ्रीका के अलावा भारत जैसे देशों में पर्यावरणीय नीतियां और राष्ट्रीय विकास नीतियां हरित अभियान में कौशल विकास के लिए संदर्भ का काम करती हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है कि साल 2012-15 की पंचवर्षीय योजना में भारत की विकास नीति का मुख्य उद्देश्य कौशल विकास के लिए व्यापक ढांचा तैयार करना था। इसमें 2015 तक मुख्य सेक्टर्स और संस्थाओं को इस अभियान में शामिल करना था। इसी उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए वाटर ट्रीटमेंट प्लांट हेल्पर से लेकर सोलर प्रोजेक्ट मैनेजर जैसे 26 नए तकनीकी और व्यवसायिक शैक्षिण कोर्स शुरू किए गए।
हालांकि भारत रिन्यूएबल एनर्जी स्त्रोतों में अपनी हिस्सेदारी बढ़ा रहा है लेकिन फिर भी बिजली उत्पादन में करीब 80 फीसदी भागीदारी कोयला, तेल और प्राकृतिक गैस के अलावा कार्बन छोड़ने वाले संसाधनों की है। अंतरराष्ट्रीय श्रमिक संगठन ने ये भी अंदेशा जताया है कि हरित अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ते कदमों से कार्बन आधारित उद्योगों में करीब 6 मिलियन रोजगार भी खत्म होंगे। पेट्रोल निकालने और रिफाइन करने के काम में ही करीब 1 मिलियन रोजगार की कमी होने वाली है।
संयुक्त राष्ट्र की श्रम एजेंसी का कहना है कि 2030 तक वैश्विक स्तर पर करीब 24 मिलियन नई पोस्ट अस्तित्व में आएंगी। हालांकि एजेंसी ने ये भी कहा कि हरित अर्थव्यवस्था के लिए सही नीतियों का होना भी जरूरी है जो कि कर्मचारियों को एक बेहतर सामाजिक सुरक्षा का मौहाल उपलब्ध करवाएगी।
विश्व रोजगार और सामाजिक दृष्टिकोण 2018 की रिपोर्ट के मुताबिक भारत ने खुद से ही रिन्यूएबल सोर्स से 2022 तक 175 गीगावाट बिजली पैदा करने का लक्ष्य़ रखा है, जो कि भारत के कुल बिजली उत्पादन का करीब आधा है। रिपोर्ट में ऊर्जा, पर्यावरण और जल परिषद एवं प्राकृतिक संसाधन रक्षा परिषद के अनुमानों का भी हवाला दिया है जो कि सौर और वायु ऊर्जा कंपनियों के सर्वे को आधार बनाते हुए भारत में 2022 तक करीब तीन लाख कर्मचारियों को रोजगार देने की बात कह रहे हैं।
रिपोर्ट में इस बात का भी जिक्र है कि लक्ष्य को पूरा करने के लिए कर्मचारियों की पवन ऊर्जा परियोजनाओं और सौर ऊर्जा के कर्मचारियों की संख्या को बढ़ाना होगा। साथ ही ये भी की रोजगार सृजन क्षमता घरेलू निर्माण और वोकेशनल ट्रेनिंग प्रोग्राम पर भी निर्भर करती है। यह भी कहा गया है कि डेनमार्क, एस्टोनिया, फ्रांस, जर्मनी, दक्षिण कोरिया, फिलिपींस, दक्षिण अफ्रीका के अलावा भारत जैसे देशों में पर्यावरणीय नीतियां और राष्ट्रीय विकास नीतियां हरित अभियान में कौशल विकास के लिए संदर्भ का काम करती हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है कि साल 2012-15 की पंचवर्षीय योजना में भारत की विकास नीति का मुख्य उद्देश्य कौशल विकास के लिए व्यापक ढांचा तैयार करना था। इसमें 2015 तक मुख्य सेक्टर्स और संस्थाओं को इस अभियान में शामिल करना था। इसी उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए वाटर ट्रीटमेंट प्लांट हेल्पर से लेकर सोलर प्रोजेक्ट मैनेजर जैसे 26 नए तकनीकी और व्यवसायिक शैक्षिण कोर्स शुरू किए गए।
हालांकि भारत रिन्यूएबल एनर्जी स्त्रोतों में अपनी हिस्सेदारी बढ़ा रहा है लेकिन फिर भी बिजली उत्पादन में करीब 80 फीसदी भागीदारी कोयला, तेल और प्राकृतिक गैस के अलावा कार्बन छोड़ने वाले संसाधनों की है। अंतरराष्ट्रीय श्रमिक संगठन ने ये भी अंदेशा जताया है कि हरित अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ते कदमों से कार्बन आधारित उद्योगों में करीब 6 मिलियन रोजगार भी खत्म होंगे। पेट्रोल निकालने और रिफाइन करने के काम में ही करीब 1 मिलियन रोजगार की कमी होने वाली है।
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